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हरियाणा, कर्नाटक, गुजरात समेत इन राज्यों ने किया स्कूल की किताबों में बदलाव, फिर छिड़ी पुरानी बहस
Deepa Sahu
30 May 2022 7:18 AM GMT
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हरियाणा सरकार की ओर से कक्षा 9 के इतिहास की किताब में कांग्रेस की ‘तुष्टीकरण नीति’ पर शामिल किये गए
नई दिल्ली: हरियाणा सरकार की ओर से कक्षा 9 के इतिहास की किताब में कांग्रेस की 'तुष्टीकरण नीति' पर शामिल किये गए. एक अनुच्छेद (पैराग्राफ) से लेकर कर्नाटक में आरएसएस के संस्थापक के.बी. हेडगेवार के भाषण को कक्षा 10 की किताब में शामिल किया जाना और गुजरात सरकार द्वारा कक्षा 6-10 के पाठ्यक्रम में 'भगवद गीता' के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने तक.
विभिन्न राज्यों द्वारा लिए गए फैसलों की एक श्रृंखला ने स्कूल के पाठ्य पुस्तकों को अपने राजनीतिक झुकाव के अनुरूप ढालने के ऊपर होने वाले बहस पर एक बार फिर से सबका ध्यान केंद्रित कर दिया है.यह बहस कोई नई बात नहीं है. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती एनडीए सरकार की भी इतिहासकारों द्वारा उस कदम के लिए आलोचना की गई थी, जिसे उन्होंने 'शिक्षा के भगवाकरण' के प्रयास के रूप में वर्णित किया था.
पाठ्यपुस्तकों में मुगल इतिहास पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने और 'हिंदू शासकों' के बारे में जानकारी को बाहर रखने के साथ-साथ 'भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के इतिहास में योगदान' को महत्त्व न दिए जाने के लिए कांग्रेस पार्टी पर भी कुछ इसी तरह आरोप लगाए गए हैं.
राजस्थान में तो दोनों दलों की सत्ता में अदलाबदली के साथ पाठ्यपुस्तकों को हर पांच साल में बदलने के लिए जाना जाता है. राजनेतागण पाठ्य पुस्तकों में फेरबदल करने के इन फैसलों का बचाव करते दिखते हैं और इसे उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा नैरेटिव के साथ हेरफेर करने के प्रयासों की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ बताते हैं.
मगर, इतिहासकार और अकादमिक विशेषज्ञ सावधानी बरतने की सलाह देते हैं. उनका कहना है कि और अधिक जानकारी के सामने आने के साथ ही पाठ्य सामग्री को अपडेट (अद्यतन) करना महत्वपूर्ण तो है, लेकिन पाठ्यपुस्तकों को वैचारिक युद्ध के मैदान में बदलने की होड़ में कोई भी विजेता नहीं बन सकता.कांग्रेस का 'तुष्टिकरण', RSS का 'हेडगेवार' और 'भगवद गीता'
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने राज्य के स्कूलों में कक्षा 6 से 10 तक की पाठ्यपुस्तकों को बदल दिया है. इसकी एक सूची हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (एचबीएसई) की आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी गई है. इस कदम ने इस महीने की शुरुआत में खूब सुर्खियां बटोरीं.वर्तमान शैक्षणिक सत्र से एचबीएसई द्वारा पेश की जा रही कक्षा 9 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक में दावा किया गया है कि कांग्रेस का 'सत्ता का लालच' 1947 में भारत के विभाजन (बंटवारे) के कई कारणों में से एक है.
इसे 'कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति' शीर्षक वाले एक अध्याय में समझाया गया है, जिसके अनुसार इस पार्टी के नेता 'मुस्लिम लीग की एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग' के सामने डटकर खड़े होने में असमर्थ रहे थे. इसी पाठ के एक अन्य हिस्से में दावा किया गया है कि कांग्रेस के नेतागण स्वतंत्रता संग्राम से 'थक गए' थे, जिसकी वजह से विभाजन संभव हुआ.
