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Hospice. धर्मशाला। प्रदेश का सबसे बड़ा जिला कांगड़ा का हिमाचल में सरकार बनाने में सबसे बड़ा योगदान रहता है। वर्तमान में भी जिला ने 10 विधायक देकर सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार बनवाई है। ऐसे में प्रदेश सरकार के दो साल पूरा होने और जिले के दो सीपीएस हटने के बाद क्षेत्रीय व जातीय संतुलन साधने को कांगड़ा जिला की मंत्री पद के लिए दावेदारी मजबूत हो गई है। कांगड़ा जिला से पूर्व में सीपीएस रहे आशीष बुटेल और किशोरी लाल के अलावा ज्वालामुखी से संजय रतन और फतेहपुर से भवानी पठानिया दूसरी बार विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं। कांगड़ा से चौधरी चंद्र कुमार और यादविंद्र गोमा दो मंत्री हैं, लेकिन चार संगठनातमक जिलों वाले कांगड़ा से पूर्व में तीन या चार मंत्री होते थे। अभी मंत्रिमंडल में एक स्थान खाली है और दो अन्य मंत्रियों को भी बदलने के कयास लगाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री सुक्खू सियासी बैलेंस बनाने के साथ भविष्य की राजनीति को साधने के लिए कांगड़ा पर फोकस करते हैं, तो यहां हालात कुछ और बन सकते हैं।
कांगड़ा जिला को चार संगठनात्मक जिलों में बांट कर देखा जाए, तो अभी तक देहरा जिला का सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं है। तीन विधानसभा क्षेत्रों वाले इस जिला में दो विधायक कांग्रेस, तो एक भाजपा के हैं। इनमें ज्वालामुखी के विधायक संजय रतन वरिष्ठता के हिसाब से सबसे प्रवल दावेदारों में हैं। पिछले दिनों भी संजय रतन का नाम मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए चला था, लेकिन अभी तक उनके नाम पर मुहर नहीं लग पाई है। संगठनात्मक जिला नूरपुर की बात करें, तो जवाली विधानसभा क्षेत्र से चौधरी चंद्र कुमार मंत्री हैं, लेकिन फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से भवानी पठानिया की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है। भवानी पठानिया वर्तमान में राज्य योजना बोर्ड के कैबिनेट रैंक उपाध्यक्ष हैं और दूसरी बार के विधायक बने हैं। उनके पिता सुजान सिंह पठानिया भी पूर्व में मंत्री रहे हैं। संगठनात्मक जिला पालमपुर से यादविंद्र गोमा मंत्री हैं, लेकिन पूर्व सीपीएस आशीष बुटेल का नाम भी इस सूची में सबसे आगे है। इतना ही नहीं, उनके पिता बृज बिहारी लाल बुटेल भी कांग्रेस के निष्ठावान नेता होने के साथ-साथ पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं।
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