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नीरज त्रिपाठी अपने पिता की समृद्ध राजनीतिक विरासत संभालने के लिए मैदान में उतरेंगे
इलाहाबाद: इलाहाबाद संसदीय सीट से भाजपा का टिकट पाने वाले नीरज त्रिपाठी अपने पिता की समृद्ध राजनीतिक विरासत संभालने के लिए मैदान में उतरेंगे. नवरात्र के दूसरे दिन टिकट मिलने पर नीरज त्रिपाठी ने सबसे पहले शहर की तीनों शक्तिपीठ कल्याणी देवी, ललिता देवी और अलोपशंकरी देवी का दर्शन किया. साथ ही संगनगरी के नगर देवता संगम के पास स्थित लेटे हनुमान जी का भी दर्शन करने गए. पहली बार चुनाव लड़ने जा रहे नीरज त्रिपाठी के पिता पं. केशरीनाथ त्रिपाठी भाजपा के स्थापना काल से ही पार्टी से जुड़े रहे.
पं. केशरीनाथ त्रिपाठी 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर झूंसी विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए और 1977 में ही पहली बार वित्त तथा बिक्रीकर मंत्री बने. इस पद पर वह 1979 तक बने रहे. उसके बाद भाजपा के टिकट पर 1989, 1991, 1993, 1996 तथा 2002 में शहर दक्षिणी विधानसभा से विधायक चुने गए. वह तीन बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे.भाजपा सरकार ने पं. केशरीनाथ त्रिपाठी को जुलाई 20 को पश्चिम बंगाल का बीसवां राज्यपाल नियुक्त किया था. उसके बाद उन्होंने बिहार, मेघालय, मिजोरम व त्रिपुरा के राज्यपाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी संभाली. पं. केशरीनाथ त्रिपाठी के राजनीतिक कद का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कोरोना से लंबी लड़ाई जीतने के बाद जब वह अपने घर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे तब सितंबर 2021 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द उनसे मिलने उनके घर पहुंचे थे.
राजनीति के नए खिलाड़ी पर लगाया दांव: इलाहाबाद से भाजपा ने राजनीति के नए खिलाड़ी पर दांव लगाया है. अपने समय में अच्छे क्रिकेटरों में गिने जाने वाले नीरज त्रिपाठी का जन्म जून 1966 को हुआ था. बीए-एलएलबी करने के बाद वह पिछले 21 सालों से वकालत में सक्रिय हैं. राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के अधिवक्ता रहने के साथ वह झांसी विकास प्राधिकरण, राज्य परिवहन निगम वाराणसी परिक्षेत्र और नोएडा के भी वकील रहे हैं. पिछले सात साल से अपर महाधिवक्ता का पद संभाल रहे नीरज वैसे तो अपने पिता पं. केशरीनाथ त्रिपाठी के हर चुनाव में सक्रिय रहे और कार्यकर्ताओं के साथ गली-मोहल्ले में बैनर-पोस्टर तक लगाया है. लेकिन चुनावी पिच पर पहली बार बैटिंग करने उतरेंगे. उन्होंने कहा कि पिता की समृद्ध विरासत को लेकर चलना चुनौतीपूर्ण होगा. कोशिश होगी कि पिताजी के पदचिह्नों पर चलूं और किसी को टोकने का मौका न मिले.