कक्षा 9 की पाठ्यपुस्तक में 'भारत का विभाजन, रियासतों का एकीकरण और विस्थापितों का पुनर्वास' शीर्षक वाले अध्याय के एक पैराग्राफ में लिखा गया है, 'बंटवारे के पीछे के मुख्य कारणों में से एक कांग्रेस के भीतर की थकान और सत्ता के प्रति उसके लालच को माना जाता है. आजादी के लिए लगातार किये जा रहे संघर्ष ने कांग्रेस नेतृत्व को थका दिया था. वे अब और संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं थे. कुछ कांग्रेसी नेता तत्काल स्वतंत्रता और सत्ता पाना चाहते थे.' इसमें आगे कहा गया है 'जब (महात्मा) गांधी ने बंटवारे का विरोध किया, तो ये नेतागण उनके इस विचार से उत्साहित नहीं थे और उन्हें भी विभाजन को स्वीकार करना पड़ा.'
पुस्तक में शामिल एक अन्य अध्याय आरएसएस के संस्थापक के.बी. हेडगेवार और 1922 में हुई शांति स्थापना में हिंदुत्ववादी नेताओं की भूमिका के बारे में हैं. इस भाग में दावा किया गया है कि हिंदुओं पर बार-बार हो रहे हमलों के बाद, हेडगेवार और बालकृष्ण शिवराम मुंजे – कांग्रेस के एक सदस्य जो बाद में हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने – ने हिंदुओं की सुरक्षा के लिए एक समूह के गठन का फैसला किया.
कक्षा 6 की पाठ्यपुस्तक में 'रामायण और महाभारत काल' नामक एक अध्याय है. भारत के मानचित्र का उपयोग करते हुए, यह अध्याय इस बात का दावा करने के लिए पुरातात्विक उत्खनन स्थलों की ओर इशारा करता है कि ये दोनों महाकाव्य सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं. पाठ्यक्रम में किये गए अन्य बदलावों में भारत के मुगल आक्रमण और स्थानीय शासकों ने इसका कैसे मुकाबला किया, के बारे में कई अध्याय शामिल हैं.
हरियाणा विवाद के बाद जल्द ही कर्नाटक – एक और भाजपा शासित राज्य – में भी कुछ इसी तरह का विवाद हुआ.
कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार पर लंकेश पत्रिका के संस्थापक-संपादक कन्नड़ कवि पी. लंकेश, मुस्लिम कन्नड़ लेखक सारा अबूबकर और ए.एन. मूर्ति राव जैसे प्रगतिशील विचारकों की रचनाओं के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह पर आधारित एक अध्याय को कक्षा 10 की कन्नड़ पाठ्यपुस्तक से हटाने का आरोप लगाया गया था. हालांकि, कर्नाटक पाठ्यपुस्तक समीक्षा समिति के प्रमुख रोहित चक्रतीर्थ ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने भगत सिंह पर आधारित अध्याय को नहीं हटाया है, मगर उन्होंने स्वीकार किया कि अन्य लेखकों के कार्य इसमें से हटाए गए हैं. उन्होंने कहा कि इसे इस तरह की शिकायतों की वजह से किया गया था कि पाठ्यक्रम केवल 'एक खास विचारधारा' का पक्ष ले रहा था.
हरियाणा की तरह, कर्नाटक ने भी अपनी कक्षा 10 की कन्नड़ पाठ्यपुस्तक में हेडगेवार पर एक अंश को शामिल किया है. चक्रतीर्थ ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक भाषण है जिसमें हेडगेवार कहते हैं कि इंसानों की पूजा करने के बजाय, उन मूल्यों का पालन करना चाहिए जो समय के साथ नहीं बदलेंगे, और इसका उनकी विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है.
मार्च 2022 में, कर्नाटक सरकार ने यह भी कहा था कि वह सरकारी स्कूलों में 'नैतिक विज्ञान' (मोरल साइंस) के पाठ के एक हिस्से के रूप में 'भगवद गीता' को शामिल करने पर विचार कर रही है. उसी महीने की शुरुआत में गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने घोषणा की थी कि कक्षा 6 से 12 तक के स्कूली बच्चों को उनके पाठ्यक्रम के एक हिस्से के रूप में 'भगवद गीता' पढ़ाया जाएगा. मंत्री ने कहा था कि इसके पीछे का विचार पाठ्यक्रम में इस धार्मिक पुस्तक में 'प्रतिष्ठापित मूल्यों' को शामिल करना है.
