FIR दर्ज करने के नए प्रावधान से सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विरोधाभास
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Dharmashaala. धर्मशाला। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 की धारा-173 (3) के तहत विरोधाभास वाली स्थिति उत्पन्न कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार और अन्य (2013) के फैसले के अनुसार संज्ञेय मामलों में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। हालांकि, नए प्रावधान के तहत पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर, जो तीन वर्ष या उससे अधिक लेकिन सात वर्ष से कम की सजा वाला हो, पुलिस स्टेशन के अधिकारी, उप-अधीक्षक रैंक के अधिकारी की पूर्व अनुमति से अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए यह निर्धारित करने के लिए कि क्या मामले में प्राथमिक दृष्टि से मामला बनता है, 14 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच कर सकते हैं, या दूसरी स्थिति में जब प्राथमिक दृष्टि से मामला बनता है, तो जांच आगे बढ़ा सकते हैं। विधि विशेषज्ञ और ए प्लस लॉ अकादमी न्यायिक सेवा कोचिंग संस्थान दाड़ी धर्मशाला के निदेशक अरुण भार्गव ने बताया कि यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है, और पुलिस को अधिक अधिकार देता है, जिससे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा पर प्रश्न चिह्न खड़े हो गए हैं। ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि प्राथमिकी दर्ज करना न्याय की दिशा में पहला कदम है, और यदि इसे दर्ज नहीं किया जाता है, तो यह न्याय प्रणाली की विफलता होगी।