छत्तीसगढ़

कविता आज-अभी

Nilmani Pal
4 April 2024 7:17 AM GMT
कविता आज-अभी
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रायपुर। जनता से रिश्ता के पाठक हीरादास साहू ( कलेवा ) ने एक कविता ई-मेल पर शेयर किया हैं.

आघू कोत परेतवा ठाढ़े,देखौ रे कलपिया।

भूत सही लागे मोला,पाछू कोतिक बतिया।।

जोन करना अभी करले, यही हवे सतिया।

मत जोह बिहने-संझा, झन जोहो रतिया।।

जौन होगे होही अऊ, होवत ओहू बढ़िया।।

सबो छोड़ येती ओती, चपक झन छतिया।

पीट झन मूड़ ल घलो, भजो राम रसिया।।

तोर- मोर , येदे -ओदे, दुनिया मतलबिया।।

चले-चल आहस सगा तैं,दुई-चार दिनिया।

रहना निये कोई ल इहाँ, सेठ साहू बनिया।।

भूत-परेत ला मारो अभीच,तभे बने गतिया।।

भूत‌ तोर घरमें ब‌इठेहे, अंधियारी कुरिया।

देखत न‌इहस ओला तैंहर,न‌इहे तोर ले दूरिया।।

नंगत लाहो लेवत हवे,करे छति गतिया।।

कलप- कलप के मरना होगे, परेत ला काहे पिरिया।

न‌इ भागे दव‌ई-दारूमा, कतरो खाले किरिया।।

आज-‌अभी के मन्तर मारो, करले काम बढ़िया।।

छूमंतर होगे परेतवा,अब न‌इहे कोनो भूतिया।

'हीरा'‌ के आगू-पाछू नाचे,मन के सगरो कूतिया।।

अंजोर बनके आज राम ,घर आगे भरपूरिया।।।

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