छत्तीसगढ़

पितृ पक्ष में अपने माता-पिता की मूर्ति बनाने का नया रिवाज

Nilmani Pal
1 Oct 2024 4:20 AM GMT
पितृ पक्ष में अपने माता-पिता की मूर्ति बनाने का नया रिवाज
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भिलाई bhilai news। पितृ पक्ष में अपने माता-पिता की प्रतिमाएं बनवाने की नई परम्परा का आगाज छत्तीसगढ़ी संस्कृति में हुआ है। अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का यह नया प्रचलन समाज में नये सबेरे का संकेत दे रहा है। इसी तारतम्य में प्रसिद्ध मूर्तिकार अंकुश देवांगन ने ग्राम फुंडा, तहसील पाटन के वरिष्ठ समाजसेवी रूमलाल साहू की नयनाभिराम प्रतिमा का निर्माण किया है। bhilai

रूमलाल साहू के हूबहू प्रतिमा बनाए जाने पर वेदांत साहू, परिवार तथा रुक्मणी फार्म हाउस फुंडा के समस्त सदस्यों ने मूर्तिकार अंकुश देवांगन को धन्यवाद ज्ञापित किया है। ज्ञात हो कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक महापुरुषों की प्रतिमाएं ही बनाया जाना प्रचलन में रहा है लेकिन शिक्षा और संस्कार की नई परिपाटी ने माता-पिता के प्रति एक नये नजरिये का सूत्रपात किया है।

और समाज में अब तेजी से अपने माता-पिता को सम्मान देने का एक नया दौर शुरू हुआ है जो कि सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है। प्रख्यात मॉडर्न आर्ट चित्रकार और आर्ट क्रिटिक डी.एस.विद्यार्थी ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे और लोग भी प्रेरित होंगे। उन्होंने बताया कि बस्तर के आदिवासी समाज में यह परम्परा प्राचीन काल से रही है। लेकिन वहां की मूर्तियां हूबहू न होकर प्रतीकात्मक बनाई जाती है मसलन यदि वे हवाई जहाज में बैठने का शौक रखते थे तो उन्हें उसी में बिठाया जाता है। इसी तरह से किसी को मोटरसाइकिल तो किसी को कार इत्यादि में भी बहुत छोटे स्वरूप में उनके समाधि स्थल पर बनाया जाता रहा है। इसके अलावा लकड़ी और लंबे पत्थर के खम्भे जिसे गायता पखना कहते हैं उसे जमीन में सीधा गाड़कर उनमें उनके जीवन से संबंधित चित्रकारी की जाती है। जिसमें अनिवार्य रूप से चिड़ियों को बनाया जाता है जो कि जीवन के दार्शनिक पहलू का बखान करती है कि आत्मा को एक दिन चिड़िया की तरह उड़ जाना है। बहरहाल विद्यार्थी अंकुश द्वारा साहूजी की हूबहू प्रतिमा बनाने पर उन्हें बधाई दी है और इस नई परम्परा के लिए वेदांत साहू को भी साधुवाद दिया है। विद्यार्थी जी ने कहा है कि महापुरुषों की प्रतिमाएं बनाना सामान्य बात है कोई भी कलाकार बना सकता है परन्तु किसी के माता-पिता की हूबहू मूर्ति बनाना अत्यंत ही दुष्कर कार्य है। क्योंकि इसमें अतिरिक्त सावधानी, परिश्रम और गहन धैर्य की जरूरत पड़ती है। ऐसी प्रतिमाएं बनाना हर किसी कलाकार के बस की बात नही है। यह कार्य अंकुश देवांगन जैसे बिरले कलाकार ही कर सकते हैं जो अपनी कलासाधना में दिन रात डूबे रहते हैं।

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