हिसार न्यूज़: शहरों का बढ़ता ट्रैफिक सड़कों पर सफर करने वालों के लिए परेशानी सबब बना हुआ है. वहीं, इससे होने वाले वायु प्रदूषण से लोगों को सांस से जुड़ी बीमारियों का खतरा बना रहता है. लेकिन, अब अमेरिका में हुए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि बढ़ता ट्रैफिक बच्चों की त्वचा के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है.
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि बढ़ते ट्रैफिक के कारण बच्चों को त्वचा सिकुड़ने के साथ कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. यह रोग को ऐटोपिक डर्मेटाइटिस या एग्जिमा हो सकता है. दरअसल, ट्रैफिक की वजह से वातावरण में कई तरह की गैसें फैल जाती हैं, जिनसे प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि बच्चों को अस्थमा के साथ त्वचा भी खराब हो रही है.
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने डेनवर प्रांत के 2008 से 2021 तक के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आंकड़ों का इस्तेमाल किया. इसमें त्वचा की बीमारियों से जूझ रहे 18 साल तक की आयु के रोगियों की समीक्षा की गई.
अध्ययन के लेखक माइकल नेविड ने बताया कि एटोपिक डर्मेटाइटिस वाले बच्चों कीं त्वचा से एक द्रव टपकता रहता है. पर्यावरणीय खतरों के संपर्क में आने से उन्हें एलर्जी हो सकती है.
यह है ऐटोपिक डर्मेटाइटिस
ऐटोपिक डर्मेटाइटिस या एग्जिमा आमतौर पर बच्चों को ही होता है. इससे कई अन्य एलर्जिक रिएक्शन हो सकते हैं. इसे एटोपिक मार्च भी कहा जाता है. ऐटोपिक डर्मेटाइटिस लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है. इस दौरान अस्थमा और बुखार भी आ सकता है. अमेरिका में लगभग 1 करोड़ बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे हैं.
यह उपाय करें
● सिर्फ 15 मिनट ही नहाएं
● ग्लिसरीन वाले साबुन का इस्तेमाल करें
● नहाने के बाद ढंग से पोंछे
● त्वचा को माइश्चराइज्ड करें
● डॉक्टर की सलाह लें
बीमारी के लक्षण
● त्वचा लाल हो जाती है ,
● खुजली होना
● हाथ-पैर, गर्दन, कलाई में भूरे दाग बनना
● छोटे फोड़े निकलना
● त्वचा सिकुड़कर सख्त हो जाना
हाईवे से ज्यादा दूर रहने पर बीमारी का खतरा कम
अध्ययन शोधकर्ताओं ने बताया कि कोलोराडो परिवहन विभाग से राजमार्ग और स्थानीय सड़क यातायात का डाटा प्राप्त किया गया. डेनवर के उन इलाकों के बच्चे त्वचा की बीमारियों से ज्यादा जूझते नजर आए, जो दस हजार से अधिक वाहनों के वार्षिक औसत दैनिक यातायात वाली सड़कों या राजमार्गों के किनारे बसे थे. इन आंकड़ों की समीक्षा में पाया गया कि हाईवे से दूर रहने वाले बच्चों को इंफेक्शन का खथरा कम था. उन्हनों बताया कि राजमार्गों से एक हजार मीटर की दूरी पर रहने वाले बच्चों में ऐटोपिक डर्मेटाइटिस का खतरा कम था. जबकि हाईवे से 500 मीटर की दूरी पर रहने वाले बच्चों में इसका खतरा काफी ज्यादा था.