चंडीगढ़ | अगर आप ना होते, तो क्या होता इस प्रदेश का’ यह कोई शायरी नहीं है, बल्कि यह अनिल विज के अंबाला निवास पर पहुंचे एक पीड़ित के दिल से निकले हुए शब्द हैं। दरअसल, स्वास्थ्य कारणों तथा अत्यंत गर्मी के चलते प्रदेश के गृह-स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कुछ समय पहले से हफ्ते में एक दिन लगने वाला जनता दरबार बंद कर दिया था। लेकिन बता दें कि अब पीड़ित हफ्ते में एक दिन नहीं बल्कि पूरा सप्ताह ही अपने दुख-दर्द को लेकर अनिल विज के दरबार में पहुंचते दिखते हैं। अधिकतर गिनती पुलिसिया कार्रवाई से असंतुष्ट लोगों की नजर आती हैं, लेकिन बहुत बड़ी संख्या में अन्य विभागों के पीड़ित तथा बहुत से आर्थिक मदद के लिए भी लोगों की भीड़ इस दरबार में देखी जाती है। प्रदेश की जनता को खूब मालूम है कि अगर विज मिल गए तो उनकी सुनी भी जाएगी और सख्त कार्रवाई के आदेश भी होंगे। यानि यह उस राजा का दरबार है, जहां से कोई सच्चा जरूरतमंद खाली नहीं लौटता।
प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज के दरबार में पूर्व 3 पुलिसकर्मी जिन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था, वह भी पहुंचे। हालांकि कोर्ट ने सच्चा और सही मानते हुए उनकी नौकरी बहाल के आदेश दिए थे, लेकिन अधिकारियों के सुस्त रवैया ने उन्हें अनिल विज के दरबार में पहुंचने के लिए उन्हें मजबूर किया। प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने पूर्व पुलिसकर्मी के दर्द को समझने के बाद कोर्ट ऑर्डर पढ़कर तुरंत प्रभाव से अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह विभाग को उनकी बहालगी के लिखित आदेश जारी किए।
दरअसल, हरियाणा पुलिस में सिपाही पद पर मौजूद धर्मवीर, विजयपाल और विनोद कुमार 2008 में पुलिस अधीक्षक अशोक श्योराण के अधीन स्पेशल टास्क फोर्स हिसार व रोहतक रेंज में तैनात थे। जिनके खिलाफ 2010 में आईपीसी की धारा 395,397, 398, 120 बी और 25- 54- 59 के तहत एक प्राथमिकी संख्या 261 दर्ज हुई। जिसमें उन पर डकैती के संगीन आरोप थे। विभाग द्वारा उनकी गिरफ्तारी भी हुई और उन्हें निलंबित करते हुए विभागीय जांच के आदेश जारी हुए। प्रदेश के गृहमंत्री के दरबार में पहुंचे फरियादियों ने बताया कि कथित डकैती से उनका किसी प्रकार का संबंध नहीं था। उनकी गिरफ्तारी भी केवल संदेह के आधार पर हुई और जांच के दौरान उन्होंने संबंधित जांच अधिकारियों का पूर्णत सहयोग किया। ट्रायल कोर्ट में भी रिकॉर्ड में पेश किए गए सबूतों और गवाहों द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर सुविचारित राय बनाई गई कि अभियोजन पक्ष कथित डकैती के आरोपियों की पहचान व मामले को साबित करने में विफल रहा है। इसलिए माननीय न्यायालय ने 6-11-2012 को सभी अभियुक्तों को सम्मानजनक बरी करने के आदेश जारी किए।
पीड़ितों ने बताया कि विभाग द्वारा 16-3-2010 को शुरू की गई विभागीय जांच में जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर उन्हें जारी किए गए कारण बताओ नोटिस का जवाब भी हमने समय सीमा में दिया। बावजूद इसके पुलिस सेवा से उन्हें बर्खास्त किया गया। जिसके बाद उन आदेशों के विरुद्ध नियमानुसार सभी संबंधित अधिकारियों को अपील भी की। लेकिन कोई परिणाम ना निकलता देख अंततः अपनी बर्खास्तगी के आदेशों को सीडब्ल्यूपी 15207/2014 विजयपाल व अन्य के रूप में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय ने 17-1-2017 और पारित निर्णय में एवं विभाग द्वारा इस फैसले के विरोध दायर अपील एलपीए 1152/ 2017 के अपने निर्णय में आवेदकों को वरिष्ठता के सभी परिणामी लाभों और वेतन निर्धारण के साथ सेवा बहाल होने का हकदार मानते हुए विभाग को आदेशित किया। बावजूद इसके संबंधित अधिकारियों ने उन्हें कोई रिलीफ नहीं दिया। जबकि पुलिस अधीक्षक अशोक श्योराण को बहाल कर दिया गया था।