रायपुर। जनता से रिश्ता के पाठक हीरादास साहू ( कलेवा ) ने एक कविता ई-मेल पर शेयर किया हैं.
आघू कोत परेतवा ठाढ़े,देखौ रे कलपिया।
भूत सही लागे मोला,पाछू कोतिक बतिया।।
जोन करना अभी करले, यही हवे सतिया।
मत जोह बिहने-संझा, झन जोहो रतिया।।
जौन होगे होही अऊ, होवत ओहू बढ़िया।।
सबो छोड़ येती ओती, चपक झन छतिया।
पीट झन मूड़ ल घलो, भजो राम रसिया।।
तोर- मोर , येदे -ओदे, दुनिया मतलबिया।।
चले-चल आहस सगा तैं,दुई-चार दिनिया।
रहना निये कोई ल इहाँ, सेठ साहू बनिया।।
भूत-परेत ला मारो अभीच,तभे बने गतिया।।
भूत तोर घरमें बइठेहे, अंधियारी कुरिया।
देखत नइहस ओला तैंहर,नइहे तोर ले दूरिया।।
नंगत लाहो लेवत हवे,करे छति गतिया।।
कलप- कलप के मरना होगे, परेत ला काहे पिरिया।
नइ भागे दवई-दारूमा, कतरो खाले किरिया।।
आज-अभी के मन्तर मारो, करले काम बढ़िया।।
छूमंतर होगे परेतवा,अब नइहे कोनो भूतिया।
'हीरा' के आगू-पाछू नाचे,मन के सगरो कूतिया।।
अंजोर बनके आज राम ,घर आगे भरपूरिया।।।