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नेताओं ने भुंतर वैली ब्रिज पर रुलाई जनता

Shantanu Roy
4 April 2024 11:12 AM GMT
नेताओं ने भुंतर वैली ब्रिज पर रुलाई जनता
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भुंतर। चुनावी मौसम में वोटरों के दरवाजे पर वोट मांगने पहुंच रहे सियासी हुकमरानों को जिला कुल्लू के भुंतर का वैली ब्रिज का सवाल नजरें चुराने को मजबूर कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नगरी कुल्लू-मनाली आने वाले सैलानियों व अन्य यात्रियों को एक दशक से परेशान कर रहे भुंतर के वैली ब्रिज में नेताओं की सियासी गाड़ी फंसने वाली है। इस पुल को बनाने के लिए नेताओं की नाटकबाजी यहां से गुजरने वाले यात्रियों व वाहन चालकों को सालों से झकझोरा रही है। भाजपा और कांग्रेस के लिए राजनीति का केंद्र बना भुंतर का बैली ब्रिज एक ऐसा मसला है जो कई सालों से नेताओं को सियासी चुनौती पेश कर रहा है तो यहां से गुजरने वालों को परेशानी ही परेशानी। इस पुल की सियासत और लोगों को परेशान करने की कहानी साल 2008 से आरंभ हुई जब भारी मशीन यहां से गुजरने के कारण पुल टूट गया। तभी से यह पुल वाहनों का बोझ नहीं संभाल पाया है। हर तीन से छह माह के बाद मुरम्मत मांगने लगा।

कांग्रेस ने व्यवस्था परिवर्तन का नाम देकर इस पुल को जीवनदान देने की बात कही थी लेकिन डेढ़ साल में हालात जस के तस है और हल्के वाहनों के अलावा कोई वाहन यहां से नहीं गुजर पा रहा है। स्थानीय लोगों व सामाजिक संगठनों ने सैंकड़ों बार पुल को चौड़ा करने और यहां पर नया पुल बनाने के लिए मिन्नतें की लेकिन किसी ने रूचि नहीं दिखाई। वर्ष 2013-14 के बाद पुल की हालत और ज्यादा खराब होने लगी है। राशि स्वीकार होने के बाद भी प्रदेश और केंद्र में अपनी-अपनी सता को रौब दिखाने में ही दोनों दलों के नेता मशगूल रहे। प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद इस पुल के करीब 72 लाख मंजूर हुए लेकिन जुलाई में हुई आपदा के बाद से पुल के एक हिस्से का भार दूसरे के उपर डाल काम चलाया जा रहा है। वोटर अब नेताओं से चुनावों में लेखा-जोखा भी लेने वाले हैं। सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के अनुसार नेताओं ने इस पुल के मामले में जिस तरह से जनता को आंखे दिखाई हैं। वैसा ही इनके साथ भी होगा। भुंतर विकास समिति के अध्यक्ष मेघ सिंह कश्यप व अन्य प्रतिनिधि कहते हैं कि चुनावों में नेताओं से इसका हिसाब लिए बिना वोट नहीं दिए जाएंगे। बहरहाल, वैली ब्रिज नेताओं का हिसाब करने वाला है।
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