हिमाचल प्रदेश

सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के गांव टटियाना में मिले दोनों वंश, 120 वर्ष बाद ‘पांडवों-कौरवों’ का ऐतिहासिक मिलन

Gulabi Jagat
2 July 2023 3:44 PM GMT
सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के गांव टटियाना में मिले दोनों वंश, 120 वर्ष बाद ‘पांडवों-कौरवों’ का ऐतिहासिक मिलन
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नाहन: जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के ब्राह्मणों के सबसे बड़े गांव टटियाना में शनिवार को 120 वर्ष बाद इतिहास की पुनरावृत्ति हुई। गांव के प्राचीन महासू जी महाराज मंदिर के प्रांगण में शाठी व पाशी के अदभुत मिलन के गवाह हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान बने। उनके अलावा सिरमौर के साथ जिला शिमला व उत्तराखंड राज्य से भी हजारों की तादात में शाठी व पाशी समुदाय के लोग टटियाना गांव स्थित प्राचीन महासू जी महाराज मंदिर व ठारी माता मंदिर के प्रांगण में एकत्रित हुए। तीन दिनों से चल रहे इस शांत महायज्ञ को लेकर ग्रामीणों व पूरे क्षेत्र में खासा जोश था। टटियाना गांव में इस धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन को लेकर ग्रामीण लंबे समय से तैयारियां कर रहे थे। इस शांत महायज्ञ में गिरिपार क्षेत्र के प्रसिद्ध गांव खडक़ाहं के 21 विद्वान पाबुच ब्राह्मणों द्वारा पूरे विधि-विधान से किया गया। यह पहला अवसर है जब पांडवों के वंशज पाशी व कौरवों के वंशज शाठी के हजारों की तादात में लोगों ने एक साथ शांत यज्ञ में शामिल होकर इतिहास बनाया। इतिहास गवाह है कि शाठी व पाशी शांत महायज्ञ में एक साथ नहीं होते थे। 28 जून से शुरू हुए इस शांत महायज्ञ में शनिवार को प्रदेश सरकार के उद्योग, संसदीय कार्य एवं आयुष मंत्री हर्षवर्धन चौहान भी कार्यक्रम में मौजूद रहे। इस दौरान हर्षवर्धन चौहान ने ठारी माता व महासू देवता मंदिर में शांत समारोह में पूजा अर्चना की। उन्होंने कहा कि ठारी माता व महासू देवता हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु है। मंदिर सेवा समिति टटियाना के प्रधान सुरेंद्र शर्मा, सचिव अमर सिंह, पूर्व प्रधान गुमान सिंह, माया राम शर्मा आदि ने बताया कि गांव में करीब एक वर्ष पहले कुल देवता महासू महाराज के भव्य मंदिर का निर्माण किया गया था। इसी मंदिर के प्रांगण में शाठी व पाशी का ऐतिहासिक मिलन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। हिमालय के पहाड़ों को काली माता का निवास माना जाता है। काली माता का ही एक स्वरूप ठारी माता है। ग्रामीणों के मुताबिक ठारी माता को शांत व खुश रखने के लिए टटियाना गांव में इस पर्व का आयोजन 120 वर्ष बाद किया गया है। (एचडीएम)
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