जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड अपने कारनामे और अनियमितताओं को लेकर हमेशा से सुर्खियों में रहा है। बावजूद सरकार और प्रशासन के साथ सत्ताधारी दलों के नेता बोर्ड और उसके अधिकारियों पर मेहरबान रहे। बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों द्वारा बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स में खुलेआम अनियमितता, भ्रष्टाचार करने और कैग व विभागीय जांचों में अनियमितता साबित होने के बावजूद न कभी कोई कार्रवाई हुई और न ही किसी अधिकारी पर गाज गिरी। अपने कुप्रबंधन और मनमानियों से सरकार को करोड़ों के घाटे में झोंकने वाले बोर्ड के अधिकारियों का एक और कारनामा सामने आया है। हाल ही में एनएमडीसी ने जगदलपुर के नियानार में बनने वाले अपने महत्वाकांक्षी हाउसिंग प्रोजेक्ट छग हाउसिंग बोर्ड से छिन लिया था। इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए 2018 में स्थल चयन के साथ प्रारंभिक तैयारियां शुरू हो गई थी. लेकिन बोर्ड के लचर कार्य प्रणाली के चलते एनएमडीसी ने इस प्रोजेक्ट को बोर्ड से छिन लिया। धरातल पर नहीं उतार सके। इस योजना के लिए हाउसिंग बोर्ड ने 26189826.00 रुपए खर्च होने की जानकारी आरटीआई में दिया था जबकि सच्चाई यह है कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले ही हाउसिंग बोर्ड ने लगभग 8,53,03,758.00 रुपए खर्च किए। यह खुलासा हालही में संपन्न हुई संचालक मंडल की बैठक से हुआ जिसमें बकाया 5,82,70,114.98 रुपए एक फीसदी एबोर्ट चार्जेस के साथ वसूलने का एजेंडा पास किया गया है।ये हैरान करने वाली है कि एनएमडीसी से राशि मिले बगैर आखिर किसकी अनुमति और आदेश से इतनी बड़ी रकम उस प्रोजेक्ट के लिए खर्च की गई जो हाउसिंग बोर्ड के हाथ में नहीं आई। एनएमडीसी ने नगरनार स्टील संयंत्र के लिए जगदपुर के नियानार में एक बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए छग हाउसिंग बोर्ड को निर्माण एजेंसी नियुक्त किया था, लेकिन हाल ही में एनएमडीसी ने 1200 करोड़ की इस महत्वाकांक्षी योजना से छग हाउसिंग बोर्ड को अलग कर दिया। एनएमडीसी ने इस योजना की 2016 में घोषणा की थी। हाउसिंग बोर्ड ने हैदराबाद में इसके प्रेजेन्टेशन भी दिया था जिसके बाद उसे एनएमडीसी ने निर्माण एजेंसी नियुक्त किया था। हाथ से गवां चुके इस प्रोजेक्ट के लिए हाउसिग बोर्ड के अधिकारियों ने पानी की तरह रुपए खर्च किए। सूचना के अधिकार के तहत जुटाई गई जानकारी में जगदलपुुर संभाग के कार्यपालन अभियंता के अनुसार 2016 से 2020 तक यात्रा व्यय होटल, खाना, गाडिय़ों व बैठकों में ही 26189826.00 रुपए फूंक दिए गए और इसके बाद भी प्रोजेक्ट हाथ से खिसक गया।
एनएमडीसी से बकाया वसूली के लिए एजेंडा
हाउसिंग बोर्ड की संचालक मंडल की विगत 09/12/20 को हुई बैठक में एक एजेंडा योजना के निरस्तीकरण प्रस्ताव के अनुमोदन और प्रोजेक्ट के लिए खर्च हुई रकम की बकाया वसूली के लिए लाया गया एजेंडा भी था। बैठक में इंटीग्रेटेड आवासीय टाउनशिप के निर्माण कार्य के निक्षेप कार्य का निरस्तीकरण प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। जिसमें यह खुलासा हुआ कि प्रोजेक्ट के लिए हाउसिंग बोर्ड ने 2.62 करोड़ नहीं बल्कि 8,53,03,758.00 रुपए खर्च किए, जिसमें बताया गया कि विभिन्न मिटिंग के लिए हैदराबाद प्रवास के लिए खर्च 30,30,776.98, अधिवक्ता हेतु खर्च रु. 