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वह ध्यान से संभव:साध्वी
राजस्थान : राजनगर, भिक्षु निलयम में जैन तेरापंथ सभा भिक्षु बोधि स्थल के तत्वावधान में साध्वी परमयशा के सानिध्य में "भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा और पर्युषण पर्व के सातवां दिन "ध्यान दिवस" के तौर पर मनाया गया।
साध्वी डॉ. परमयशा ने महावीर स्वामी की अध्यात्म यात्रा के बारे में बताया कि जीव बाइसवें भव में राजकुमार विमल के रुप में उत्पन्न हुए। महाराज विमल स्वभाव से बहुत करुणावान, दयावान, प्रेमवान थे जो सब के लिए आदर्श थे। अनुकंपा के कारण उन्होंने मनुष्य आयु का बंध किया और अगले भव में प्रिय मित्र नाम के छह खण्ड के चक्रवर्ती बने। राज्य का भोग भोगा। अंत में पोट्टीलाचार्य के पास दीक्षित होकर आयु पूर्ण कर के देवलोक में उत्पन्न हुए। नंदन के भव में उग्र तपस्वी दीप्त तपस्वी बने एक लाख की आयु में उन्होंने 11 लाख 60 हजार मास खमण की तेजस्विता तपस्विता से तीर्थंकर नाम गौत्र का बंधन किया। दसवें प्राणत देवलोक से देवानंदा के द्वार फिर महारानी त्रिशला के राज घराने में आने की तैयारी हो रही है। शहनाइयां बज रही है। धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करने प्रभु महावीर 14 स्वप्नों के साथ धरा पर आए।
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