गुजरात

जातीय राजनीति में यूपी-बिहार को पीछे छोड़ सबसे आगे है गुजरात

Renuka Sahu
29 Jun 2022 6:07 AM GMT
Gujarat is at the fore in caste politics, leaving behind UP-Bihar
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फाइल फोटो 

राजनीति में जातिवाद शब्द का नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले यूपी और बिहार याद आता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजनीति में जातिवाद शब्द का नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले यूपी और बिहार याद आता है. क्योंकि इन राज्यों में जातियों के आधार पर क्षेत्रीय दल चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करते हैं. ऐसा नहीं कि जातिवाद केवल इन्हीं 2 राज्यों में है. यदि तुलना करें तो इन दोनों ही राज्यों से ज्यादा जातिवाद गुजरात में है. यहां80 के दशक से ही जातिवाद चरम पर है. यूपी-बिहार तो वैसे ही जातिवाद के नाम पर बदनाम है. असल में जातिवादी फार्मूला तो गुजरात में कांग्रेस की ही देन है. कांग्रेस गुजरात के विधानसभा चुनाव में हार्दिक पटेल ,अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी को युवा तिकड़ी के तौर पर एक खास थ्योरी पर काम कर रही थी, लेकिन हार्दिक पटेल के अलग होते ही कांग्रेस की ये पूरी तिकड़ी बिखर गई. गुजरात में चाहे पाटीदार आंदोलन हो या ऊना की घटनाएं ये सब जातिवादी नमूना भर हैं. 1980 के दौर में कांग्रेस के राज में ही "खाम थ्योरी" के माध्यम से जातिवाद खूब चरम पर पहुंचाया गया. इसी के बलबूते 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी सफलता भी मिली. अब विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में फिर कांग्रेस भाजपा अपने जातिवादी फार्मूले को पूरी तरीके से फिट करने में लगे हैं.

गुजरात में ऐसे पनपा जातिवाद
गुजरात में जातिवाद को सबसे ज्यादा बल 80 के दशक में माधव सिंह सोलंकी ने दिया. उन्होंने "खाम थ्योरी" के रूप में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला तैयार किया. 1985 में इसी फार्मूले के बल पर कांग्रेस को 149 सीटें मिली. खाम फार्मूले में क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान जातियों को रखा गया था. 1990 तक इसी फार्मूले के बल पर कांग्रेस सत्ता में रही, लेकिन बाद में कांग्रेस का यह फार्मूला फेल हो गया. तो फिर पाटीदार समुदाय को साधने का काम बीजेपी ने किया. आज बीजेपी अपने जातिगत समीकरण के बल पर पिछले 27 सालों से सत्ता में बनी हुई है.गुजरात में जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर 52 फ़ीसदी आबादी पिछड़ा वर्ग की है. राज्य में इस वर्ग में कुल 146 जातियां हैं. इसके अलावा 16 फ़ीसदी पाटीदार समुदाय है, जिसे गुजरात का किंगमेकर भी कहा जाता है. गुजरात में 7 फ़ीसदी दलित, 10 फ़ीसदी मुस्लिम और 5 फ़ीसदी सामान्य जातियां हैं.
गुजरात में सौराष्ट्र है जातिवाद का गढ़
गुजरात की राजनीति में सौराष्ट्र से कुल 54 विधायक चुनकर आते हैं .यहां पर सबसे ज्यादा जातिवादी राजनीति का बोलबाला है. 2017 के विधानसभा चुनाव में सौराष्ट्र की 54 सीटों में से 30 सीटें कांग्रेस को मिली थीं. जबकि 30 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. सौराष्ट्र में भाजपा से ज्यादा कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. इस क्षेत्र में आदिवासी मतदाता सबसे ज्यादा है. जो कांग्रेस की मजबूती की सबसे बड़ी वजह हैं.
गुजरात में विधानसभा चुनाव 2022 साल के अंत में होने हैं. वही जातीय राजनीति अब धीरे-धीरे तेज हो रही है. गुजरात में अनुसूचित जनजाति की 15% आबादी है. जबकि अनुसूचित जाति 7% के करीब है. दोनों समुदायों में कुल मिलाकर 36 जातियां शामिल हैं. गुजरात में बाल्मीकि, बंकर, खालसा, मेघवाल, अनुसूचित जाति हैं. गुजरात में कांग्रेस के शासनकाल में दलित और आदिवासी समुदाय को जोड़ने की कोशिश हुई. लेकिन 1990 के बाद कांग्रेस का जातीय फार्मूला कमजोर हो गया, फिर बीजेपी ने पाटीदार समुदाय में अपनी मजबूत पैठ बनाई. गुजरात में पाटीदार समुदाय को सत्ता का किंगमेकर कहा जाता है. इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी पटेल जाति में अपनी मजबूत पैठ के चलते पिछले 27 सालसे स त्ता में है
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