महाराष्ट्र

गर्मी में 7km दुरी तय किया गर्भवती महिला ने , लू लगने से हुई मौत

HARRY
15 May 2023 5:56 PM GMT
गर्मी में 7km दुरी तय किया गर्भवती महिला ने , लू लगने से हुई मौत
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स्वास्थ्य अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।

पालघर, महाराष्ट्र के पालघर जिले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) जाने और फिर घर लौटने के लिए एक गांव से सात किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद एक 21 वर्षीय गर्भवती आदिवासी महिला की मौत हो गई। स्वास्थ्य अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।

12 मई की घटना

पालघर जिले के सिविल सर्जन डॉ. संजय बोडाडे ने पीटीआई को बताया कि यह घटना 12 मई को उस समय हुई, जब दहानू तालुका के ओसर वीरा गांव की सोनाली वाघाट चिलचिलाती धूप में 3.5 किमी पैदल चलकर पास के एक हाईवे पर पहुंची, जहां से उसने तवा पीएचसी के लिए एक ऑटो-रिक्शा लिया, क्योंकि उसकी तबीयत ठीक नहीं थी।

गर्मी में पैदल चलने से बिगड़ी तबीयत

पीएचसी में नौवें माह की गर्भवती महिला का इलाज के बाद घर भेज दिया गया। तेज गर्मी के बीच वह फिर से हाईवे से 3.5 किमी पैदल चलकर घर वापस आई, जिसमें शाम को उसकी तबीयत बिगड़ गई। महिला को धुंदलवाड़ी पीएचसी ले जाया गया, जहां से उसे कासा अनुमंडलीय अस्पताल (एसडीएच) रेफर कर दिया गया। यहां पर डॉक्टरों ने उसका इलाज किया, लेकिन तबीयत में सुधार नहीं हुआ, जिसके बाद उसे दहानू के धुंदलवाड़ी के एक अस्पताल में रेफर कर दिया गया। हालांकि, रास्ते में एंबुलेंस में उसकी मौत हो गई।

डॉक्टरों ने कहा कि उसे प्रसव पीड़ा नहीं थी। कासा पीएचसी के डॉक्टरों ने उस पर तत्काल ध्यान दिया था। चूंकि वे उसका इलाज करने में असमर्थ थे, इसलिए उसे एक विशेष अस्पताल में रेफर कर दिया। उन्होंने कहा कि महिला गर्म मौसम में सात किमी तक चली, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई और लू लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। डॉ बोडाडे ने कहा कि उन्होंने पीएचसी और एसडीएच का दौरा किया और घटना की विस्तृत जांच की।

दवाइयों का नहीं हुआ फायदा

पालघर जिला परिषद के अध्यक्ष प्रकाश निकम, जो सोमवार सुबह कासा एसडीएच में थे, ने पीटीआई को बताया कि महिला को एनीमिया था और एक आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता उसे एसडीएच लेकर आई थी। वहां डॉक्टरों ने उसका चेकअप किया और दवाइयां दीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

‘उचित स्तर पर उठाएंगे यह मुद्दा’

निकम ने कहा कि कासा एसडीएच में आपात स्थिति में ऐसे मरीजों का इलाज करने के लिए गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) और विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। उन्होंने कहा, “अगर ये सुविधाएं होतीं तो आदिवासी महिला की जान बचाई जा सकती थी।” निकम ने कहा कि वह इस मुद्दे को उचित स्तर पर उठाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

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