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भाजपा के हरियाणा में स्‍थानीय निकाय चुनाव लड़ने की घोषणा करने से गर्माई सियासत

Gulabi Jagat
29 May 2022 2:03 PM GMT
भाजपा के हरियाणा में स्‍थानीय निकाय चुनाव लड़ने की घोषणा करने से गर्माई सियासत
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भाजपा के हरियाणा में स्‍थानीय निकाय चुनाव लड़ने की घोषणा करने से राज्‍य में सियासत गर्माई हुई
चंडीगढ़। भाजपा के हरियाणा में स्‍थानीय निकाय चुनाव लड़ने की घोषणा करने से राज्‍य में सियासत गर्माई हुई है। लेकिन, राज्‍य में सत्ता में गठबंधन के बावजूद राजनीतिक दलों का अलग-अलग चुनाव लड़ना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कुछ मौके ऐसे आए, जब दो राजनीतिक दल सत्ता में रहे, लेकिन उन्होंने चुनाव अलग-अलग लड़े। हालांकि बाद में ऐसे राजनीतिक दलों के रिश्ते लंबे नहीं चल पाए और उनकी राहें अलग हो गईं।
हरियाणा में पहली बार भाजपा अपने सहयोगी दल को आंखें दिखाने की स्थिति में पहुंची
हरियाणा में फिलहाल भाजपा व जजपा गठबंधन की सरकार है। दोनों दलों के बीच हालांकि चुनावी समझौता कभी नहीं हुआ, लेकिन अलग-अलग प्रेस कान्फ्रेंस में भाजपा व जजपा के नेता मिलकर चुनाव लड़ने के दावे करते रहे हैं। भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार को दो साल सात माह हो चुके हैं, जबकि दो साल तीन माह का कार्यकाल अभी बाकी है।
भाजपा ने जजपा को दिया भविष्‍य की सियासत का संदेश
भाजपा ने शहरी निकाय चुनाव अकेले लड़कर यानी जजपा को किनारे कर यह संदेश दिया है कि भले ही जजपा उसके साथ सरकार में साझीदार है, लेकिन चुनावी गठबंधन चलने वाला नहीं है। हालांकि इसमें शक है कि चुनावी गठजोड़ से मुक्ति पाई भाजपा अब सत्ता में इस गठबंधन को अधिक समय तक बरकरार रखने के हक में होगी।
हरियाणा में पहले भी दो दलों की सरकार रही, लेकिन चुनाव उन्होंने अलग-अलग लड़े। प्रदेश में जब लोकदल और भाजपा की सरकार थी और स्व. देवीलाल राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब अंबाला छावनी के उपचुनाव में अनिल विज ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। लोकदल ने अपना अलग उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा था।
इसी तरह, इनेलो व भाजपा गठबंधन की सरकार में जब यमुनानगर का उपचुनाव हुआ, तब इन दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। यमुनानगर उपचुनाव में भाजपा ने घनश्याम अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया था, जबकि इनेलो ने मलिक चंद को टिकट दिया था।
प्रदेश की राजनीति के जानकार लोग बताते हैं कि राज्य में जब इनेलो व भाजपा की सरकार थी, तब सिंबल पर शहरी निकाय या पंचायत चुनाव लड़ने का प्रचलन नहीं था। उस समय भाजपा के सत्ता में साझीदार होने के बावजूद इनेलो ने सभी निकायों में अपनी पसंद के उम्मीदवार जितवा दिए थे।
प्रदेश में अधिक लंबी नहीं चल पाते गठबंधन, टूटने के बाद लड़ते हैं अकेले चुनाव
इतिहास गवाह है कि प्रदेश में गठबंधन की राजनीति अधिक लंबी नहीं चल पाती। कई मौके ऐसे आए, जब राजनीतिक दलों में गठजोड़ हुए, लेकिन वह अधिक समय तक नहीं चल पाए। ऐसा भी पहली बार हुआ, जब राज्य की सरकारों में भाजपा सहयोगी दल की भूमिका में रही और उसे प्रमुख दल की हेकड़ी झेलनी पड़ी। अब जजपा के साथ गठबंधन की सरकार में यह पहला मौका आय़ा, जब भाजपा हेकड़ी दिखाने की स्थिति में आई है।
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