बाद में, कई सारे राज्यों ने इसी तरह के विचार का अनुपालन किया. हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड, इन सभी भाजपा शासित राज्यों ने घोषणा की कि वे विभिन्न स्तरों पर गीता को अपने पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में पेश करेंगे.टैगोर की कहानी हटाई गई, मोदी सरकार पर आधारित अध्याय को निकाला गया
पिछले साल जुलाई में, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार – जो भाजपा के नेतृत्व वाली एक और राज्य सरकार है – ने सरकारी स्कूलों के कक्षा 10 और 12 के पाठ्यक्रम में कई बड़े बदलाव किए.
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, जिसे यूपी बोर्ड के रूप में भी जाना जाता है, ने 2021-22 शैक्षणिक सत्र से नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर और पूर्व राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन की रचनाओं को हटा दिया था. टैगोर की लघु कथा 'द होमकमिंग' और डॉ राधाकृष्णन के निबंध 'द वीमेन'स एजुकेशन को कक्षा 12 के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया था. मुल्क राज आनंद की 'द लॉस्ट चाइल्ड,' और आर.के. नारायण के 'एन एस्ट्रोलॉजर'स डे' को भी पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया था. बोर्ड के अधिकारियों ने उस समय कहा था कि ये बदलाव अंग्रेजी के लिए घोषित नए एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन के अनुरूप किये गए हैं.
पाठ्यक्रम (सिलेबस) में ये बदलाव सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों तक सीमित नहीं है. 2019 में, कांग्रेस के अशोक गहलोत के राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद राज्य सरकार ने मोदी सरकार की नीतियों के बारे में बातें करने वाली चार पाठ्यपुस्तकों का पढ़ाया जाना बंद कर दिया था, जो कि उनकी पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के तहत राज्य बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाई जा रही थीं. राज्य के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा था कि सरकार को नीतियों के बारे में छात्रों को पढ़ाने में कोई 'फायदा' नहीं दिखता.
राज्यों द्वारा पेश किये जा रहे बचाव की दलीलों में शामिल हैं NEP पर दिया जा रहा जोर
हरियाणा और गुजरात दोनों ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में किए गए नवीनतम बदलावों का बचाव करते हुए कहा है कि इन्हें नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेशनल एजुकेशन पालिसी-एनईपी) 2020 के हिस्से के रूप में लागू किया जा रहा है जो देश के शिक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधारों की सिफारिश करता है और जो एक अधिक 'भारत केंद्रित' शिक्षा की मांग करता है.
गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने कहा कि उनकी सरकार का 'भगवद गीता' को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला नई एनईपी के अनुरूप है.
18 मार्च को राज्य विधानसभा में बोलते हुए वाघानी ने कहा था, 'यह निर्णय केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है, जो आधुनिक और प्राचीन संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान प्रणालियों को पेश किये जाने की अनुशंसा (सिफारिश) करता है ताकि छात्र भारत की समृद्ध और विविध संस्कृति पर गर्व महसूस कर सकें.'
हरियाणा राज्य बोर्ड (एचएसबीई) का भी कहना है कि उसने स्कूली पाठ्यक्रम में जो भी संशोधन किए हैं, वे उस एनईपी के अनुरूप हैं, जो अपने उद्देश्यों में से एक के रूप में 'भारत में जड़ों से जुड़ने (rootedness) और गौरव' की बात करता है.
इसके नीति दस्तावेज में कहा गया है, (हमारा) विजन .. शिक्षार्थियों के बीच भारतीय होने का गहराई से जुड़ा गर्व पैदा करना है. न केवल विचार के रूप में, बल्कि आत्मा, बुद्धि और कार्यों में भी. साथ ही साथ यह ऐसे ज्ञान, कौशल, मूल्य और तौर-तरीकों को विकसित करने के प्रति भी है जो मानव अधिकारों, सतत विकास और जीवन व्यवस्था, तथा वैश्विक कल्याण के लिए उत्तरदायी प्रतिबद्धता का समर्थन करता है, जिससे वास्तव में वैश्विक नागरिक का स्वरूप परिलक्षित होता है.'
इसी नीति के एक हिस्से के रूप में, केंद्र सरकार वर्तमान में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क -एनसीएफ) विकसित करने की प्रक्रिया में है जो पाठ्यक्रम निर्माण और आने वाले वर्षों में स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को कैसे डिजाइन किया जाएगा, इसके वारे में मार्गदर्शन करेगा. 'भारत में गौरव' (प्राइड इन इंडिया) भी एनसीएफ के शामिल व्यापक विषयों (थीम्स) में से एक है.
