कोटा: शहर में करोड़ों के विकास कार्य करवाए गए हैं लेकिन कई ऐतिहासिक धरोहरों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इस कारण इन ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। हरियाली खत्म होती जा रही है। इसका उदाहरण है एरोड्राम सर्किल से डीसीएम की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित छत्रपुरा पैलेस। पैलेस के परिसर में कई सरकारी कार्यालय संचालित हैं। अगर इन दफ्तरों को अन्यत्र स्थान देकर शिफ्ट कर दिया जाए तो ये ऐतिहासिक धरोहर शहर का एक ओर पर्यटन स्थल बन सकता है। छत्रपुरा महल या छत्रपुरा पैलेस में इस समय जिला परिवहन कार्यालय, आबकारी विभाग और बिक्रीकर विभाग संचालित हो रहे हैं। इनमें से परिवहन कार्यालय के लिए सालों पहले शहर से बाहर भवन तैयार करवा दिया गया था लेकिन कई तथाकथित कारणों से लाइसेंस को छोड़कर परिवहन विभाग के सभी कार्य यहीं पुराने दफ्तर से ही किए जा रहे हैं। इन विभागों का यहां संचालन होने के कारण कई प्रकार के लोग यहां आते-जाते हैं। इनमें से कुछ असामाजिक प्रवृति के भी होते हैं जो इस ऐतिहासिक धरोहर को जीर्ण-शीर्ण करने में अपनी अलग ही भूमिका निभाते हैं।
ये है छत्रपुरा महल का इतिहास
ये वो स्थान जहां प्रेम, आसक्ति, सौंदर्य शिल्प, आखेट और प्रकृति की कहानियां जीवंत हुई थी। छत्रपुरा का महल डीसीएम रोड पर दार्यीं ओर स्थित है। यह महल हरियाली से परिपूर्ण है। इसका दायरा काफी बड़ा है। जिसमें कई इमारतें बनी हैं। छत्र महल का निर्माण तत्कालीन कोटा राज्य के शासक महाराव शत्रुशाल सिंह प्रथम जिन्होने सन 1758 से 1764 तक शासन किया ने करवाया था। इतिहासविदों के अनुसार उस समय यहां काफी घना जंगल था । और यहां एक बस्ती थी। महाराव शत्रुशाल अक्सर इस स्थान पर शिकार के लिए आया करते थे। उन्होंने यहां एक तालाब भी बनवाया जो साल 1980 के दशक तक मौजूद रहा। परन्तु अतिक्रमण करने वालों ने तालाब की दीवारें तोड़कर तालाब की भूमि पर बसावट कर दी और अब यह विज्ञान नगर की छत्रपुरा बस्ती कहलाने लगी है। इसके छत्रपुरा महल और तालाब का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक रमणीक स्थान की सुन्दरता जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण खत्म हो गई। छत्रपुरा महल के हरे भरे परिसर में कंक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया गया, अनेक पक्की इमारतें यहां बना दी गई। जिसमें कई संस्थाएं और कार्यालय संचालित हो रहे हैं। यह महल 18वीं शताब्दी की राजपूत स्थापत्य शिल्प का सुन्दर नमूना है।
दीवारों पर मकड़ियों के जाले, टूटी दीवारें
छत्रपुरा पैलेस में संचालित इन विभागों के कई कमरे तो इतने छोटे हैं कि 5 व्यक्ति एक साथ खड़े नहीं हो सकते हैं। दफ्तरों की फर्श ऐसी है जैसे यहां सरकारी कार्यालय नहीं कोई कच्ची बस्ती है। कार्यालयों की दीवारों पर मकड़ियों ने जाले बनाये हुए हैं। कई स्थानों पर दीवारें टूटी हुई है। भले ही सरकार या संबंधित विभाग की ओर से साल दो साल में इन कमरों की रंगाई-पुताई करवा दी जाती है लेकिन वे अन्दर से खोखले होते जा रहे हैं। इन सरकारी कार्यालयों के बाहर कई लोग केबिन, थड़ियां और गुमटियां आदि लगाकर कब्जा काबिज किए हुए है लेकिन विभाग का ध्यान इस ओर नहीं जाता है। संभवतयां इन्ही लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण या तो इन विभागों को दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण नहीं किया जा रहा है लेकिन इन सबसे से नुकसान उन ऐतिहासिक धरोहर को हो रहा है जो किसी जमाने में हाड़ौती पहचान थी।
गुजरी महल में संचालित वाणिज्यिक कर विभाग
छत्र महल के परिसर में एक छोटी सी दो मंजिला इमारत भी है जो गुजरी महल के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि महाराव शत्रुशाल जब यहां शिकार करने आते थे तो उनकों एक महिला से पे्रम हो गया था। जिसके लिए उन्होंने छत्र महल के परिसर में यह महल बनवाया था। महल के समीप एक बावड़ी भी है परन्तु इसका पानी दूषित हो चुका है। वर्तमान में यहां वाणिज्यिक कर विभाग का कार्यालय संचालित है।
राज्य सरकार और जिला प्रशासन को इस स्थान को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए। सरकारी दफ्तरों को खाली करवाकर अन्यत्र स्थापित करें। पुरातत्व और पर्यटन विभाग को इस पुरानी विरासत को बचाने के लिए कदम उठाना चाहिए वरना किसी दिन यह विरासत खत्म हो जाएगी।
-फिरोज अहमद, इतिहासविद्