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FIR दर्ज करने के नए प्रावधान से सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विरोधाभास

Shantanu Roy
23 July 2024 10:23 AM GMT
FIR दर्ज करने के नए प्रावधान से सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विरोधाभास
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Dharmashaala. धर्मशाला। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 की धारा-173 (3) के तहत विरोधाभास वाली स्थिति उत्पन्न कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार और अन्य (2013) के फैसले के अनुसार संज्ञेय मामलों में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। हालांकि, नए प्रावधान के तहत पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर, जो तीन वर्ष या उससे अधिक लेकिन सात वर्ष से कम की सजा वाला हो, पुलिस स्टेशन के अधिकारी, उप-अधीक्षक रैंक के अधिकारी की पूर्व अनुमति से अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए यह निर्धारित करने के लिए कि क्या मामले में प्राथमिक दृष्टि से मामला बनता है, 14 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच कर सकते हैं, या दूसरी स्थिति में जब प्राथमिक दृष्टि से मामला बनता है, तो जांच आगे बढ़ा सकते हैं। विधि विशेषज्ञ और ए प्लस लॉ अकादमी न्यायिक सेवा कोचिंग संस्थान दाड़ी धर्मशाला के निदेशक अरुण भार्गव ने बताया कि यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है, और पुलिस को अधिक अधिकार देता है, जिससे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा पर प्रश्न चिह्न खड़े हो गए हैं। ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि प्राथमिकी दर्ज करना न्याय की दिशा में पहला कदम है, और यदि इसे दर्ज नहीं किया जाता है, तो यह न्याय प्रणाली की विफलता होगी।

धारा 173 (3) के तहत सात वर्ष तक की सजा वाले मामलों में पुलिस प्राथमिकी दर्ज किए बिना प्रारंभिक जांच शुरू कर सकती है, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के स्पष्ट रूप से विरोधाभासी है। इससे पुलिस को बहुत व्यापक अधिकार मिलते हैं, जिससे यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं होती, तो घटना की जानकारी अन्य किसी प्राधिकरण को नहीं मिलती, और प्रारंभिक जांच के बाद पुलिस यदि यह कहती है कि कोई मामला नहीं बनता, तो प्राथमिकी दर्ज नहीं होगी, और मामला केवल पुलिस स्टेशन में ही बंद हो जाएगा। विधायिका और न्यायपालिका के बीच इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी समय में इस विषय पर क्या निर्णय होता है। एएसपी बीर बहादुर सिंह ने बताया कि नए नियमों के तहत ऐसे मामले जिनमें शुरुआती जांच करने की आवश्यकता होगी, उनमें 14 दिन तक जांच की जाएगी। हालांकि हर दिन की रिपोर्ट व परशिमन पुलिस अधिकारी सुपरवाइजर को देना अनिवार्य होगा, साथ ही मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय में भी इस संबंध में सूचित किया जाएगा।
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