चंडीगढ़ न्यूज़: पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश से किसानों पर आफत टूट रही है. इस बारिश से सबसे ज्यादा परेशानी पट्टे पर जमीन लेकर खेती करने वाले किसान हैं. एक तो उनकी फसल बर्बाद हो गई है, दूसरा जमीन मालिक को पट्टे की रकम चुकाने के बारे में सोचकर तनाव बढ़ गया है. किसानों का कहना है कि पट्टे की रकम न चुकाई गई तो खेत छिनने का खतरा बन जाएगा.
जिले में हजारों की संख्या में ऐसे किसान खेती कर रहे हैं, उनके पास अपनी थोड़ी-बहुत जमीन है या बिल्कुल भी नहीं है. ये छोटे कृषक जमीन मालिकों से उनकी जमीन को पट्टे पर लेकर अपनी गुजर-बसर करते हैं. मौजूदा समय में एक एकड़ जमीन का पट्टा 35 हजार से 40 हजार रुपये तक चल रहा है. वहीं ग्रेटर फरीदाबाद में सब्जी की खेती करने वाले किसानों को एक एकड़ के लिए 60-70 हजार रुपये प्रति वर्ष तक जमीन मिल रही है. पट्टे पर खेती करने वाले किसान आमतौर पर गेहूं, धान की खेती करते हैं. कुछ गांवों में पट्टे पर लेकर फूलों, नींबू की खेती भी जा रही है. मौजूदा समय में पट्टे पर खेती करने वाले किसानों ने गेहूं की फसल की बिजाई की हुई थी. किसान इस फसल को घर लाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन फसल का पकाव होते ही बारिश का कहर शुरू हो गया. बारिश और हवा की वजह से फसल लेटी हुई है. किसान फसल काटने की तैयारी करते हैं, लेकिन बारिश शुरू हो जाती है.
रुपये चुकाने से लेकर खरीफ की बुआई का संकट: गेहूं की एक एकड़ खेती में करीब 20 हजार रुपये का खर्चा आता है. 35-40 हजार रुपये जमीन मालिक को देने होते हैं. अच्छी फसल हो तो 24 क्विंटल तक गेहूं हो जाता है. वहीं भूसा भी अच्छे दाम पर बिक जाता है. इसी फसल के दम पर किसान जमीन मालिक को पट्टा चुकाता है और धान, ज्वार की बुआई की तैयारी करता है. यही नहीं अपने कर्ज को भी उतारता है. लेकिन इस बार किसानों का बजट गड़बड़ा गया है. इस बार किसानों का अनुमान है कि एक खेत में 16 से 18 क्विंटल की ही पैदावार होगी. किसान 40 प्रतिशत तक नुकसान होने का अनुमान लगा रहे हैं. यही नहीं बारिश से गेहूं की गुणवत्ता भी खराब हो गई है. एक तो गेहूं में नमी है दूसरा इस गेहूं में चमक भी नहीं होती है. इस वजह से आढ़ती भी खरीदारी में नखरे करते हैं.
बारिश की वजह से फसल बर्बाद हो गए. पट्टेदार किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. इसकी वजह उन्हें जमीन मालिक को भी एकमुश्त रकम देनी होती है. यदि फसल का मुआवजा ठीक नहीं मिला तो ऐसे किसान कर्ज के जंजाल में फंस जाएंगे. - धर्मपाल त्यागी, प्रगतिशील किसान, बादशाहपुर गांव