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हरियाणा और पंजाब के बीच जंग जारी! चंडीगढ़ पर केवल सियासत हो रही है, कोई राज्य नहीं लेना चाहता?

Gulabi Jagat
7 April 2022 1:48 PM GMT
हरियाणा और पंजाब के बीच जंग जारी! चंडीगढ़ पर केवल सियासत हो रही है, कोई राज्य नहीं लेना चाहता?
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हरियाणा और पंजाब के बीच जंग जारी
चंडीगढ़: चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा की सियासत (resolution on chandigarh) अभी भी गरमाई हुई है. एक तरफ पंजाब ने जहां केंद्र द्वारा अपने सर्विस रूल चंडीगढ़ में लागू किए जाने के बाद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर चंडीगढ़ पर अपना अधिकार जताया. वही इसके विरोध में हरियाणा ने भी विशेष सत्र बुलाकर चंडीगढ़ के साथ-साथ एसवाईएल के पानी और हिंदी भाषी क्षेत्रों का हरियाणा में विलय करने को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया. लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रस्ताव पारित करने से ही इस समस्या का समाधान हो पायेगा?
ऐसा नहीं है कि हरियाणा विधानसभा में चंडीगढ़ या हिंदी भाषी राज्यों को लेकर पहले कोई प्रस्ताव नहीं लाए गए. इससे पहले भी सात बार इस तरीके के प्रस्ताव विधानसभा में लाए जा चुके हैं. लेकिन आज तक इन सभी मुद्दों का कोई समाधान नहीं हो पाया है. विधानसभा में प्रस्ताव लाकर केंद्र के पाले में गेंद को डालने का काम तब भी हुआ और आज भी जारी है. ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या सिर्फ प्रस्ताव पारित करने भर से समस्या का समाधान हो पाएगा?
राजनीतिक मुद्दा है चंडीगढ़ और एसवाईएल का पानी- चंडीगढ़ किसकी राजधानी हो और अन्य मुद्दों को लेकर इससे पहले भी इस तरीके का विवाद दोनों राज्यों के बीच होता रहा है. एसवाईएल(सतलज यमुना लिंक) नहर का मुद्दा तो दोनों राज्यों की राजनीति में हमेशा केंद्र में रहा है. लेकिन बीते कई दशकों से इन मुद्दों का कोई भी समाधान नहीं हो पाया है. दोनों राज्यों और केंद्र में सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो लेकिन किसी की भी इच्छा शक्ति इतनी प्रबल नहीं हो पाई कि इन विवाद का कोई स्थाई हल निकाल पाए. लेकिन दोनों प्रदेशों से संबंधित राजनीतिक दल इन मुद्दों को लेकर राजनीति जरूर करते रहे हैं.
जमीनी स्तर पर नहीं उतर पाई समझौतों की बातें- चंडीगढ़ और अन्य विवादों को लेकर सबसे ज्यादा शाह कमीशन और राजीव लोंगोवाल समझौते को लेकर चर्चा होती है. लेकिन इन समझौतों में जो बातें कही गई थी वह धरातल पर तो नहीं उतर पाई. लेकिन उन बातों को लेकर दोनों प्रदेशों की सियासत हमेशा गरमाई रहती है. राज्य इन मुद्दों को केंद्र के पाले में डालता है तो केंद्र इन मुद्दों पर कभी गर्म कभी नरम रुख अपनाकर ठंडे बस्ते में डालता रहा है. पूर्व की सरकारों में भी यही होता था और मौजूदा दौर में भी ऐसा ही कुछ दिखाई दे रहा है.हरियाणा विधानसभा में राजधानी चंडीगढ़ को लेकर और साथ ही एसवाईएल और हिंदी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा में शामिल करने के संबंध में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया. जब इस मामले में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से सवाल किया गया कि क्या इस मुद्दे का कोई स्थाई समाधान निकलेगा या फिर एवं मुद्दा सिर्फ राजनीति मुद्दा ही बनकर रहेगा तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को इन सब मामलों को लेकर आगे बढ़ना चाहिए. हम इस मामले में सरकार के साथ हैं. जहां तक राजनीति की बात है तो हम राजनीति नहीं कर रहे हैं बल्कि उनके समाधान के लिए भी लड़ाई लड़ने को भी तैयार है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का इस मामले में साफ कहना है कि चंडीगढ़ पर हरियाणा का भी हक है. इसलिए हम सभी ने पंजाब के प्रस्ताव का खंडन किया है. वहीं अन्य सभी मुद्दों का भी समाधान होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था. हमने पंजाब सरकार से भी बात कर इस पर चर्चा की थी. लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकल पाया. उनकी सरकार इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करेगी और सुप्रीम कोर्ट से इस मुद्दे और अपने आदेश को धरातल पर लागू करवाने का अनुरोध करेगी. मुख्यमंत्री मनोहर लाल
भले ही पंजाब और हरियाणा के सभी सियासी दलों के बड़े नेता अपने-अपने प्रदेश के हकों को लेकर अलग-अलग दावे कर रहे हों लेकिन राजनीतिक मामलों के जानकार गुरमीत सिंह कहते हैं कि अंदर की बात यह भी है कि दोनों ही राज्य नहीं चाहेंगे कि चंडीगढ़ उनको मिले, क्योंकि चंडीगढ़ को एक सफेद हाथी कहा जाता है. उस पर अभी जितना खर्च हो रहा है वह शायद राज्य सरकारों को वहन कर पाना मुश्किल होगा. वे कहते हैं कि यहां मुख्यमंत्री भी रहते हैं और बड़े अधिकारी भी. इससे जुड़े और भी कई मुद्दे हैं जिनका समाधान को पाना बहुत ही मुश्किल दिखाई देता है. वे कहते हैं कि हमारे यहां राजनीति तर्क पर नहीं चलती बल्कि भावनाओं पर चलती है. इसलिए जरा सी भी बात होती है तो सभी राजनीतिक दल और प्रदेश को लगता है कि हम कहीं पीछे ना रह जाएं.
गुरमीत सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार ने सिर्फ यूटी के कर्मचारियों के लिए सर्विस रूल लागू किए तो उसके बाद कोई ऐसा बदलाव नहीं आया कि इतना हल्ला किया जाए. अभी भी यूटी में व्यवस्था तो केंद्र सरकार की ही है. यहां के सारे कार्य केंद्रीय गृह मंत्रालय से ही चलते हैं. राजनीति कुछ ऐसी ही है कि पंजाब के मुख्यमंत्री को लगा कि कहीं उन पर कोई आरोप ना लग जाए तो इसलिए उन्होंने विधानसभा सत्र बुला लिया. हरियाणा को लगा कि कहीं उन पर जनता अनदेखी का आरोप ना लगाएं तो उन्होंने भी विधानसभा सत्र बुला लिया. चंडीगढ़ ने तो अपना अलग ही प्रस्ताव ही ले आया. ऐसे में जाहिर है कि यह बात कुछ दिनों में खुद ही ठंडे बस्ते में चली जाएगी. चंडीगढ़ जिस तरीके से अभी चल रहा है आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा.
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