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सकौती में हादसे का इंतजार कर रहे रेलवे अधिकारी, लोगों की जिंदगी से हो रहा खिलवाड़
दौराला: रेलवे स्टेशन पर ओवर या फिर अंडर ब्रिज न होने से बच्चों को जान जोखिम में डालकर रेलवे ट्रैक पार करना पड़ रहा है। रेलवे ट्रैक पर मालगाड़ी या अन्य ट्रेन स्कूल के समय खड़ी होने की स्थिति में काफी मुश्किलों के बीच पार करना पड़ रहा है। अभिभावक भी बच्चों की सुरक्षा के प्रति चिंतित रहते हैं।
शिकायत के बाद भी विभागीय अधिकारी मौन हैं। मेरठ-मुजफ्फरनगर रेलवे लाइन के बीच सकौती रेलवे स्टेशन स्थित स्थानीय रेलवे स्टेशन से कई कालेज है। रेलवे स्टेशन पर ओवरब्रिज न होने से बच्चों को स्कूल आने जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जब रेलवे ट्रैक पर कोई ट्रेन खड़ी रहती है। उस समय स्कूली बच्चे तथा शिक्षक ट्रेन के नीचे से रेल लाइन पार करते देखे जाते हैं।
लंबे समय से स्टेशन पर ओवरब्रिज की मांग उठ रही है। मेरठ-मुजफ्फरनगर रेलवे लाइन के बीच सकौती रेलवे स्टेशन से करीब 100 मीटर की दूरी पर गेट नंबर 40 जब से बंद हुआ है। तब से लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है। इस फाटक पर ना ही कोई बैरिकेडिंग है और ना ही कोई रेलवे का कर्मचारी तैनात है। जिसके चलते आए दिन यहां हादसे होते रहते हैं। अक्सर यहां से माल गाड़ी और सुपरफास्ट गाड़ी गुजरती है। इस फाटक पर लोगों की आवाजाही लगातार चलती रहती है।
स्कूली बच्चे महिलाएं बुजुर्ग फाटक पार करते है। जिससे दुर्घटना की आशंका रहती है। बार-बार धरने प्रदर्शन के बावजूद अंडरपास का कार्य पूर्ण नही हो रहा। जिससे क्षेत्र के ग्रामीण स्कूली बच्चे महिलाएं पुरुष परेशान रहते हैं। एक तरफ से दूसरी तरफ जाने की डेढ़ किलोमीटर ओवरब्रिज के करीब है। रेलवे का ओवर ब्रिज रेलवे आम आदमी को स्टेशन पार करने नहीं देता। जिससे पैदल ही रेलवे लाइन को क्रॉस करना होता है और यहां दुर्घटनाओं की आशंका भी बनी रहती है। अभी कुछ दिन पूर्व भी दौराला रेलवे स्टेशन पर पैदल युवक द्वारा रेलवे लाइन पार की जा रही थी।
ट्रेन की चपेट में आकर उसकी मृत्यु हो गई। स्कूली बच्चे एवं महिलाओं के लिए लगातार खतरा बना रहता है। रेलवे अधिकारी अंडरपास के अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते बार-बार ज्ञापन देने के बाद भी अनदेखी की जा रही है। जीतपुर, मदारीपुर, मोहनीपुर, भरोटा, शाहपुर, मंडोरा, नंगली नंगला आदि के गांव के बच्चे यहां पढ़ने के लिए आते हैं। जो एनएच-58 और रेलवे लाइन को क्रॉस कर दूसरी ओर जाते है। जिससे हादसों का ग्राफ बढ़ जाता है।
जान जोखिम में डालकर पार करते हैं रेलवे ट्रैक: छात्रों का कहना है कि जान जोखिम में डालकर रेलवे ट्रैक पार करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं है। इस रेलवे लाइन पर ओवरब्रिज या अंडरपास न होने से दर्जनों गांव के हजारों नागरिकों को प्रतिदिन अपनी जान हथेली पर लेकर रेलवे ट्रैक पार करना पड़ता है। कभी-कभी ट्रैक को पार करते समय बीच में बाइक फंस जाती है
या फिसल कर गिर जाने से बाइक सवार घायल भी हो जाते हैं। विद्युतीकरण के बाद इस रास्ते पर तेज गति से चलने वाली ट्रेनें अक्सर आती जाती रहती हैं। लोगों के लिए दुख की बात यह है कि विभाग इनकी सुधि लेने को तैयार नहीं है। इससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है कि रेलवे विभाग शायद किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहा है।