सिवान न्यूज़: जिले में मनरेगा से मजदूरों का मोहभंग हो रहा है. मनरेगा में कम मजदूरी मिलने वह भी समय पर नहीं जबकि निजी कामों में अधिक मजदूरी मिलने के कारण मजदूर शहर की ओर रुख कर रहे हैं. दैनिक मजदूरी भी कई बार कई-कई महीने तक नहीं मिलती है.
इससे घर-परिवार तक चलाने में समस्या खड़ी हो जा रही है. मनरेगा से जुड़े मजदूरों का कहना है कि मनरेगा से मजदूरी करके अब परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है. बताया जा रहा कि मनरेगा में सिर्फ 210 रुपये मजदूरी मिलने के कारण श्रमिक गांव में काम करने से कतरा रहे हैं. मनरेगा के तहत गांवों के विकास के लिए तालाब, सड़क, नाली, पौधरोपण समेत अन्य कार्य कराए जाते हैं. इस योजना में काम करने वाले मजदूरों को 210 रुपये के हिसाब से मजदूरी मिलती है. वह भी काम पूरा होने के करीब एक माह बाद भुगतान किया जाता है. जानकारों के अनुसार मजदूरों को भुगतान के लिए कई दिनों तक बैंकों का चक्कर लगाना पड़्ता है. वहीं मनरेगा से इतर काम में लगे मजदूरों को 350 रुपये से लेकर 450, 500 रुपये तक प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिल जाती है. भवन निर्माण से लेकर साफ-सफाई, रंगाई-पुताई समेत अन्य कई तरह के कार्य आसानी से मिल जाते हैं.शहर में ग्रामीण इलाके से निजी कार्य करने आए मजदूरों को काम समाप्त कर घर लौटने के दौरान ही तत्काल पैसा मिल जाता है. यही कारण है कि मनरेगा से जुड़े मजदूर अब यहां काम करने की बजाए प्राइवेट कामों में अधिक रुख कर रहे हैं. शहर के शांति वट वृक्ष, हॉस्पिटल मोड़ व पुरानी किला मोड़ समेत अन्य जगहों पर सुबह आठ बजते-बजते काफी संख्या में ग्रामीण इलाके से मजदूर आकर खड़े हो जाते हैं. यहां से लोग भवन निर्माण समेत अन्य कार्यों के लिए मजदूरों को ले जाते हैं. शाम पांच बजे काम खत्म होने के बाद हाथों हाथ नगद मजदूरी भी मिल जाती है.इधर, डीपीओ मनरेगा ने बताया कि मनरेगा में जो भी व्यक्ति काम करना चाहता है, उसे हर हाल में काम दिया जाता है. जो लोग काम मांगने आते हैं, उनके कार्य के अनुसार कार्य दिए जाते हैं. फिलहाल, मनरेगा में भुगतान बकाया नहीं है.