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कोयला संकट : राजनीति, आंदोलन, व्यापार, और आकड़े, त्रासदी की गंभीर दस्तक

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29 April 2022 9:58 AM GMT
कोयला संकट : राजनीति, आंदोलन, व्यापार, और आकड़े,  त्रासदी की गंभीर दस्तक
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2019 में ही कर दिया गया था आगाह coalcrisis

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : वह दिन अब दूर नहीं जब पर्यावरण और पेड़ पौधे किताब में दुर्लभ धरोहर के विषय में पढ़े जायेंगे, यह बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता कि आगामी समय में त्रासदी आएगी,

बल्कि हमें यह समझने की जरुरत है की हम पहले से ही गंभीर त्रासदी से गुजर रहे है, कोरोना वायरस महज एक ट्रेलर के रूप में रह गया है या शायद हमें अपने ही किये गए तमाम कचरे हमें वापस मिल रहे है,

कोयला संकट कोई एकमात्र मुद्दा नहीं, हमारे पास जल संकट से लेकर कई अन्य डरा देने वाले भी मुद्दे है.

दिल्ली सरकार ने चेताया है कि राजधानी के अस्पतालों और मेट्रो समेत महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को की जाने निर्बाध बिजली आपूर्ति पर असर पड़ सकता है।

दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने हालात की समीक्षा के लिए एक आपातकालीन बैठक की और केंद्र सरकार से राजधानी को बिजली आपूर्ति करने वाले थर्मल प्लांट में पर्याप्त कोयला भेजने की मांग की है।

कोयले की कमी के चलते यूपी, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु समेत कई राज्यों को बिजली संकट का सामना करना पड़ रहा है. इसी बीच यूपी में बिजली आपूर्ति बनाए रखने में मदद के लिए रेलवे बोर्ड ने आठ एक्सप्रेस ट्रेनों को रद्द कर दिया. दरअसल, इन गाड़ियों को इसलिए रद्द किया गया, ताकि थर्मल पावर स्टेशनों के के लिए सप्लाई किए जा रहे कोयले से लदी माल गाड़ियों को आसानी से रास्ता प्रदान किया जा सके.और समय से कोयला पहुंच सके. उधर, राजस्थान में सरकार ने 3 घंटे पावर कट करने का फैसला किया है.

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पहले जहां 3.3 बिलियन (330 करोड़) यूनिट की मांग थी वह 3.5 बिलियन (350 करोड़) यूनिट हो गई है। वर्तमान में 21.22 मिलियन (2.12 करोड़)

टन कोयला पावर प्लांटों में है और 72 मिलियन (7.2 करोड़) टन कोल इंडिया व अन्य के पास है। पावर प्लांटों के पास अभी दस दिनों के लिए कोयले का स्टाक है, लेकिन इससे कमी जैसी कोई बात नहीं।

नियमित उत्पादन हो रहा है और आपूर्ति व्यवस्था को दुरुस्त करने की कवायद में टीम जुटी है। कोयला आपूर्ति की निरंतरता बनी रहेगी।

आंकड़ों में हकीकत अलग -

2021 में मीडिया रिपोर्टों के दावों के मुताबिक, इनमें से कुछ प्लांटों में केवल कुछ दिनों के लिए कोयले का स्टॉक बचा था,

कोरोना के चलते लॉकडाउन के बाद उद्योगों के चालू होने से उसकी मांग बढ़ने लगी थी। यही वजह है कि कोयले की मांग और उसकी आपूर्ति में संतुलन डगमगाने लगा था।

2021 के आंकड़ों के मुताबिक, सात अक्टूबर 2021 को देश के उत्तरी क्षेत्र में 55.61, पश्चिमी क्षेत्र में 0.48,

दक्षिणी क्षेत्र में 0.32, पूर्वी क्षेत्र में 23.7 और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में 0.21 मिलियन यूनिट यानी कुल 80.32 मिलियन यूनिट बिजली की कमी दर्ज की गई।

