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सिख और मराठा नायकों का इतिहास पुस्तकों में किया जाए शामिल, संसदीय पैनल ने की सिफारिश

Renuka Sahu
1 Dec 2021 4:46 AM GMT
सिख और मराठा नायकों का इतिहास पुस्तकों में किया जाए शामिल, संसदीय पैनल ने की सिफारिश
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फाइल फोटो 

शिक्षा पर बनी एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि पाठ्यपुस्तकों में सिख और मराठा स्वतंत्रता सेनानियों का चित्रण निष्पक्षता से हो और महिलाओं की भूमिका को भी शामिल किया जाए।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शिक्षा पर बनी एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि पाठ्यपुस्तकों में सिख और मराठा स्वतंत्रता सेनानियों का चित्रण निष्पक्षता से हो और महिलाओं की भूमिका को भी शामिल किया जाए। समिति ने कहा है कि कई ऐतिहासिक शख्सियतों और स्वतंत्रता सेनानियों को गलत तरीके से ''अपराधियों'' के रूप में चित्रित किया गया है। समित ने सिफारिश की है कि इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में उन्हें उचित सम्मान देने के लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के गलत चित्रण को ठीक किया जाना चाहिए।

''स्कूल की पाठ्य पुस्तकों की सामग्री और डिजाइन में सुधार'' विषय पर स्थायी समिति की रिपोर्ट में पाठ्यक्रम में सिख और मराठा इतिहास के साथ-साथ पुस्तकों को लिंग-समावेशी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। राज्यसभा सदस्य विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट को मंगलवार को संसद में पेश किया गया।
इसमें कहा गया है कि भारतीय इतिहास से जुड़ी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास की सभी अवधि के उपयुक्त उद्धरण का उल्लेख किया जाना चाहिए जिसमें प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है, ''समिति ने अपनी बातचीत के दौरान गौर किया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई ऐतिहासिक शख्सियतों और स्वतंत्रता सेनानियों को अपराधियों के रूप में गलत तरीके से चित्रित किया गया है। इसलिए, समिति का विचार है कि स्वतंत्रता संग्राम के हमारे नायकों के गलत चित्रण को ठीक किया जाना चाहिए और उन्हें हमारी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।''
समिति ने कहा कि स्कूली पाठ्यपुस्तकों में विक्रमादित्य, चोल, चालुक्य, विजयनगर, गोंडवाना या उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के त्रावणकोर और अहोम जैसे कुछ महान भारतीय साम्राज्यों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है और विश्व मंच पर भारत की स्थिति के विस्तार में इन लोगों योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ''नई पाठ्यपुस्तकें तैयार करने में इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अंग्रेजों ने दर्शनशास्त्र, विज्ञान, गणित, अध्यात्म, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में प्राचीन भारत के महान योगदान को कम करने की कोशिश की और हमारी पाठ्यपुस्तकों में इसे उपेक्षित रखा गया। जबकि लैंगिक पूर्वाग्रह और जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए काफी पहल की गई थी, इतिहास लेखन पांच दशकों से अधिक समय तक कुछ शिक्षाविदों के एक चुनिंदा समूह के आधिपत्य तक ही सीमित रहा।''
समिति को इस विषय पर विशेषज्ञों, व्यक्तियों और संगठनों से लगभग 20,000 अभ्यावेदन प्राप्त हुए, जो स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में विसंगतियों / चूक की ओर इशारा करते हैं। समिति ने सुझाव दिया कि स्कूली पाठ्य पुस्तिकाओं में देश के विभिन्न राज्यों एवं जिलों के ऐसे अनाम पुरुषों एवं महिलाओं के जीवन को रेखांकित किया जाना चाहिए जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय इतिहास एवं अन्य पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के निदेशक ने समिति को बताया कि पाठ्य पुस्तकों में इतिहास से परे तथ्यों को हटाने एवं हमारे राष्ट्रीय विभूतियों के बारे में बातों को तोड़ मरोड़ की पेश करने के मुद्दे पर एनसीईआरटी एक समिति गठित करने की प्रक्रिया में है ताकि इस बारे में विभिन्न पक्षकारों द्वारा उठाए गए विषयों एवं अन्य मुद्दों का आकलन किया जा सके और इसका निपटारा किया जा सके।
इसमें कहा गया है कि एनसीईआरटी महान महिला नेत्रियों की भूमिकाओं को रेखांकित कर रही है जिसमें गार्गी, मैत्रेयी के अलावा झांसी की रानी, रानी चेन्नमा, चांद बीबी आदि शामिल हैं। इसके अलावा अन्य पूरक सामग्री भी उपलब्ध कराई गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नई पाठ्य पुस्तकों एवं पूरक सामग्री में भारतीय इतिहास की विभिन्न अवधियों से संबद्ध इतिहास की महान महिलाओं के बारे में विस्तृत जानकारी एवं ई सामग्री उपलबध कराई जायेगी। समिति को यह भी बताया गया कि एनसीईआरटी द्वारा माध्यमिक शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (एनसीएफएसई) विकसित करने के लिए जमीनी कार्य शुरू किया जा चुका है।
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