तीर्थनगरी में अंग्रेजों के जमाने की बिल्डिंग बनी खतरा, देखरेख के अभाव में हुई जर्जर
ऋषिकेश न्यूज़: तीर्थनगरी में देहरादून रोड पर करीब साढ़े नौ दशक पूर्व बनी गोपाल कुटी देखरेख के अभाव में जर्जर हो चुकी है. यह कब धराशायी हो जाए, कहा नहीं जा सकता. बावजूद इसके गोपालकुटी में दुकानें, पुस्तकालय और धर्मशाला चल रही है. पांच साल पहले ही इसे ध्वस्त करने के आदेश तक हो चुके थे.
वर्ष 1928 में बृजदेई कुंवर भटनागर ने अपने दिवंगत पति गोपाल सिंह भटनागर की स्मृति में इस गोपाल कुटी का निर्माण कराया था. वर्ष 1967 में बृजदेई कुंवर ने यह संपत्ति जनहित में धर्मशाला के लिए पालिका ऋषिकेश को दी. उचित देखरेख न होने के कारण इसकी हालत जर्जर हो चुकी है. लोक निर्माण विभाग गोपाल कुटी का निरीक्षण कर इसे गिरासु भवन घोषित कर गिराने की सलाह दे चुका है. इसके बाद जुलाई 2015 में पालिका ने गोपाल कुटी प्रबंधक को इसे गिराने के लिए पत्र भी भेजा . लेकिन सात साल बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई.
व्यापारी बोले, नई दुकानें बनाकर दी जाएं गोपाल कुटी में दुकान चलाने वाले संजय भट्ट, अनिल कुमार, प्रदीप जैन और हरीश का कहना है इस भवन को गिराना है, तो उन्हें नई दुकानें बनाकर दी जाएं.
यह भवन काफी पुराना है. इसे यदि गिरासू भवन घोषित किया गया है तो संबंधित फाइल का अवलोकन किया जाएगा. पूरी जानकारी जुटाने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी. -राहुल कुमार गोयल, नगर आयुक्त, ऋषिकेश
गांधी पुस्तकालय में नहीं बैठ पाते लोग: नगर निगम ऋषिकेश के अधीन गोपाल कुटी में शहर का एकमात्र गांधी पुस्तकालय बना हुआ है. पुस्कालय भवन पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त है. इसमें जगह-जगह प्लास्टर गिरा हुआ है. छत से प्लास्टर स्वयं ही गिरता रहता है. यहां बैठकर पुस्तक पढ़ना तो दूर यहां पुस्तकालय में घुसने से भी लोग घबराते हैं.
फाइलों में धूल फांक रहे प्रस्ताव: नगर निगम बनने से पहले नगर पालिका ऋषिकेश की बोर्ड बैठक में गोपाल कुटी में पार्किंग और मल्टीपर्पज कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव पास हुआ था. इसमें निचली मंजिल पर पार्किंग व दुकानें, दूसरी मंजिल पर पुस्कालय और तीसरी मंजिल पर धर्मशाला बनाई जानी थी. लेकिन यह प्रस्ताव फाइलों में ही धूल फांक रहा है.
भवन में चल रही दुकानें: गोपाल कुटी के जर्जर भवन में आठ दुकानें चल रही हैं. भवन परिसर को नगर निगम शादी के लिए वेडिंग प्वाइंट के रूप में भी देता है. साथ ही यहां कमरों को धर्मशाला के तौर पर भी उपयोग किया जा रहा है.