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यह अनोखा फल साल में केवल दो महीने ही मिलता है

Sonam
1 July 2023 9:05 AM GMT
यह अनोखा फल साल में केवल दो महीने ही मिलता है
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lasoda Fruit: सीजनल फ्रूट खाने के लिए हम कितने पैसे खर्च कर देते हैं। चाहे वो भारत में मिलने वाले देसी फल हों या फिर बाहर से आयात किए गए विदेशी फ्रूट, मौसमी फलों को खाने की बात ही कुछ और होती है। ब्लू बेरी से लेकर स्ट्रॉबेरी, लीची, पीच, प्लम समेत और भी कई तरह के ऐसे फल हैं, जो सीजनी हैं और काफी लोकप्रिय भी। लेकिन क्या आपने भारत में ही उगने वाले उस एक फल के बारे में जानते हैं, जो साल में केवल दो महीने के लिए ही आता है? वैसे तो इस फल के कई नाम हैं, लेकिन ज्यादातर जगहों पर यह लसोड़ा, निसोरी या गोंद बेरी (कॉर्डिया मायक्सा) के नाम से मशहूर है। अगर आप भी उनमें से एक हैं, जो इस फल के बारे में नहीं जानते हैं या फिर पहली बार सुन रहे हैं, तो आपको यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए।

लसोड़ा फल क्या है?

लसोड़ा एक जंगली फल है जो गर्म और रेतीले क्षेत्रों में उगता है। यह राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है। इस चिपचिपे फल में रक्तचाप को कम करने और शरीर में एलर्जी प्रतिक्रियाओं को कम करने का अनूठा गुण है। यह एक हज़ार साल पुराना जंगली फल है, जिसकी उत्पत्ति भारत और इसके आसपास के क्षेत्रों में मानी जाती है। लसोड़ा फल का इतिहास प्राचीन काल से है। ऐसा माना जाता है कि यह हिमालय, नेपाल, म्यांमार, ताइवान, थाईलैंड, मलेशिया, चीन, पोलिनेशिया और ऑस्ट्रेलिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में पाया गया है। इसके औषधीय गुणों का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे 'चरकसंहिता' में किया गया है, जो 7वीं-8वीं ईसा पूर्व में भारत में लिखा गया था और इसे पिचहिल के रूप में संदर्भित किया गया है।

कैसा दिखता है लसोड़ा?

लसोड़ा फल एक मीडियम साइज बेर के आकार का होता है। जब यह कच्चा होता है, तो इसका रंग हरा होता है, वहीं पकने के बाद यह कुछ हद तक पीला हो जाता है। यह पेड़ पर गुच्छों में उगता है और इसका स्वाद थोड़ा कसैला होता है। कच्चे लिसोड़े का उपयोग सब्जी बनाने में किया जा सकता है। इसके अलावा इसका अचार भी काफी पसंद किया जाता है। जब फल पक जाता है तो इसका गूदा मीठा और चिपचिपा हो जाता है, जिससे यह खाने में और भी मजेदार हो जाता है।

क्या औषधि के रूप में लसोड़ा को इस्तेमाल कर सकते हैं?

इस पौधे के कुछ अविश्वसनीय स्वास्थ्य लाभ भी हैं, जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल पारंपरागत चिकित्सा के रूप में हजारों सालों से होता आ रहा है। माना जाता है कि लसोड़ा में मौजूद पोषक तत्वों की उचित मात्रा इसे शरीर के लिए फायदेमंद बनाती है। फल की छाल और पत्तियों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, जिसका इस्ताम आयुर्वेदिक इलाज के रूप में जोड़ों के दर्द और सूजन सहित विभिन्न बीमारियों से राहत दिलाने के लिए किया जाता है। दांत में दर्द होने पर इसकी छाल को पानी में उबालकर ठंडा करने के बाद इसका काढ़ा बनाकर पीने से राहत मिल सकती है। गौरतलब है कि, लसोड़ा एक जंगली फल है जिसका अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह मुंह का स्वाद बेकाबू कर सकता है और पेट दर्द का कारण भी बन सकता है।

साल में कब मिलता है लसोड़ा?

एक मीडियम साइज बेर जैसा दिखने वाला लसोड़ा, दूसरे फलों की तरह आपको साल भर नहीं मिलता। इसे खाने के लिए आपको पूरे साल इंतजार करना पड़ता है, जिसके बाद मई और जून के महीने में बस 2 महीने के लिए यह फल खाने को मिलता है। इसीलिए लसोड़ा का फल दुर्लभ फलों की श्रेणी में आता है। इसे कच्चा खाने के साथ ही पकाकर भी खाया जा सकता है। कच्चा लसोड़ा जहां कसैला होता है और आपके मुंह का स्वाद बिगाड़ सकता है, वहीं पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं, जो काफी स्वादिष्ट लगते हैं। देश के अलग जिन हिस्सों में यह फल पाए जाते हैं, वहां इनका अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया जाता है। कहीं इसके लड्डू बनाए जाते हैं, तो कहीं अचार।

लसोड़ा का वास्तु अनुसार महत्व

लसोड़ा पेड़ को इसकी ठोस लकड़ी के लिए अत्यधिक महत्व दिया जाता है, जो दीमक के खिलाफ फायदेमंद है और माना जाता है कि इसे घर के अंदर रखने पर शांति मिलती है। ग्रामीण इलाकों में कभी-कभी पान के पत्ते की जगह पेड़ की छाल चबायी जाती है और इसका मुंह और जीभ पर लाली जैसा असर होता है। इस पेड़ का उपयोग मथानी बनाने के लिए किया जाता है, जो इसकी लकड़ी से बनी एक पारंपरिक वस्तु है। इसके अलावा गर्मियों में मिलने वाला यह फल शरीर को ठंडा रखने में भी मदद करता है।

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