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टायर फैक्ट्रियां हवा को बना रही हैं जहरीला, कार्रवाई करने से कतरा रहा है प्रदूषण विभाग
ब्रेकिंग न्यूज़: जनपद में चल रही दो दर्जन से अधिक टायर फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले धुएं ने जनपद की हवा को जहरीला बना दिया है, जिससे अनेक प्रकार के रोग फैल रहे हैं। क्षेत्र के लोगों को जहां सांस लेने में दिक्कत आ रही है, वहीं दिल की बीमारी के रोगी भी लगातार बढ़ रहे हैं। इसके अलावा टीबी, आंखों की एलर्जी, दम्मा आदि जैसी गंभीर बीमारियां भी अपने पैर पसार रही हैं। प्रदूषण विभाग को पूरी जानकारी होने के बावजूद विभाग द्वारा इन फैक्ट्रियां पर कार्रवाई नहीं की जाती है, जिससे ग्रामीण परेशान हैं। मुजफ्फरनगर के जानसठ रोड, जौली रोड, बेगराजपुर, भोपा रोड़, खतौली आदि क्षेत्रों में दो दर्जन का कार्य करती हैं। इन फैक्ट्रियों में टायर को बॉयलरो में जलाकर तेल निकाला जाता है, जिसके पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। टायरों के अवशेष हवा में उड़ते हैं, जिससे आसपास के गांवों के लोगों को सांस रोग, दम्मा, टीबी, आंखों की एलर्जी, हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियां सामना करना पड़ता है। ये फैक्ट्रियां कितना प्रदूषण फैला रही हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेतों में फसलों के पत्ते पर काले रंग का पाउडर की परत जाती है, जिसका परिणाम यह होता है कि फैसलें नष्ट होने लगती हैं, जिससे ग्रामीणों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ग्रामीणों द्वारा अनेकों बार इन फैक्ट्रियों की शिकायत प्रदूषण विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों से भी की गयी है, परन्तु फैक्ट्री मालिकों के रसूख के चलते इन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है।
कैसे निकाला जाता है टायरों का तेल: पहले टायर की टुकड़े किए जाते हैं, जिसके बाद बायलर की तरह लगी बड़ी बड़ी भट्टियों में इनको उच्च ताप पर जलाया जाता है। इस प्रक्रिया में मशीन से एक तरफ काला द्रव निकलता है तो दूसरी ओर टायर का जला हुआ बुरादा बाहर आता है। टायरों से निकलने वाला काले रंग का तेल व टायर बुरादा दोनों ही कीमती होते हैं।
मोबिल आयल बनाने में किया जाता है प्रयोग: सूत्रों की मानें तो टायर फैक्ट्रियों द्वारा टायरों से निकाले जाने वाले तेल का प्रयोग मोबिल आॅयल बनाने वाली कंपनियां मोबाइल आॅयल में मिलावट करने में करती है। इस तेल की कीमत बाजार में 300-350 रुपए प्रतिलीटर के बीच होती है। इस तेल की सप्लाई ज्यादातर गुजरात, राजस्थान समेत कई प्रदेशों में की जाती है। सूत्रों की मानें तो रीको इंडस्ट्रियल एरिया में गुजरात के अहमदाबाद, राजकोट प्रदेश के बाड़मेर, जयपुर, जोधपुर शहरों में यह तेल टैंकरों के जरिए भेजा जा रहा है। एक टैंकर तेल डेढ़ लाख रुपए तक बिकता है, इस तेल को मोबिल आयल की कंपनियां मिलावट करने में काम लेती है, इससे उनका खर्च तो कम हो जाता है बाजार दर से ही बेचकर मोटी कमाई करते हैं।
टायरों की राख से सिमेंट में होती है मिलावट: टायर फैक्ट्रियों द्वारा टायरों से तेल अलग करने के बाद जो राख बचती है, वह भी मिलावट के लिए ही प्रयोग की जाती है। टायर फैक्ट्रियों से यह राख कुछ कंपनियों खरीदती हैं और इसका प्रयोग सीमेंट में मिलावट के रूप में करती है।
