बिहार

चाय बागानों से बिहार का किशनगंज बना दार्जिलिंग, फसल उद्यानिक विकास योजना में चाय की खेती शामिल, मिलेगी सब्सिडी

Renuka Sahu
9 March 2022 3:41 AM GMT
चाय बागानों से बिहार का किशनगंज बना दार्जिलिंग, फसल उद्यानिक विकास योजना में चाय की खेती शामिल, मिलेगी सब्सिडी
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फाइल फोटो 

पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला किशनगंज बिहार का इकलौता ऐसा जिला है, जहां चाय के मनोरम बागान दिखते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला किशनगंज बिहार का इकलौता ऐसा जिला है, जहां चाय के मनोरम बागान दिखते हैं। सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग से भौगोलिक निकटता से मौसम भी सुहाना बना रहता है। पिछले कुछ वर्षों से यहां लगातार चाय की खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। इससे हजारों लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही जिले में समृद्धि भी आई है। वर्ष 1992 में पांच एकड़ से शुरू हुई चाय की खेती का रकबा बढ़कर आज 10 हजार एकड़ तक पहुंच गया है। अभी जिले में नौ निजी और एक सरकारी टी-प्रोसेसिंग प्लांट चल रहे हैं। डेढ़ हजार टन से ज्यादा चायपत्ती तैयार होकर बाजार में जा रही है।

वर्ष 1992 में 'टी बोर्ड ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट में किशनगंज के मौसम को चाय बागान के अनुकूल बताया गया था। इस रिपोर्ट को देखने के बाद उद्यमी डॉ. राज करण दफ्तरी ने उसी साल जिले के पोठिया में पहली बार पांच एकड़ में चायपत्ती की खेती शुरू की थी। उसके बाद से जिले में लगातार चाय की खेती का रकबा बढ़ता गया। बिहार टी प्लांटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगाल व असम की तर्ज पर यदि बिहार सरकार भी चाय की खेती को बढ़ावा दे तो राज्य की अर्थव्यवस्था में किशनगंज जिला अग्रणी हो सकता है। किशनगंज जिले में चाय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार को वर्ष 1995 की औद्योगिक नीति को लागू करना चाहिए।
चाय उत्पादन का गणित
किशनगंज जिले के तीन प्रखंड किशनगंज, पोठिया व ठाकुरगंज में लगभग पांच हजार किसान चायपत्ती की खेती से जुड़े हैं। यहां उत्पादित चाय की खुशबू देश ही नहीं, वरन विदेशों में भी फैलने लगी है। एक एकड़ में चायपत्ती की खेती शुरू करने में लगभग एक लाख से सवा लाख रुपए की लागत आती है। पहले तीन साल पौधे विकसित होने में लगते हैं। चौथे साल से प्रतिवर्ष न्यूनतम 25 हजार रुपये आय होने लगती है। अगले पांच साल में पूरी लागत वसूल हो जाती है। आठवें साल से मिलने वाली रकम शुद्ध मुनाफा होता है, जो अगले 50 वर्षों तक मिलता रहता है। इस दौरान पौधों के रखरखाव पर मामूली खर्च आता है।
विशेष फसल उद्यानिक विकास योजना के तहत इस बार चाय की खेती को शामिल किया गया है। चाय के नए पौधे लगाने वाले किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। किशनगंज में 75 हेक्टेयर का लक्ष्य है। 700 आवेदन आए हैं।
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