छत्तीसगढ़

प्रथम दादागुरूदेव श्री जिनदत्त सुरी की 871 स्वर्गारोहण महोत्सव धूमधाम से मनाया

Nilmani Pal
6 July 2025 12:03 PM GMT
प्रथम दादागुरूदेव श्री जिनदत्त सुरी की 871 स्वर्गारोहण महोत्सव धूमधाम से मनाया
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रायपुर। परम पूज्या हसंकीर्ति श्रीजी म सा की पावन निश्रा में जिनकुशल सुरी जैन दादाबाड़ी में दादागुरूदेव श्री जिनदत्त सुरी जी की पूजा के माध्यम से खरतरगच्छ युवक परिषद के संयोजन में दादा महिमा व गुणानुवाद किया गया। इस दौरान ऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी राजेंद्र गोलछा, मेघराज कांकरिया, आर्यन पारख, चातुर्मास समिति के संयोजक अमित मुणोत आदि उपस्थित रहे।

जीवन परिचय -

युगप्रधान दादा गुरुदेव श्री जिनदत्त सूरीश्वरजी म.सा. की 871वीं पुण्यतिथि पर विनम्र वंदना

जन-जन की आस्था के केंद्र, युगप्रधान दादा गुरुदेव श्री जिनदत्त सूरीश्वरजी म.सा. की 871वीं पुण्यतिथि दिनांक 6 जुलाई 2025 को भावपूर्वक मनाई जा रही है। आपके श्रीचरणों में अनंत-अनंत वंदन। यदि जिनदत्त सूरी जैसे दिव्य पुरुष न होते, तो शायद जिनशासन का इतना विस्तार और प्रभाव संभव न होता। आपका जन्म वि.सं. 1189 (1132 ई.) में धोलका नगरी में हुआ। पिता श्री वाछींग सा मंत्री एवं माता श्री वाहड देवी के पुत्र को जन्म के पूर्व ही माता ने रत्नकुक्षी में सौम्य, प्रकाशवान और शीतलता से भरपूर पूर्णिमा के चंद्रमा का स्वप्न देखा, इसी कारण आपका नाम ‘सोमचंद्र’ रखा गया। मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में आपने श्री धर्मदेव उपाध्याय से दीक्षा ग्रहण की और ‘सोमचंद्र मुनि’ नाम प्राप्त किया। आपकी शिक्षा के प्रमुख आचार्य श्री सोमदेव गणि एवं श्री हरीसिंहाचार्य रहे।

पट्ट परंपरा में आपने श्री जिनवल्लभ सूरिजी म.सा. से ज्ञान प्राप्त किया, जो स्वयं स्तंभन तीर्थ के प्रकटकर्ता एवं श्री अभयदेव सूरिजी के शिष्य थे। वि.सं. 1169 में चित्तौड़ में 37 वर्ष की आयु में आपने आचार्य पद को सुशोभित किया। आपके पदारोहण समारोह में श्री लक्ष्मण सिंहजी डोशी एवं श्री भुवनपालजी डोशी उपस्थित रहे, जिनकी सातवीं-आठवीं पीढ़ी में श्री कर्माशाह डोशी ने शत्रुंजय तीर्थ का 16वां उद्धार किया।

आपका शासन प्रभाव अत्यंत व्यापक रहा। आपने 1,30,000 अजैन परिवारों को जैन धर्म में दीक्षित किया और ओसवाल समाज के सैकड़ों गौत्रों एवं उपगौत्रों की रचना कर उसे सामाजिक समृद्धि के शिखर तक पहुँचाया। विक्रमपुर में फैली महामारी को आपने अपने तपोबल से शांत किया। आपने जिनशासन में प्रथम बार सप्त स्मरण की रचना की और गुरु गौतम स्वामीजी के पश्चात पहली बार एक साथ 1200 लोगों (500 पुरुष और 700 स्त्रियों) को दीक्षा देकर इतिहास रचा।

आपने शिथिलाचार और चैत्यवास जैसी रूढ़ियों का खंडन किया। चित्तौड़ के वज्र स्तंभ में संरक्षित ग्रंथों के माध्यम से आपने सप्तम महासिद्धि प्राप्त की। आपकी साधना से 5 पीर, 52 वीर, 64 योगिनियाँ सिद्ध होकर शासन प्रभावना में सहायक बनीं। गिरनार तीर्थ पर साधना करते हुए अम्बड़ श्रावक ने अम्बिका देवी से वर्तमान युगप्रधान का नाम पूछा, तब देवी ने श्लोक में उत्तर दिया

"दासानुदासा ईव सर्व देवा:

यदीय पादाब्जतले लुठंति।

मरुस्थली कल्पतरु स जियात्

युगप्रधानो श्री जिनदत्त सूरी:"

आपके जीवन में अनेक चमत्कार भी हुए। सूरत में आपने एक अंधे को दृष्टि, गूंगे को वाणी और मृत गाय को देवों की सहायता से पुनर्जीवन दिया। बिजली को पात्र में स्तंभित कर दिया। आपने मणिधारीजी को छह वर्ष की उम्र में दीक्षा दी और आठ वर्ष में आचार्य बना दिया। इतना ही नहीं, उनके स्वर्गवास की भविष्यवाणी भी पूर्व में कर दी थी। आपकी अलौकिक साधना और प्रभु वीर के शासन की अप्रतिम प्रभावना ने जैन धर्म को जन-जन का धर्म बना दिया। यादवगिरी के नरेश त्रिभुवनपाल और अर्णोराज जैसे अनेक राजाओं को आपने धर्म में प्रवृत्त किया।

आपके स्वर्गारोहण के पश्चात भी आपके चमत्कारिक प्रभाव यथावत रहे। अग्निसंस्कार के समय आपकी चद्दर नहीं जली, जो आज भी जैसलमेर दुर्ग के जिनभद्र सूरी ज्ञानभंडार में सुरक्षित और दर्शनीय है। आप प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत के अत्यंत विद्वान थे। आपने अनेक श्रेष्ठ ग्रंथ, स्तोत्र एवं स्तुतियों की रचना की। श्री सीमंधर स्वामीजी ने आपके विषय में कहा कि जिनदत्त सूरी एकावतारी हैं, जो वर्तमान में प्रथम देवलोक के टक्कल विमान में सामानिक देव के रूप में विराजमान हैं और भविष्य में महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धत्व प्राप्त करेंगे। आषाढ़ सुदी एकादशी के दिन आपने इस संसार को अलविदा कहा। अग्नि ने भले आपकी देह को मिटा दिया हो, लेकिन आपके यश और कीर्ति को नहीं। आज भी आपकी ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। आपका नाम स्वयं में एक मंत्र है। आपकी प्रतिमा के दर्शन में आज भी आपके साक्षात् दर्शन हो जाते हैं।

गुरुदेव, हम आपके श्रीचरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं कि आपकी कृपा दृष्टि सकल संघ और हम सभी पर सदैव बनी रहे। आपने कभी माझी बनकर, कभी साथी बनकर, कभी दादा बनकर जो साथ निभाया है, वह साथ सदा अक्षुण्ण, अखंड और अमूल्य बना रहे। आपकी पुण्यतिथि को हम आराधना, साधना, उपासना, दर्शन, जाप और भक्ति के माध्यम से श्रद्धापूर्वक मनाएं। आपने जिन शासन का जो उपकार हमारे पूर्वजों पर किया है, वह अनंत है। हम आपके ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते। आप सदा हमारी स्मृति में अक्षुण्ण और अमिट रहेंगे।

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