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान ने कहा कि स्कूल पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों के बारे में जिस किसी को भी कोई समस्या है, वह इस प्रकिया में शामिल स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) को चुनौती देने और उनसे संपर्क करने के लिए स्वतंत्र है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, 'जब भी पाठ्यक्रम में कोई बदलाव होता है, तो यह जनता और सभी संबंधित हितधारकों के साथ चर्चा के बाद ही किया जाता है. अगर किसी को इससे कोई परेशानी है तो वह अधिकारियों से संपर्क कर सकता है.' उन्होंने कहा, 'अगर हमारी गौरवपूर्ण भारतीय संस्कृति, इतिहास और सभ्यता के बारे में सीखना-सिखाना और समझना कुछ लोगों के लिए भगवाकरण है, तो ऐसा ही सही.' पासवान ने कहा, 'हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि आजादी के बाद हमारे इतिहास को किस तरह से दुबारा लिखा गया है.'
उन्होंने आगे कहा, 'आज की हमारी युवा पीढ़ी हमारे कई गुमनाम नायकों के बारे में कुछ भी जानती ही नहीं है. यही कारण है कि हमें आजादी का अमृत महोत्सव [स्वतंत्रता के 75 वर्ष को मनाने के लिए केंद्र की पहल] मनाने की जरूरत है. ऐसे इसलिए क्योंकि लोगों को यह पता होना चाहिए कि ऐसे कई व्यक्ति और संगठन हैं जिन्होंने राष्ट्र के निर्माण में बहुत योगदान दिया है.'
स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में हिंदुत्व से प्रेरित पाठ्य सामग्री को शामिल किए जाने के दावों पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर पासवान ने कहा, 'जो लोग यह सोचते हैं कि किसी एक विशेष धर्म को महत्व दिया जा रहा है, उन्हें और विस्तार से अध्ययन करना चाहिए. यह भारत का इतिहास है और हमें हमारे देश के इतिहास पर गर्व करने का पूरा अधिकार है.'
कर्नाटक के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने कहा कि उनकी सरकार 'असली इतिहास' को पढाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, 'हम अधूरे सच को पढाने में विश्वास नहीं करते, इसलिए हमने पाठ्यपुस्तकों को संशोधित किया है.'
नागेश ने कहा कि 'कम्युनिस्ट लेखक' जी रामकृष्ण द्वारा भगत सिंह पर लिहे गए अध्याय को लेखक चक्रवर्ती सुलीबेले द्वारा लिखे गए लेख से बदल दिया गया है. मंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि पिछली समीक्षा समिति द्वारा संशोधित पाठ्यपुस्तकें 'झूठ और गलत सूचना' से भरी पड़ी थीं. उन्होंने आगे कहा, 'हेडगेवार के भाषण को इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि यह रोल मॉडल के बारे में बात करता है. इसमें किसी लेखक, संगठन या किसी राजनीतिक दल के बारे में कुछ भी नहीं है.'
भगवद गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने की अपनी सरकार की योजना के बारे में मध्य प्रदेश के भाजपा नेता दुर्गेश केसवानी ने कहा कि यह आम लोगों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए हैं. उन्होंने कहा, 'पिछली कांग्रेस सरकार ने मुगलों की सराहना की और इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में उनके पापों पर सफेदी फेरने का काम किया. हम लोगों को भारतीय संस्कृति और हमारे गौरवशाली इतिहास के प्रति जागरूक करने की दिशा में केवल सकारात्मक कदम उठा रहे हैं. केसवानी ने कहा, 'यहां मूल अंतर यह है कि हम गीता पढ़ाये जाने की बात कर रहे हैं जबकि वे (विपक्ष) मुगल आक्रमणकारियों की वकालत कर रहे हैं. गीता तो हर व्यक्ति को पढ़नी चाहिए. जो भी इसे पढ़ता है उसका जीवन के प्रति नजरिया ही बदल जाता है.
क्या कहते हैं शिक्षाविद और इतिहासकार?
