हिमाचल प्रदेश

भरमौर के अधिकारी ने पैदल तय किया 45 KM सफर

Shreya
29 Jun 2023 5:11 AM GMT
भरमौर के अधिकारी ने पैदल तय किया 45 KM सफर
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भरमौर: पहाड़ों का सीना नाप कर लोक निर्माण मंडल भरमौर के सहायक अभियंता ई. विशाल चौधरी क्षेत्र की भाग्य रेखाओं को तैयार कर रहे हैं। विशाल चौधरी ने लाके वाली माता मंदिर से 45 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर बहुचर्चित होली-उतराला सडक़ निर्माण की संभावनाओं को देखा है। सहायक अभियंता की मानें तो सडक़ निर्माण के लिए अब बजट के अलावा कोई अड़चन नहीं है। सडक़ के बीच ग्लेशियरों के आने का कोई खतरा नहीं है। सहायक अभियंता अपनी टीम सहित बुधवार को वापस लौट आए हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले एसडीओ विशाल चौधरी ने न्याग्रां से बड़ा भंगाल सडक़ निर्माण की स्थिति का जायजा लेने निकले थे। उन्होंने अपनी टीम सहित बड़ा भंगाल का पैदल सफर तय कर निर्माण का जायजा लिया था। विशाल चौधरी ने बताया कि 26 जून को वह लाके वाली माता मंदिर से दोपहर में जालसू जोत के लिए पैदल निकले थे। इस दौरान विभाग के होली स्थित कनिष्ठ अभियंता हेमराज ठाकुर भी उनके साथ रहे।

उन्होंने बताया कि पैदल सफर में एक रात याड़ा नामक स्थान पर गुजारी। उन्होंने बताया कि भरमौर मंडल के तहत होली-उतराला सडक़ के तहत लाके वाली माता मंदिर तक कुल 17 किलोमीटर बस योग्य सडक़ है। मंदिर से आगे दो किलोमीटर मार्ग बन चुका है और मौजूदा समय में बीच में गिरे स्लिप हटाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इससे आगे सुरेई से चेन्नई तक तीन किलोमीटर सडक़ के निर्माण हेतु टेंडर प्रक्रिया पूरी कर काम अवार्ड हो चुका है। सुरेई-थनेतर नाला पर पुल का निर्माण होना है और इसकी फ्रेबिकेशन का काम चला हुआ है। लगभग तीन माह में पुल बनकर तैयार हो जाएगा। चन्नी से आगे भरमौर के तहत 17 किमी सडक़ निर्माण होना है, जबकि कांगड़ा जिला की ओर से जालसू टॉप तक कुल साढ़े 33 किलोमीटर सडक़ है, जिसमें तकरीबन 10 किलोमीटर निर्माण पूर्व में हो चुका है।

दुर्लभ जड़ी-बूटियों के दर्शन गद्दी लोगों को करीब से जाना

सहायक अभियंता विशाल चौधरी ने कहा कि उतराला तक के ट्रैक में प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। साथ ही दुर्लभ जड़ी बूटियों के भी इस रास्ते में दर्शन होते है। उनका कहना है कि इस सडक़ के निर्माण होने से जालसू दर्रा व इसके आसपास का क्षेत्र एक बड़ा पर्यटन स्थल के रूप में उभर कर सामने आएगा। विशाल चौधरी ने कहा कि पैदल सफर में गद्दी समुदाय के रहन सहन और संस्कृति को जानने का मौका भी मिला।

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