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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पाकिस्तान के आतंकी संगठनों की सेना/अर्धसैनिक बलों के वाहनों पर ना-पाक नजर है। इस काम के लिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर में 'ओवर ग्राउंड वर्कर' तैयार किए हैं। ये लोग सड़क किनारे टायर पंक्चर मेकेनिक, चाय की दुकान, फल सब्जी का ठेला या फिर किसी अन्य कामधंधे के नाम पर बैठे रहते हैं। जैसे ही वहां से सेना या अर्धसैनिक बलों का काफिला गुजरता है, ये लोग उसकी फोटो खींच लेते हैं। वीडियो भी बनाते हैं। काफिले में कुल कितने वाहन हैं, ट्रक कितने हैं, बसों की संख्या क्या है, कौन से वाहन में जवान सवार हैं, आदि जानकारी जुटाकर उसे पाकिस्तान स्थित कमांडर के साथ साझा करते हैं। ओवर ग्राउंड वर्कर, इंटरनेट की ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जो उन्हें सुरक्षा एजेंसियों के रडार से दूर रखती है। इनमें डार्क वेब, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्किंग और एन्क्रिप्टेड मैसेंजर सेवाएं जैसे सिग्नल आदि शामिल हैं।
पाकिस्तान के आतंकी संगठनों द्वारा इन समूहों को कंट्रोल किया जाता है। कहां, कब किसे टारगेट करना है, यह सब सीमा पार से तय होता है। एनआईए ने इस तरह के कई मामलों का खुलासा किया है। हाल ही में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के एक सदस्य को गिरफ्तार किया गया था। उससे पूछताछ में कई खुलासे हुए। आतंकी संगठनों के लिए काम कर रहा कुपवाड़ा निवासी मोहम्मद उबैद मलिक ने जांच एजेंसी को बताया कि ओवर ग्राउंड वर्कर, पाकिस्तान स्थित कमांडर के संपर्क में रहते हैं।
एनआईए ने उबैद मलिक के मामले में दाखिल चार्जशीट में कहा है कि आरोपी पाक स्थित कमांडर को गुप्त सूचनाएं भेजता था। किस मार्ग पर सेना या अर्धसैनिक बलों के वाहनों की आवाजाही हो रही है। कितने वाहन हैं, जवान ट्रक या बस में बैठे हैं, जैसे तथ्य नोट करता था। मौका मिलने पर वाहनों की तस्वीर और वीडियो भी बनाए जाते थे। एनआईए ने आरोपी के कब्जे से जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में उसकी संलिप्तता को दर्शाने वाले विभिन्न आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए थे।
पाकिस्तान स्थित कमांडर से उन्हें निर्देश मिलता था कि कब और कहां से उन्हें हथियार, नशीले पदार्थ, नकदी, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेस (आईईडी) और स्टिकी बम/चुंबकीय बम हासिल करने हैं। घाटी में कौन कहां पर इन्हें तैयार करता है, इनका कच्चा माल कहां से लेना है, आदि जानकारी पाकिस्तानी कमांडर के जरिए मिलती थी। तैयार आईईडी व स्टिकी बम/चुंबकीय बम कहां पर रखे जाएंगे। उन्हें कौन से मार्ग और किस वाहन में ले जाना है, ये सब जानकारी भी कमांडर से ही मिलती है। पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए भी तैयार आईईडी और दूसरे विस्फोटक पहुंचाए जाते हैं। आतंकियों का निशाना मुख्य तौर से अल्पसंख्यक समुदाय और सुरक्षा बल होते हैं। पिछले दिनों पुंछ में सेना के वाहन पर हुए आतंकी हमले का होमवर्क भी इसी तर्ज किया गया था। उस हमले में सेना के पांच जवान शहीद को गए थे। ये आतंकी संगठन, एन्क्रिप्टेड सोशल मीडिया तकनीक का सहारा ले रहे हैं। डार्क नेट जैसी तकनीक तक इन आतंकियों की पहुंच बताई गई है। इन तकनीक के जरिए सुरक्षा एवं जांच एजेंसियां, इन्हें आसानी से ट्रैक नहीं कर पाती। टॉर ब्राउजर में आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस लगातार बदलता रहता है।