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शर्मशार नहीं होना है तो नैनाटिक्कर मत जाइए

Shantanu Roy
28 April 2024 12:17 PM GMT
शर्मशार नहीं होना है तो नैनाटिक्कर मत जाइए
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नैनाटिक्कर। शिमला संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में समस्याएं इतनी हैं कि एक पत्थर उठाओ तो हजार समस्याएं देखने को मिलती हैं। गौर हो की नैनाटिक्कर कस्बा पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है तथा सिरमौर का स्वागत द्वार भी नैनाटिक्कर को कहा जाता है, परंतु विकास की दौड़ में यह लगातार पिछड़ता जा रहा है या यूं कहे कि विकास तो बहुत दूर की बात है परंतु मूलभूत सुविधाएं भी यहां राजनेता मुहैया नहीं करवा पाए हैं। बता दें कि भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत दो अक्तूबर, 2014 को की गई तथा स्वच्छ भारत अभियान के तहत सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण भी भारत सरकार द्वारा देश में जगह-जगह करवाया गया, परंतु नैनाटिक्कर में इस अभियान के तहत कोई भी सार्वजनिक शौचालय नहीं बनवाया गया है। जिस कारण रोजाना सैकड़ों लोग यहां खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं। हालांकि सन 2006 में पर्यटन विभाग द्वारा एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण नैनाटिक्कर कस्बे में करवाया गया था, परंतु पिछले लगभग एक वर्ष से इस शौचालय में ताला लटका है।
गौर हो कि नैनाटिक्कर में प्रतिदिन दर्जनों निजी एवं सरकारी बसें भोजन करने के लिए रूकती हैं तथा छह पंचायतों का केंद्र बिंदु भी नैनाटिक्कर कस्बा है जिस कारण प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र से भी सैकड़ों लोग यहां आते हैं, परंतु सार्वजनिक शौचालय न होने की वजह से सभी लोगों को खुले में शौच जाना पड़ता है जिस कारण जहां एक और कस्बे में गंदगी का आलम है। वहीं दूसरी ओर खुले में शौच जाना महिलाओं का शर्मसार करता है, परंतु केंद्र सरकार के नुमाइंदे तथा राजनेता आज तक स्वच्छ भारत अभियान के तहत यहां एक अद्भुत शौचालय का निर्माण भी नहीं करवा पाए हैं। जबकि पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत बड़े-बड़े भाषण और घोषणाएं सुनने को मिलती हैं। वहीं दूसरी ओर पर्यटन विभाग भी शौचालयों की मरम्मत करने में नाकाम रहा है तथा बार-बार स्थानीय लोगों द्वारा शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी पर्यटन विभाग द्वारा इन शौचालय की मरम्मत नहीं करवाई गई है। बहरहाल बात चाहे जो भी हो परंतु नैनाटिक्कर कस्बे में सार्वजनिक शौचालय न होने की वजह से गंदगी साफ देखी जा सकती है तथा महिलाओं को भी खुले में शौच जाने में शर्मसार होना पड़ रहा है जो कि राजनेताओं की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े करता है।
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