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जिनके भरोसे पर हम ट्रेनों में सो जाते हैं वे कैसे करते हैं आराम
भोपाल: हजारों मुसाफिरों की जिंदगी की जवाबदेही जिन पर है उनकी कार्यकुशलता और विश्वास पर हर दिन लाखों यात्री रेल सफर के दौरान चैन से अपनी कोच पर सो जाते हैं. रात-रातभर जगकर ट्रेन चलाने वाले रेलवे के लोकोमोटिव पायलट आखिर कब और कैसे सोते हैं. उनके रेस्ट का तरीका क्या है. वे तनाव से कैसे निपटते हैं. यह जानने के लिए रिपोर्टर ने भोपाल रेलवे स्टेशन के रनिंग रूम का जायजा लिया. कुछ लोकोमोटिव पायलटों से बात की. पता चला रेल प्रबंधन ने ड्राइवरों के लिए स्ट्रेस मैनेजमेंट प्रोग्राम लागू किया है. उसकी पालना जरूरी है. ट्रेन से उतरने के बाद रनिंग रूम में आरामदायक व्यवस्थाएं हैं. किताबें, अखबार और मनोरंजन के साधन हैं. ताकि वे अच्छे से आराम कर सकें.
ट्रेन के हिसाब से काम के घंटे
भोपाल और आरकेएमपी से चलने वाली मालगाडिय़ों में लोकोमोटिव पायलट 10 घंटे लगातार गाडिय़ां चलाते हैं. जबकि, मेल ट्रेन के ड्राइवर अधिकतम 7 घंटे, एक्सप्रेस सहित पैसेंजर ट्रेन के ड्राइवर 6 घंटे और स्टेशनों पर इंजन बदलने वाले लोको पायलट 8 घंटे की नौकरी करते हैं.
दीवारों पर प्रेरक सद्वाक्य: रनिंग रूम की दीवारों पर लोको पायलट को जागरूक रखने के लिए कई तरह के स्लोगन भी लिखे हैं. जैसे-सुरक्षित ट्रेन संचालन हमारी पहली जिम्मेदारी है.
लोको पायलट को आरामदायक स्थिति में रखने के लिए सभी तरह के इंतजाम किए गए हैं. ताकि उन्हें तनाव से दूर रखा जा सके और सुकून की नींद आए.
राहुल श्रीवास्तव, सीपीआरओ