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बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज की अमेरिकी दंपति की याचिका, कहा था- 2020 से बेटे के बर्ताव में आया अंतर, जानिए पूरा मामला

HARRY
6 Sep 2021 7:41 AM GMT
बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज की अमेरिकी दंपति की याचिका, कहा था- 2020 से बेटे के बर्ताव में आया अंतर, जानिए पूरा मामला
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने अमेरिकी दंपति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने बेटे के मानसिक स्वास्थ्य की जांच कराने का आदेश देने की अपील की थी. कोर्ट ने अफसोस जताते हुए कहा कि 25 साल का बेटा अगर अपने माता पिता से बात नहीं करता, तो हम इसके लिए बेटे को मानसिक सेहत की जांच कराने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. हालांकि, कोर्ट ने बेटे के इस बर्ताव को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

अमेरिकी दंपति ने याचिका दायर कर कहा था कि उनके बेटे की मानसिक सेहत ठीक नहीं है. इसलिए उनके बेटे की मानसिक रोग विशेषज्ञों से जांच कराने का निर्देश दिया जाए. ताकि उसकी मानसिक स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके. यह याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत दायर की गई थी
दरअसल, दंपति का बेटा 2019 में वेदांत कोर्स करने के लिए अमेरिका से भारत आया था. तब से वह मालावली में अकेडमी में ही रह रहा था. लेकिन उन्हें 2020 में अपने बेटे के आचरण व व्यक्तित्व में अचानक काफी बदलाव देखने को मिला. इतना ही नहीं दंपति का कहना है कि उनके बेटे को काफी क्रोध भी आने लगा, वह खुद और दूसरों के जीवन को नुकसान पहुंचाने की धमकी देने लगा.
उसके व्यवहार को देखकर माता पिता को लगा कि उनका बेटा डिप्रेशन और मानसिक बीमारी से गुजर रहा है. इसके बाद माता पिता ने संस्थान और उसके अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद माता पिता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने बेटे को तलब किया.
जस्टिस एस एस शिंदे और जस्टिस एन जे जमादार ने चैंबर में बेटे से "काफी लंबे समय तक" बात की. इस पर बेंच का मानना था कि माता पिता और बेटे में विश्वास की कमी थी. ऐसे में कोर्ट ने दोनों पक्षों की सहमति पर मध्यस्थता की सलाह दी. हालांकि, युवक ने मध्यस्थता से मना कर दिया.
वरिष्ठ अधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने दंपति की ओर से पेश हुए, उन्होंने कोर्ट को बताया कि दंपति बेटे की भलाई के लिए चिंतित हैं. उन्होंने कहा, मेंटल हेल्थ कानून के तहत यदि किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है तो पुलिस उसे उसकी सुरक्षा के लिए हिरासत में ले सकती है. ऐसे में उसके मौलिक अधिकारों को ज्यादा तरजीह देना अपेक्षित नहीं है. उन्होंने कहा कि दंपति का बेटा मानसिक सेहत की जांच की सहमति नहीं दे रहा है. सिर्फ इसलिए जांच का निर्देश न देना उचित नहीं होगा.
चेंबर में बातचीत के दौरान बेंच ने दंपति के बेटे को शारीरिक रुप से फिट और मानसिक रूप से सचेत पाया. कोर्ट ने पाया कि युवक को अपने आस पास की गतिविधियों की जानकारी है और वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहता है. कोर्ट ने माना कि विश्वास की कमी के चलते याचिकाकर्ता व उसके बेटे के बीच दूरी आई है. बेटे का अपने माता पिता से बातचीत ना करना दुर्भाग्यपूर्ण है.
कोर्ट ने कहा, हम याचिकार्ता की ओर से दी गईं दलीलों से सहमत नहीं है. याचिका में युवक को मानसिक जांच कराने के लिए बाध्य करने के लिए कहा गया. ऐसे में कोर्ट ने माता पिता की याचिका को खारिज कर दिया.
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