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Solar Energy उत्पादन की नई तकनीक से घटेगा मावन स्वास्थ्य को खतरा

Shantanu Roy
19 July 2024 10:21 AM GMT
Solar Energy उत्पादन की नई तकनीक से घटेगा मावन स्वास्थ्य को खतरा
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मंडी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए पांच नई प्रौद्योगिकियों की खोज की है। इन पांच नई तकनीक के जरिये सौर ऊर्जा उत्पादन में अधिक टिकाऊ, लाभदायक और पर्यावरण व इंसानों को नुकसान पहुंचाए बिना खोजा गया है। इन पांच सौर सेल प्रौद्योगिकियों का एक व्यापक जीवन चक्र मूल्यांकन किया है। इनमें से भी दो ऐसी प्रौद्योगिकी वैज्ञानिकों को मिली हैं, जो कि डाइऑक्साइड उत्सर्जन व ओजोन क्षरण क्षमता को करने के साथ ही मानव स्वास्थ्य व वायु प्रदूषण पर भी कम प्रभाव डालती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार सौर ऊर्जा उत्पादन करने पर कई जानलेबी बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जिससे मनुष्य के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है, इसलिए शोधकर्ताओं ने कैडमियम टेल्यूराइड तकनीक को सबसे उत्तम बताया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि कैडमियम टेल्यूराइड तकनीक पर्यावरण पर सबसे कम प्रभाव डाला। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, ओजोन क्षरण क्षमता, मानव स्वास्थ्य प्रभाव और कण
वायु प्रदूषण सबसे कम था।

इसके बाद कॉपर इंडियम गैलियम सेलेनाइड सेल का स्थान रहा। शोधकर्ताओं ने मोनो सिलिकॉन, पॉलीसिलिकॉन, कॉपर इंडियम गैलियम सेलेनाइड, कैडमियम टेल्यूराइड, निष्क्रिय उत्सर्जक और रियर संपर्क पर शोध किया। शोध दल ने जीवन चक्र आकलन उपकरण का उपयोग करके क्रेडलटूगेट विश्लेषण किया, जिसमें अठारह पर्यावरणीय प्रभाव श्रेणियां शामिल थीं। इन श्रेणियों में कच्चे माल के निष्कर्षण से लेकर सौर पैनल निर्माण तक ग्लोबल वार्मिंग, समताप मंडलीय ओजोन क्षरण, मानव कैंसरजन्य और गैर कैंसरजन्य विषाक्तता और सूक्ष्म कण पदार्थ निर्माण जैसे आवश्यक पहलू शामिल थे। यह अग्रणी अध्ययन आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर डा. अतुल धर और डा. सत्वशील रमेश पोवार और डा. श्वेता सिंह द्वारा सह लिखित प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ पर्यावरण प्रबंधन में प्रकाशित हुआ है। इस शोध के निहितार्थ के बारे में बोलते हुए, आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सत्वशील रमेश पोवार ने कहा कि सौर मॉड्यूल प्रौद्योगिकियों के जीवन चक्र मूल्यांकन से सबसे अधिक टिकाऊ प्रौद्योगिकी की पहचान करने में मदद मिल सकती है, जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को संतुलित करती है।
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