2,06,200.00, आईआईटी(स्ट्रक्चुअल डिजाइन) के लिए खर्च रु. 67,83,639.00, पर्यावरण अनुमति के लिए राशि रु. 2,00,000.00, आर्किटेक्ट चयन के लिए आरएफपी पीएसी एवं निविदा के विज्ञापन के लिए खर्च रु. 2,3580,638.00 और वास्तुविद का बिल रु. 5,15,02500.00 शामिल है। एजेंडे में बताया गया कि एनएमडीसी द्वारा वास्तुविद का प्रथम रनिंग बिल के लिए राशि 2,02,50,000.00 एवं आईआईटी दिल्ली के लिए 67,83,639,00 कुल राशि 2,70,33,639.00 ही प्रदान किया है शेष खर्च की राशि रु. 5,82,70,114.98 प्राप्त किया जाना है। संचालक मंडल ने एनएमडीसी द्वारा एक तरफा एमओयू एग्रीमेंट निरस्त किए जाने के खिलाफ प्रोजेक्ट कास्ट राशि रु. 1995.00 करोड़ के एक प्रतिशत एबोर्ट चार्ज के साथ 19.95 करोड़ रुपए लेने का हकदार होने का प्रस्ताव पारित किया है।
सत्ताधारी राजनेताओं और अधिकारियों का चारागाह
गृह निर्माण मंडल छत्तीसगढ़ शासन का वह सफेद हाथी है जो अपने स्व वित्त पोषित संस्था होने के चलते सत्ताधारी राजनेताओं और अधिकारियों का चारागाह बना रहा, जिसे निर्माण मंडल के तत्कालीन पदाधिकारियों और अधिकारियों ने गन्ने की तरह चूस डाला। मीठा-मीठा अपने रिश्तेदारों और कड़वा-कड़वा जनता को सौंप कर कोप का भाजक बना। जिसके अभिशाप से हाउसिंग बोर्ड कभी मुक्त नहीं हो सका। आज तक घाटे से नहीं उबर पाई है। फिर तत्कालीन सरकार हाउसिंग बोर्ड पर दांव लगाती रही। क्योंकि सफेद हाथी का गोबर भी सोने का होता है। भाजपा सरकार ने 15 सालों तक हाउसिंग बोर्ड का अपने निजी स्वार्थ के लिए जमकर दोहन किया। एनएमडीसी के पहले दो बड़े प्रोजेक्ट दुर्ग और बिलासपुर फेल होकर फाइलों के गर्त में दब चुका है। उसका सारा धन अधिकारियों और तत्कालीन सत्तादारी नेताओं ने ऐसी लूट मचाई की उन्हें तो लूट का लाइसेंस मिल गया हो। जनता के पैसे का बेमतलब उपयोग करने की छूट मिल गई हो।
सवाल यह है कि प्रोजेक्ट में इतनी बड़ी रकम किस अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में और किसकी मर्जी से खर्च किए जब प्रोजेक्ट का कोई निर्माण कार्य ही नहीं हुआ। आर्किटेक्ट ग्रुप को बगैर टेंडर के और बगैर किसी लेखा परीक्षण (ऑडिट) के एक करोड़ 68 लाख रुपए का पेमेंट कर दिया गया, होटल और ट्रैवलिंग खर्च के नाम पर 25 लाख 40 हजार लगभग खर्च करती है। हाउसिंग बोर्ड सबसे घाटे में चलने वाला सरकारी उपक्रम है और राज्य सरकार के लिए सफेद हाथी साबित घोषित हो चुका है । अधिकारी जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा मनमानी ढंग से उपयोग कर हाउसिंग बोर्ड का प_ा बताए जा रहे हैं अब सवाल यह उठता है कि 2 करोड़ 18 लाख जितनी बड़ी रकम किससे और कैसे सरकार वसूल करेंगे। बिगर की अनुमति के बगैर किसी जांच के बगैर किसी परमिशन के इतनी बड़ी रकम का खर्च कर देना हाउसिंग बोर्ड के हित में नहीं हुआ है। जाहिर है छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल सरकारी धन को सुनियोजित तरीके से बंदरबाट कर चूना लगाने का उपक्रम बना हुआ है।
छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों का एक और कारनामा...
आरटीआई में बताया था 2.62 करोड़ खर्च हुए
संचालक मंडल की बैठक में एबोर्ट चार्जेस के साथ वसूली का प्रस्ताव