नियमों की हो रही है अनदेखी: टायर फैक्ट्रियों को प्रदूषण विभाग से एनओसी लेनी होती है। प्रदूषण विभाग द्वारा एनओसी देते समय नियम व शर्तें तय की जाती हैं, परन्तु यह नियम व शर्तें केवल कागजों तक ही सीमित रहती हैं, क्योंकि फैक्ट्रियों द्वारा इन्हें व्यवहार में नहीं लाया जाता है। नियमानुसार पानी को दूषित करने वाले ऐसे प्लांटों में इनफ्लुएंस ट्रीटमेंट प्लांट ईटीपी लगाते हैं ईटीपी प्लांट से पानी को पूरी गंदगी और प्रदूषण दूर होकर यह पानी दोबारा उपयोग में आने लायक हो जाता है। एक ईटीपी प्लांट लगाने में 15 से लेकर 20 लाख रुपए का खर्च आता है, परन्तु इस मोटे खर्च से बचने के लिए जनपद की टायर फैक्ट्रियों में ईटीपी प्लांट नहीं लगाये गये हैं। ईटीपी प्लांट न चलने के कारण फैक्ट्रियों से प्रदूषित पानी निकल रहा है, जो आसपास के खेतों की मिट्टी को खराब कर रहा है और फैसलें भी नष्ट हो रही हैं। इसी तरह प्रदूषण को कम करने के लिए इन फैक्ट्रियों से निकलने वाली गैस को भी कंट्रोल करना होता है, जो व्यवहार में नहीं है।
फैक्ट्री के बॉयलर फटने से दो लोगों की हुई थी मौत: सिखेड़ा थाना क्षेत्र में निराना गांव के जंगल में नाले के पास पुराने टायरों से तेल निकालने चलाए जा रहे प्लांट में बायलर के फटने से दो मजदूरों की अस्पताल में मौत हो गई थी। मरने वाले युवक मंसूरपुर थाना क्षेत्र के पुरबालियान गांव निवासी 28 वर्षीय प्रदीप पुत्र महेंद्र व 24 वर्षीय मोनू पुत्र मांगा थे, जो फैक्ट्री में अन्य मजदूरों के साथ काम कर रहे थे।
क्या कहते हैं ग्रामीण: भारतीय किसान यूनियन के जिला उपाध्यक्ष अमित राठी का कहना है कि बेगराजपुर मेडिकल के सामने 4 टायर फैक्ट्रिया हैं, जिनसे बहुत बदबूदार धुआं निकलता है, जिसके चलते गंभीर बीमारियां जन्म ले रही हैं। टीबी, सांस, रोग स्क्रीन रोग पशुओं मैं भी बीमारियां हो रही है प्रदूषण अधिकारी से शिकायत करने के बाद भी कोई भी संज्ञान नहीं लिया गया. गांव भडूरा के किसान शाहिद का कहना है कि हमारी जमीन की बराबर है टायर फैक्ट्री है, जिसके जहरीले प्रदूषण की वजह से हमारी फसलें नष्ट हो रही है। चारे को हमें घर ले जाकर पहले धोना पड़ता है फिर पशुओं को खिलाया जाता है। अगर ऐसे ही चारे को खिला देते है, तो पशु बीमार हो जाते हैं। मुझे भी सांस से संबंधित बीमारी है, जब खेतों में काम करता हूं मुंह से काला काला राख जैसा निकलता है। शिकायत करने के बाद भी टायर फैक्ट्री किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। निराना गांव के राशन डीलर सैयद हसन का कहना है उनकी जमीन गुलशन केमिकल फैक्ट्री के पीछे है जहां 4 टायर फैक्ट्री 10 बीघा जमीन बराबर में है, जो भी फसल बोते हैं वही फसल खराब हो जाती है। प्रदूषण अधिकारी व प्रशासन से शिकायत करने के बाद भी इसी तरह संज्ञान में लिया गया इन टायर फैक्ट्रियों में कई बार दुर्घटना भी हो चुकी है अगर पशुओं को चारा बिना धोए खिला देते हैं तो पशु बीमार हो जाते हैं। धधेडा गांव के पूर्व प्रधान मुशर्रफ का कहना है कि जानसठ भंडूरा जौली रोड बेगराजपुर आदि में दो दर्जन से ज्यादा टायर फैक्ट्री चल रही है जिससे गंभीर बीमारियां हो रही है औ फसलें भी नष्ट हो गई हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी: क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी अंकित सिंह ने बताया कि फैक्ट्रियों को एनओसी देते समय नियम व शर्ते तय की जाती हैं। विभाग द्वारा समय-समय पर ऐसी फैक्ट्रियों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई की जाती हैं, जो नियमों की अनदेखी करती हैं। विभाग द्वारा कुछ दिन पहले ही ऐसी चार फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्रवाई की थी।