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भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन को अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रिप्स) नियमों से छूट देने का प्रस्ताव किया था।
दुनिया के तमाम विकासशील और गरीब देशों को आसानी से और सस्ती दरों पर वैक्सीन उपलब्ध कराने की भारतीय मुहिम को अमेरिकी प्रशासन ने भी अपने देश की पावरफुल लाबी को दरकिनार कर समर्थन देने का फैसला किया है। भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन को अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रिप्स) नियमों से छूट देने का प्रस्ताव किया था।
इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ (ईयू) का समर्थन लेने का प्रस्ताव शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भारत-ईयू शिखर बैठक में भी रखा जाएगा। अगर सभी विकसित देशों का समर्थन मिल गया तो दुनिया में अभी कोरोना के खात्मे के लिए जितनी वैक्सीन का उत्पादन हो रहा है, उन पर बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े प्रतिबंध कुछ समय के लिए (अस्थायी तौर पर) हटा लिए जाएंगे।
ट्रिप्स नियमों से छूट मिलने के बाद सिर्फ गिनी-चुनी कंपनियां ही वैक्सीन नहीं बनाएंगी बल्कि तमाम देशों की कंपनियां इसका उत्पादन कर सकेंगी। अभी पेटेंट बाध्यताओं की वजह से ऐसा नहीं किया जा सकता। जिन कंपनियों ने वैक्सीन विकसित की है और उसके शोध पर पैसा खर्च किया है, अभी वही बना सकती हैं। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होने से तेजी से टीकाकरण अभियान चलाकर दुनिया को कोरोना मुक्त किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होने से इसकी कीमत भी कम आएगी।
सनद रहे कि अभी तमाम छोटे देशों को वैक्सीन नहीं मिल पा रही है, जबकि भारत समेत कई देशों में किल्लत है। अक्टूबर, 2020 में भी भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन को ट्रिप्स नियमों के जाल से बाहर निकालने का प्रस्ताव पेश किया था। अमेरिका ने शुरुआत में इसका समर्थन नहीं किया था, लेकिन भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह पूरी दुनिया में भय की लहर पैदा की है उससे उसका रुख बदला है। ईयू की तरफ से भी संकेत आया है कि वह भी इस बारे में सकारात्मक है।
कोरोना महामारी से निपटने असाधारण कदम उठाने की जरूरत
अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) कैथरीन ताई की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि अभी हेल्थ सेक्टर में वैश्विक संकट का समय चल रहा है। अभी असाधारण समय है और इसके समाधान के लिए असाधारण कदम उठाने की जरूरत है। हमारा प्रशासन बौद्धिक संपदा अधिकार में पूरा भरोसा रखता है, लेकिन इस महामारी के खात्मे के लिए जरूरी है कि कोरोना वैक्सीन को इसके तहत जो प्रश्रय मिला है, उसे हटाया जाए। इसे अमल में लाने के लिए विश्व व्यापार संगठन के तहत होने वाली चर्चाओं में हम इसका समर्थन करेंगे। हम जितनी जल्द हो सके, ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रभावशाली तरीके से वैक्सीन देने का समर्थन करते हैं। अमेरिकी लोगों को वैक्सीन आपूर्ति पहले से ही सुरक्षित है। हम निजी क्षेत्र और दूसरे साझीदारों के साथ मिलकर वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने और उसका वितरण सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे। हम वैक्सीन उत्पादन के लिए जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाने पर भी काम करेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किया स्वागत
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने अमेरिकी सहयोगी के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं में इस मुद्दे को उठाया था। अमेरिका में भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधू इस मुद्दे को वहां सरकार के स्तर पर और अमेरिकी सांसदों के बीच लगातार उठा रहे थे। भारत सरकार ने इस कदम का स्वागत किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अमेरिका का ऐतिहासिक समर्थन करार देते हुए स्वागत किया है। राष्ट्रपति बाइडन के इस फैसले की अमेरिका की फार्मास्यूटिकल्स लाबी में भारी आलोचना भी हो रही है। उनका कहना है कि इस तरह के कदम से भविष्य में निजी क्षेत्र को शोध व विकास के लिए हतोत्साहित किया जा रहा है।
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