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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पिछले साल के विधानसभा चुनाव से लेकर हालिया नगर निकाय चुनाव तक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) Mayawati के जनाधार में आई लगातार गिरावट का कारण आलोचकों ने पार्टी संस्थापक कांशीराम की नीतियों से भटकाव को बताया है। चार बार सत्ता में रही बसपा का ‘सोशल इंजीनियरिंग' फॉर्मूला वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में काम नहीं आया और हाल ही में हुए नगर निकाय चुनाव, खासकर महापौर की सीट पर व्यापक स्तर पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने के बावजूद पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और बसपा के संस्थापक सदस्य आर. के. चौधरी ने बातचीत में बसपा प्रमुख मायावती को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया कि वह कांशीराम के सूत्र ‘‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'' से भटककर ‘‘जिसकी जितनी तैयारी'' पर केन्द्रित हो गयीं। उन्होंने कहा कि उच्च वर्ग तो हमेशा तैयार रहेगा।
‘वर्ण व्यवस्था' और भेदभाव पैदा करने वाले को मायावती ने दिया प्रतिनिधित्व
चौधरी ने कहा,मायावती उन लोगों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जिनके पूर्वजों ने समाज में ‘वर्ण व्यवस्था' और भेदभाव पैदा किया था।'' चौधरी ने दावा किया कि भले ही पार्टी भविष्य के विधानसभा चुनावों में अपनी सीट संख्या बढ़ाने में कामयाब हो जाए, लेकिन इसके मूल समर्थकों के बीच इसकी पकड़ और लोकप्रियता कम होती रहेगी।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 1995 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। चार बार की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सिर्फ 15 साल पहले 206 विधायकों के साथ राज्य में बहुमत की सरकार बनाई और 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किये। इसके सापेक्ष बसपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग 12 प्रतिशत वोट मिले और सिर्फ एक सीट पर विजय मिली। बसपा से बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस और नयी पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) का रहा, जिनको दो-दो सीट पर जीत मिली।