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उत्तर प्रदेश
अब योगी सरकार का हिस्सा बन सकते हैं ओमप्रकाश राजभर, सियासी गलियारों में अटकलें तेज
Renuka Sahu
25 July 2022 1:28 AM GMT
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फाइल फोटो
आरोप-प्रत्यारोप, कटाक्ष के लंबे दौर के बाद सपा गठबंधन से आजाद हुए सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के अगले कदम को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आरोप-प्रत्यारोप, कटाक्ष के लंबे दौर के बाद सपा गठबंधन से आजाद हुए सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के अगले कदम को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। बसपा के साथ जाने के उनके बयान को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसके उलट यह कयासबाजी तेज हो गई है कि राजभर भाजपा से ही जुड़ेंगे। वर्ष 2024 आमचुनाव से पहले प्रदेश में वह सत्ता में भागीदारी पा सकते हैं।
सूत्रों का कहना है कि राजभर को लेकर ताजा अटकलें यह हैं कि अगले एक सप्ताह के अंदर उनकी मुलाकात भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से होने वाली है। जिसमें यह तय होगा कि आमचुनाव 2024 में साथ-साथ चलने के लिए राजभर की किस तरह प्रदेश की सत्ता में समायोजित किया जाए।
सपा से अलगाव की पटकथा पहले से लिखी जा रही थी
सपा से अलगाव की पटकथा विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद से लिखी जाने लगी थी। दिल्ली में भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात के बाद राजभर की नजदीकियां फिर से भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश के नेताओं से बढ़ने लगीं। इन नजदीकियों की हर सूचनाएं सपा मुखिया अखिलेश को हो गई थी जिसके बाद से उन्होंने अहम फैसलों में राजभर को साथ लाने से परहेज करना शुरू कर दिया। राष्ट्रपति चुनाव में सपा और सुभासपा की दूरियां सतह पर दिखने लगीं। इस चुनाव ने अलगाव की इबारत लिख दी थी। जिसकी इतिश्री सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने राजभर को गठबंधन से आजाद कर दिया।
निगाहें एमएलसी की एक सीट पर
गठबंधन टूटने से सुभासपा के नेता व कार्यकर्ता खुश हैं। उन्हें महसूस हो रहा है कि जल्द ही उनकी भागीदारी सत्ता में होगी। नजरें एमएलसी की दो सीटों में से एक पर है। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व राजभर को साथ लाने के लिए एक सीट दे भी सकता है। इसके अलावा निगमों, बोर्डों, आयोगों में इनके कुछ नेताओं को जगह दिया जा सकता है।
सपा से दूरी के बाद राजभर के बयान में एक अहम बदलाव आया है। द्रौपदी मुर्मू के हवाले से उन्होंने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि राजभर बिरादरी भी एससीएसटी में आने के लिए संघर्ष कर रही है। सपा को दलित, पिछड़ा विरोधी कहना भी शुरू कर दिया है। राजभर अब राज्य में खुद को अति पिछड़ी जातियों के साथ ही दलितों के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
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