धर्म-अध्यात्म

Bhairav ​​Chalisa: सावन के चौथे सोमवार पर करें ये विशेष उपाय, पूरी होंगी मनोकामना

Tara Tandi
12 Aug 2024 6:43 AM GMT
Bhairav ​​Chalisa: सावन के चौथे सोमवार पर करें ये विशेष उपाय, पूरी होंगी मनोकामना
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Bhairav ​​Chalisa ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू पंचांग के अनुसार अभी सावन का महीना चल रहा है और आज यानी 12 अगस्त को सावन माह का चौथा सोमवार है जो कि शिव साधना आराधना का उत्तम दिन है इस दिन भक्त प्रभु की भक्ति करते हैं और दिनभर उपवास रखकर भगवान की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। लेकिन इसी के साथ ही अगर सावन सोमवार के दिन शिव पूजा के दौरान श्री भैरव चालीसा का पाठ श्रद्धा भाव से किया जाए तो महादेव की कृपा बरसती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है साथ ही साथ हर कार्य में सफलता मिलती है और मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं।
भैरव चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री भैरव सङ्कट हरन,मंगल करन कृपालु।
करहु दया जि दास पे,निशिदिन दीनदयालु॥
॥ चौपाई ॥
जय डमरूधर नयन विशाला।
श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।
काशी कोतवाल, संकटहर॥
जय गिरिजासुत परमकृपाला
संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥
जयति बटुक भैरव भयहारी।
जयति काल भैरव बलधारी॥
अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।
सकल एक ते एक सिवाये॥
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।
गणाधीश तुम सबके स्वामी॥
जटाजूट पर मुकुट सुहावै।
भालचन्द्र अति शोभा पावै॥
कटि करधनी घुँघरू बाजै।
दर्शन करत सकल भय भाजै॥
कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।
मोरपंख को चंवर मनोहर॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना।
रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥
वाहन श्वान सदा सुखरासी।
तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥
जय जय जय भैरव भय भंजन।
जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥
नयन विशाल लाल अति भारी।
रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥
बं बं बं बोलत दिनराती।
शिव कहँ भजहु असुर आराती॥
एकरूप तुम शम्भु कहाये।
दूजे भैरव रूप बनाये॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।
सब जग के तुम अन्तर्यामी॥
रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।
श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।
तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥
तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।
सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।
प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥
चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।
निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर।
चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥
अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।
जयत सदा मेटत दुःख भारे॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।
क्रोधवान तुम अति रणरंगा॥
भूतनाथ तुम परम पुनीता।
तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।
कालजयी तुम परम अनूपा॥
ऐलादी को संकट टार्यो।
साद भक्त को कारज सारयो॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा।
तव चरणन नावहुं नित माथा॥
श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।
दीन जानि मोहि पार उतारहु॥
भवसागर बूढत दिनराती।
होहु कृपालु दुष्ट आराती॥
सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।
मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा।
तुम समान दूजो को देवा॥
अश्वनाथ तुम परम मनोहर।
दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई।
ताकहँ संकट परै न कोई॥
हरहु नाथ तुम जन की पीरा।
तुम समान प्रभु को बलवीरा॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै।
दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥
जो यह पाठ करे चालीसा।
तापै कृपा करहु जगदीशा॥
॥ दोहा ॥
जय भैरव जय भूतपति,जय जय जय सुखकंद।
करहु कृपा नित दास पे,देहुं सदा आनन्द॥
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