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गुलाम नबी आजाद के समर्थन में इस्तीफा शुरू, इधर जयराम रमेश बोले- पहले संसद में मोदी के आंसू, फिर पद्म विभूषण, फिर मकान का एक्सटेंशन…यह संयोग नहीं सहयोग है!

jantaserishta.com
26 Aug 2022 10:08 AM GMT
गुलाम नबी आजाद के समर्थन में इस्तीफा शुरू, इधर जयराम रमेश बोले- पहले संसद में मोदी के आंसू, फिर पद्म विभूषण, फिर मकान का एक्सटेंशन…यह संयोग नहीं सहयोग है!
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न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान
जम्मू-कश्मीर में कई नेता नाराज।

नई दिल्ली: गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से अपने 51 साल पुराने रिश्ते को तोड़ दिया है और अब नई पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उनके इस फैसले से कांग्रेस के नेता भड़क गए हैं। इस बीच वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उनके डीएनए पर ही सवाल उठा दिया है। मीडिया से बात करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि गुलाम नबी आजाद का डीएनए मोदीफाइड हो गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे शख्स को जिसे कांग्रेस की लीडरशिप ने इतना सम्मान दिया, उसने बेहद निजी और घटिया हमले करके विश्वासघात किया है। उन्होंने कहा कि आजाद के इस रवैये से उनका असली कैरेक्टर सामने आ गया है।

कांग्रेस के एक अन्य नेता संदीप दीक्षित ने भी गुलाम नबी आजाद के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुझे इसमें विश्वासघात की बू आ रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी में रहना जरूरी था। जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस इस वक्त महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ रही है और ऐसे वक्त में गुलाम नबी आजाद का पार्टी से अलग हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जयराम रमेश बोले, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है कि ऐसे वक्त में यह हुआ है, जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी भाजपा से मुद्दों पर लड़ रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी और ध्रुवीकरण के खिलाफ मुकाबला कर रहे हैं।'
यही नहीं पवन खेड़ा ने तो गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को राज्यसभा की सीट से भी जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इस बार गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा नहीं भेजा। शायद इसी वजह से उनका पार्टी से इस्तीफा आया है। पवन खेड़ा ने कहा कि जब से उनकी राज्यसभा सीट चली गई थी, वह बेचैन हो गए थे। इससे पता चल जाता है कि वह बिना पद के एक सेकेंड के लिए भी नहीं रह सकते।
बता दें कि गुलाम नबी आजाद ने आज ही 5 पन्नों का लंबा खत सोनिया गांधी को लिखकर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इस पत्र में राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उनके राजनीति में आने के बाद से ही कांग्रेस की वह व्यवस्था समाप्त हो गई, जिसमें सबकी सहमति और समन्वय से काम किया जाता था।


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