मध्य प्रदेश

दोनों हाथ और पैरों से दिव्यांग होने के बाद भी पढ़ती है पीजी, मंजेश बघेल अब कर रही है कॉम्पिटिशन एक्साम की तैयारी

Sanjna Verma
23 May 2024 9:57 AM GMT
दोनों हाथ और पैरों से दिव्यांग होने के बाद भी पढ़ती है पीजी, मंजेश बघेल अब कर रही है कॉम्पिटिशन एक्साम की तैयारी
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मध्यप्रदेश : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां हर बेटा-बेटी को अपना भांजा और भांजी कहते है. मगर, मंजेश का कहना है कि जब आपकी भांजी लाचार है तो उसकी मदद करने कोई आगे नहीं आया.इंसान में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कितनी भी परेशानी क्यों ना आ जाए, वह कड़ी मेहनत के दम पर सफलता हासिल करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ कोशिश करता है. ऐसी ही एक कहानी मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के मंजेश बघेल की है. जहां 6 साल की उम्र में मंजेश को गंभीर बीमारी ने घेरा लिया और उसके दोनों हाथ और एक पैर ने काम करना बंद कर दिया. मंजेश चलने में लाचार हाथों से काम करने लगी और लाचार मंजेश ने हिम्मत नहीं हारी और स्कूल गई स्कूलिंग पूरी की बाद में कॉलेज गई बीए पूरा किया और अब बीएड प्रथम ईयर की पढ़ाई कर रही है.उसके साथ साथ ग्वालियर के डबरा में कोचिंग भी जा रही है. जिससे शासकीय सेवा में जाने का उसका सपना पूरा हो सके. सबसे बड़ी बात यह है कि मंजेश मुंह में पेन दबाकर लिखती है और स्पीड भी ऐसी जैसे एक स्वस्थ बालक अपने हाथों से लिखता है. दरअसल, डबरा में किराया के मकान में रहने वाली होनहार छात्रा मंजेश बघेल अपने हाथ पैरों से लाचार है, लेकिन उसके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा है.

हाथ पैर से लाचार होने के कारण नहीं मिली नौकरी
यही कारण है कि उसने अपने मुंह से पैन दबाकर लिखा और अपनी बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीएड की तैयारी शुरू की, लेकिन पीड़ित छात्रा का दर्द जब झलका जब उसे किसी ने नॉकरी नही दी. इस दौरान मंजेश ने बताया कि वह घर में सबसे बड़ी है. उसके परिवार की स्थिति ठीक नहीं है.जहां पिता मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते हैं, लेकिन अब वह भी बीमारी के चलते लाचार हो गए हैं. यही कारण है कि अब मुझ पर घर की पूरी जिम्मेदारी का भार है. इसलिए मैने नौकरी के लिए कई बार एप्लाई किया. लेकिन हाथ पैर लाचार होने के कारण मुझे नौकरी नहीं मिली.
CM शिवराज ने दिया था नौकरी का आश्वासन
जब मैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से दतिया में मिली तो उन्होंने मुझे नौकरी का आश्वासन देकर भोपाल बुलाया. जब मैं भोपाल उनके बंगले पर पहुंची तो उनकी सिक्योरिटी ने मुझे नही मिलने दिया और बंगले के बाहर से ही भगा दिया. उसके बाद मैं मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से मिली तो उन्होंने भी मुझे ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद नौकरी का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक मुझे कोई मदद नहीं मिली.वहीं, सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां हर बेटा-बेटी को अपना भांजा और भांजी कहते है. मगर जब आपकी भांजी लाचार है तो उसकी मदद करने कोई आगे नहीं आया. अब मैं अपनी पीड़ा किसे सुनाऊ मुझे तो लगता है कि गरीब का कोई नहीं होता पर इतना ज़रूर एक ना एक दिन मुझे सफलता ज़रूर मिलेगी. जिसके बाद मुझे शासकीय सेवा में जाने का अपना सपना पूरा करूगी.
स्कूल के टीचर ने दी थी मुंह से लिखने की प्रेरणा
बता दें कि, 6 साल की उम्र में आकर मंजेश के हाथ पैरों ने काम करना बंद किया तो वह अपनी हिम्मत खो चुकी थी. पिता मजदूरी करते थे तो मां भी पैर से विकलांग है. सभी ने सोचा की बच्ची स्कूल जाती थी तो उसे स्कूल भेजा जाए. जब वह स्कूल गई तो उसकी हालत देखकर किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि वह पढ़ेगी.लेकिन उस समय विसंग पुरा के रहने वाले टीचर प्रेम नारायण छपरा शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल हुआ करते थे. जिनका एक हाथ नहीं था. उन्होंने मंजेश से कहा कि बेटा हिम्मत नहीं हारना है.
डबरा में रहकर कर रही कंपटीशन एक्जाम की तैयारी
यदि प्रकृति ने अन्याय किया है तो हमें उससे लड़ना है. तभी उन्होंने मंजेश को प्रेरणा दी आप हाथों से नहीं मुंह से लिखने की कोशिश करो. धीरे-धीरे लिखने लगोगी. प्रेम नारायण सर की बातों को मंजेश ने अपनी ताकत बनाया और मुंह से लिखना शुरु कर दिया.यह सिलसिला करीब 15 सालों से लगातार जारी है. वह आज भी कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी कर रही है. मंजेश मूल रूप से दतिया ज़िले की रहने वाली है और डबरा में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुटी है.
कोचिंग में छात्र करते हैं मदद
मंजेश डबरा में कॉम्पिटिशन एक्जाम की तैयारी कराने वाले रामनिवास सर की कोचिंग आकार में रोजाना पढ़ने के लिए जा रही है. जहां इस तैयारी में जुटी है कि उसका शासकीय सेवा में जरूर चयन होगा. यदि बात करें कोचिंग की तो छात्राएं भी उसकी मदद करती हैं.मंजेश बारीकी से सब की सुनती है तो पेज पलटने के लिए उसकी सहेलियां भी उसकी मदद करती हैं. सबसे बड़ी बात तो एक हैं कि मंजेश रोजाना एक मंजिल सीढ़ियां चढ़ती और उतरती है. गरीबी के हालात में प्रतिदिन जैसे तैसे पैदल चल कोचिंग पहुंच रही है.
टीचर बोले- एक न एक दिन मंजेश को सफलता जरूर मिलेगी
शिक्षक रामनिवास का कहना है कि हमारा काम पढ़ाना है पर जब कोई ऐसा छात्र आ जाए जो परेशानियों से जूझ रहा हो. वहीं, जब यह बच्ची मेरे पास आई तो देख कर लगा कि आज के समय जब युवा साधन होने के बाद भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे. ऐसे में हाथों से लाचार चलने में भी परेशानियों का सामना करने वाली मंजेश में कुछ करने का कुछ बनने का जज्बा है.
इसलिए हम इसे पढ़ा रहे हैं. छात्र भी छात्राएं भी सब इसकी मदद कर रहे हैं. मेरे द्वारा भी पूरी मदद की जा रही है. इस पर ध्यान दिया जाता है और उसके लिए नोट-बुक भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. एक न एक दिन इसको सफलता जरूर मिलेगी.
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