उनका मानना था कि हालांकि बदलाव किया जाना महत्वपूर्ण है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात है पाठ्यक्रम को अपडेट करना, मगर यह राजनीतिक विचारधाराओं से प्रेरित नहीं होना चाहिए. तेलंगाना के डॉ मैरी चन्ना रेड्डी मानव संसाधन विकास संस्थान के प्रोफेसर अमीरुल्ला खान ने दिप्रिंट को बताया, 'पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों को बदलना वाकई महत्वपूर्ण है क्योंकि हम शैक्षणिक उपकरणों की सहायता से ही आधुनिकता की मांगों को बेहतर ढंग से समझते हैं. ये ऐसे निर्णय हैं जिन पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद और अगली औद्योगिक क्रांति में अपने युवाओं को प्रदान करने के लिए हमें किस प्रकार के कौशल और ज्ञान की आवश्यकता है, इस पर विचार करने के बाद ही कोई फैसला लिए जाने की आवश्यकता है.' उनका कहना है, 'राजनीतिक विचारकों द्वारा इतिहास को फिर से लिखना और विज्ञान को फिर से परिभाषित किया जाना किसी भी शिक्षा प्रणाली के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आत्मघाती है.'
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर एजुकेशन स्ट्रैटेजी की स्थापना करने वाली शिक्षिका मीता सेनगुप्ता ने कहा,'कई देशों के मामले में, और पूरे इतिहास में भी, शिक्षा एक राजनीतिक उपकरण रही है, लेकिन ऐसा तभी होता है जब हम एक ही कहानी में फंस जाते हैं.'
वे कहती हैं, 'एक ऐसी शिक्षा प्रणाली के साथ जो आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करती है, जिसे एनईपी द्वारा भी अनुशंसित किया गया है, आदर्श रूप से पाठ्य पुस्तकों को जवाबों की तलाश करने के बजाए सिर्फ सवालों को उठाने के लिए एक टेक-ऑफ पॉइंट (शुरआती बिंदु) होना चाहिए.'
जब वाजपेयी सरकार ने साल 2001 में इतिहास की नई पुस्तकों का प्रस्ताव रखा था, तो इतिहासकारों द्वारा इन परिवर्तनों की जमकर आलोचना की गई थी. इतिहास की इन नई किताबों का कहना था कि आर्यों का इतिहास चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व तक जाता है – यहां तक कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सिंधु घाटी सभ्यता से भी पहले तक – और वे ईरान से आये प्रवासी नहीं हैं .
ब्रिटिश राजनीतिक और सांस्कृतिक पत्रिका 'न्यू स्टेट्समैन' ने दिसंबर 2001 के अपने अंक में इस मामले पर एक लेख प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक था 'इंडिया मूव्स टू तालिबानाइज हिस्ट्री'. भाजपा के वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी इस दावे का समर्थन किया था कि क्षत्रिय (हिंदू योद्धा) चीनियों के भी पूर्वज थे. पाठ्यपुस्तकों से गोमांस की खपत के संदर्भ को भी उच्च जाति के हिंदू बच्चों को भ्रष्ट करने की इसकी क्षमता को लेकर हटाने का प्रस्ताव किया गया था.
इतिहासकार रोमिला थापर और इरफान हबीब सहित अन्य लोगों ने एक 'समीक्षा समिति' द्वारा सुझाए गए इन परिवर्तनों की कड़ी आलोचना की थी. उनके अनुसार, इस पैनल में 'इतिहासकार' शामिल नहीं किये गए थे. हबीब ने जून 2001 में 'वन इंडिया वन पीपल' नामक पत्रिका में एक लेख में लिखते हुए कहा था, 'इतिहास के खिलाफ आरएसएस, जिसे हमारे गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र की कोई परवाह है, की साजिश भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए चिंता का सबब होना चाहिए.'
वाजपेयी सरकार के इस कदम के जवाब में, थापर ने दिसंबर 2001 में हिंदुस्तान टाइम्स में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था 'प्रोपेगंडा एज हिस्ट्री वॉन्ट सेल' ('इतिहास के रूप में प्रचार नहीं चलेगा'). उन्होंने लिखा था, 'यह ज्ञान प्राप्त करने और इसे प्रबंधित करने से सम्बंधित मूल सिद्धांतों पर भी एक हमला है. यदि ज्ञान को किसी भी क्षेत्र में प्रगति करना है तो किसी भी विषय की एक आलोचनात्मक पड़ताल और विश्लेषण की आवश्यकता है, और इसमें पारंपरिक, विवादास्पद और संदेहपूर्ण विचारों को तलाशना शामिल है.' अंततः एनसीईआरटी द्वारा पाठ्यपुस्तकों में ये परिवर्तन शामिल नहीं किए गए थे.
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