भारत

Forest Clearance के चक्कर में पांच साल से फंसा ट्राइबल रिसर्च इंस्टीच्यूट

Shantanu Roy
8 July 2024 10:06 AM GMT
Forest Clearance के चक्कर में पांच साल से फंसा ट्राइबल रिसर्च इंस्टीच्यूट
x
Shimla. शिमला। हिमाचल प्रदेश में पांच साल पहले प्रस्तावित ट्राइबल रिसर्च इंस्टीच्यूट फारेस्ट क्लीयरेंस के चक्कर में फंसा है। इस संस्थान के लिए एक हेक्टेयर जमीन चिन्हित है, मगर इस जमीन को एफसीए की मंजूरी नहीं मिल पाई है। ऐसे में प्रदेश सरकार ने अब इसे फोरेस्ट रिजर्व एक्ट यानी एफआरए में मंजूरी लेने का प्रयास शुरू किया है। माना जा रहा है कि अब जल्दी ही इसे मंजूरी मिल जाएगी, जिसके साथ केंद्र सरकार से पैसे की डिमांड भी कर दी गई है। इस संस्थान पर करीब 15 से 20 करोड़ रुपए का खर्च होगा और हिमाचल के लिए यह संस्थान अहम है। शिमला के साथ लगते घणाहट्टी से आगे घरोग में इस जनजातीय शोध केंद्र के लिए जमीन देखी गई है। सूत्रों के अनुसार इस संबंध में पिछले कल ही भारत सरकार के जनजातीय विकास मंत्रालय ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के बारे में जाना। प्रदेश के अधिकारियों ने ताजा स्थिति की जानकारी दी और इसके निर्माण के लिए पैसे की डिमांड रखी। भारत सरकार का जनजातीय विकास मंत्रालय इसके लिए हिमाचल को 15 से 20 करोड़ रुपए का बजट देगा,
जिसकी सैद्धांतिक मंजूरी हो चुकी है।

वर्ष 2019 में हिमाचल को केंद्र ने यह प्रोजेक्ट मंजूर किया है। प्रदेश के जनजातीय विकास विभाग ने घणाहट्टी के घरोग में इसके लिए जमीन का चयन कर इसका केस बनाकर एफसीए की मंजूरी के लिए भेजा था लेकिन एफसीए में इसे मंजूरी नहीं मिल पाई। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय बार-बार इसको लेकर आपत्तियां लगाता रहा। अब विभाग ने संशोधित प्रस्ताव तैयार किया है। इसमें केवल 12 बीघा ही जमीन चिन्हित की गई है लिहाजा अब इसका मसौदा वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत बनाया गया है। क्योंकि इतनी जमीन को वन विभाग के डीएफओ मंजूर करने के लिए सक्षम हैं इसलिए केस को डायवर्ट किया है। वन विभाग से इसमें जल्द मंजूरी मांगी गई है। विभाग की मंजूरी मिलने के बाद इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा, जिसके लिए बजट भी जल्द मिलने की उम्मीद है। बताया जाता है कि इस रिसर्च संस्थान में कई तरह की सुविधाएं होंगी। देश के दूसरे राज्यों में बड़े पैमाने पर इस तरह के संस्थान बनाए गए हैं, जहां पर जनजातीय लोगों को सुविधाएं मिलती हैं। शिला में भी इस संस्थान के माध्यम से एक जनजातीय संग्रहालय बनाया जाएगा। प्रदेश में सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह बड़ी पहल होगी। इसमें दशकों पहले जनजातीय लोग जिन रोजमर्रा की वस्तुओं का इस्तेमाल करते थे, उन्हें संजोकर रखा जाएगा। संग्रहालय में रोजमर्रा की कई ऐसी वस्तुएं रखी जाएंगी, जिनके नाम युवा पीढ़ी भूल चुकी है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण होगा।
Next Story