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आने वाले समय में हीटवेव की स्थिति और भी हो सकती है. विकराल
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :भारतीय उपमहाद्वीप में अप्रैल-मई में हीटवेव आम बात हैं, लेकिन इस बार जिस तरह से पारा इतनी जल्दी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा है,
उसने दुनिया भर के जलवायु वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है.
मार्च में पिछले 122 वर्षों का औसत अधिकतम तापमान का उच्चतम स्तर 33.1 डिग्री का रिकॉर्ड पहले ही टूट चुका है.
डॉ. रमेश ने बताया कि हम पूर्व-औद्योगिक युग से 1.2 डिग्री सेल्सियस वॉर्मिंग का स्तर पहले ही पार कर चुके हैं, इसलिए मौसम में बदलाव तो होने ही थे.
लेकिन ये बदलाव इतनी जल्दी हो जाएंगे, इसका अनुमान नहीं था. भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिनमें इस साल इतनी जल्दी गर्मी ने जोर पकड़ा है.
2016 से 2019 तक भारतीय मौसम विभाग का नेतृत्व करने वाले डॉ. रमेश ने आशंका जताई कि आने वाले समय में हीटवेव की स्थिति और भी विकराल हो सकती है. उन्होंने बताया कि तेजी से बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक में बर्फ की परत तेजी से पतली हो रही है.
इससे दुनिया में सर्कुलेशन का पैटर्न बदल रहा है. इसका नतीजा उत्तरी गोलार्ध के और गर्म होने के रूप में सामने आ सकता है. इसके अलावा, पहले जो सौर विकिरण जमी हुई बर्फ से परावर्तित होकर लौट जाता था, अब महासागरों में अवशोषित हो रहा है.
इससे आने वाले वर्षों में खासतौर से दक्षिण एशिया और भारत जैसे उष्णकटिबंधीय इलाकों में बेहद तेज गर्मी के हालात बन सकते हैं.अप्रैल में औसत मासिक तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस रहा है, लेकिन जो विसंगतियां हम देख रहे हैं, वो इससे कहीं ज्यादा हैं.
देश के कई इलाकों में पारे ने 47 डिग्री सेल्सियस का स्तर छू लिया है या छूने के करीब है. मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिकॉर्डतोड़ गर्मी की वजह ग्लोबल वार्मिंग है.
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक रह चुके डॉ. के. जे. रमेश का कहना है कि
जलवायु परिवर्तन से भारत के वातावरण में जो बदलाव सन 2025 और 2030 में आने का अनुमान लगाया जा रहा था, वह अभी से दिखाई देने लगे हैं.-
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