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दो भाइयों का अमर-प्रेम: साथ जिये साथ मरे, एक ही दिन हुई थी शादी

jantaserishta.com
2 Feb 2022 9:12 AM GMT
दो भाइयों का अमर-प्रेम: साथ जिये साथ मरे, एक ही दिन हुई थी शादी
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नई दिल्ली: राजस्थान के सिरोही (Sirohi, Rajasthan) में दो भाई मरते दम तक साथ रहे. इन दो भाइयों की अनूठी प्रेम कहानी इलाके में चर्चा का विषय है. भाइयों के बीच लगाव, प्यार और मरते दम तक साथ निभाने के जज्बे की लोग मिसाल दे रहे हैं. तो आइए जानते हैं इन दो भाइयों की कहानी..

दरअसल, हम बात कर रहे हैं सिरोही के रेवदर उपखंड के डांगराली गांव के दो बुजुर्ग भाइयों रावताराम और हीराराम देवासी की. जन्म में भले ही दोनों भाइयों के बीच कई सालों का फासला रहा हो, लेकिन इन भाइयों का साथ जिंदगी भर का रहा. संयोग ऐसा कि दोनों का विवाह भी एक ही दिन हुआ और दोनों ने जिंदगी को अलविदा भी एक ही दिन कहा.
आखिरी सांस तक भाइयों का साथ
रावताराम और हीराराम ने आखिरी सांस भी महज 15-20 मिनट के अंतराल में ली. जन्म के बाद से जीवनभर दोनों भाइयो में इतना प्यार रहा कि इलाके में उनकी मिसाल दी जाती थी.
डांगराली गांव में रावताराम और हीराराम के घर में इस वक़्त मातमी माहौल है. हाल ही में घर के दो बुजुर्गो की अर्थियां एक साथ ही उठीं. रावताराम के बड़े बेटे भीकाजी पर अब परिवार की जिम्मेदारी है. भीकाजी के जेहन में अपने पिता रावताराम और चाचा हीराराम के आपसी प्रेम की वसीयत को संभालने की जिम्मेदारी है. दोनों परिवारों में कुल 11 भाई बहन है.
प्रेम और भाईचारे की लोग मिसाल देते थे
पूछने पर भीकाराम नम आंखों से मौत के दिन से पहले का किस्सा सुनाते हुए कहते है की पिता (रावताराम 90 वर्ष तकरीबन) और काका (हीराराम 75 वर्ष तकरीबन) के आपसी प्रेम और भाईचारे के किस्से इलाके भर में मशहूर थे. उन्हें अभी तक यकीन नहीं हो पा रहा है की इस तरह दोनों एक साथ ही परिवार को छोड़ कर चले जाएंगे. भीकाराम बताते है की काका हीराराम कुछ दिनों से अस्वस्थ थे, लेकिन उनके पिता रावताराम एकदम चुस्त-दुरुस्त थे. 28 जनवरी को सुबह से पिता जी कुछ खाया नहीं था.
मौत बनी पहेली!
भीकाराम बताते है यह बात जब उनकी मां को पता चली तो उन्होंने पिता जी से कुछ खाने की मनुहार की. मां के कहने पर उनके पिता ने बिस्किट खाए और फिर काका का हाल पूछा और सो गए इसके बाद वो नहीं उठे.
29 जनवरी सुबह करीब 8 से 9 के बीच उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. भीकाराम कहते हैं इधर उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा और उधर काका हीराराम ने ठंड लगने का कहकर चारपाई को बाहर धूप में लेने का कहा. इसके कुछ ही देर में (करीब 15 से 20 मिनट के अंतराल) उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए.
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