जबकि दस अक्टूबर 2021 को उत्तरी क्षेत्र में 66.39, पश्चिमी क्षेत्र में 4.78, दक्षिणी क्षेत्र में 2.4, पूर्वी क्षेत्र में 12.52 और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में 0.61

मिलियन यूनिट यानी कुल 86.7 मिलियन यूनिट बिजली की कमी दर्ज की गई ।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, 7 अक्टूबर, 2021 को 16880 मेगावाट क्षमता वाले 16 पॉवर स्टेशनों के पास एक दिन के कोयले का भी स्टॉक नहीं था

जबकि 37345 मेगावाट क्षमता वाले तीस प्लांट ऐसे थे जिनके पास केवल एक दिन के कोयले का स्टॉक बचा था।

29160 मेगावाट क्षमता वाले 18 प्लांटों के पास तीन दिन का स्टॉक शेष था तो 7864 मेगावाट क्षमता वाले नौ प्लांटों के पास चार दिन का कोयला बचा था।

केंद्रीय कोयला मंत्रालय के मुताबिक, कोल इंडिया लिमिटेड ने अगस्त 2020 के 37.16 मिलियन टन की तुलना में अगस्त 2021 में 42 मिलियन टन का उत्पादन कर 14.6 फीसद की वृद्धि दर्ज की।

कोल इंडिया के एक अधिकारी ने भी नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाले पावर प्लांट और एनटीपीसी जैसी सरकारी कंपनियों को कोयले की सप्लाई फ्यूल सप्लाई अग्रीमेंट (FSA) के तहत होती है. इसके बाद कोयले की सप्लाई पहले ही कर दी जाती है और भुगतान बाद में लिया जाता है. कई राज्यों ने समय से भुगतान नहीं किया है, जिसके चलते कोल इंडिया ने इनकी सप्लाई रोक दी है.

ऐसा करने वाले चार बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और राजस्थान हैं. (source-dw.com)

कोयला घोटाले' के नाम से मशहूर कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले के मामले में मुख्य याचिकाकर्ता रहे छत्तीसगढ़ के वकील और एक्टिविस्ट सुदीप श्रीवास्तव के मुताबिक

"प्राइवेट कंपनियां अच्छी कोयला क्षमता वाली जमीनों को हथियाना चाह रही हैं. ये कंपनियां कोल बियरिंग एरियाज एक्विजीशन एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1957 के तहत भी आना चाह रही हैं.

इस कानून के तहत किसी जमीन पर रहने वाले लोगों को मुआवजा देने से पहले ही वहां कोयले का खनन शुरू किया जा सकता है.

अभी तक कोल इंडिया जैसी कंपनियों को इस कानून के तहत कोयला खनन का अधिकार है. अब प्राइवेट कंपनियां भी चाहती हैं कि यह कानून उन पर लागू हो."

ऐसा ही एक मामला छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगलों में आने वाले पारसा कोल ब्लॉक का भी है. राजस्थान सरकार के अंतर्गत आने वाली विद्युत कॉरपोरेशन कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को हजारों किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ में यह कोल ब्लॉक दिया गया था. उसने फिलहाल इसे खनन के लिए अडानी इंटरप्राइजेज को दे दिया है. यानी अपनी ही आवंटित जमीन से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड बहुत महंगा कोयला खरीद रहा है.

2019 में ही कर दिया गया था आगाह :

आईआईएसडी एसोसिएट और इस अध्ययन के सह—लेखक बालसुब्रमण्यम विश्वनाथन ने कहा कि

"कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों की वित्तीय देनदारी बढ़ने की आशंका है, क्योंकि वायु प्रदूषण सम्बन्धी नियमन, पानी की किल्लत से जुड़ी चिंताएं तथा अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र से मिलने वालीप्रतिस्पर्द्धा अब तेजी से बढ़ते मुद्दे बन गये हैं। यह सही वक्त है कि देश के नीति निर्धारक लोग कोयले को छोड़कर उसके विकल्पों की तरफ ध्यान दें।"

अगर कोयले की लागतों पर दबाव इसी तरह जारी रहा तो छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखण्ड जैसे बड़े कोयला उत्पादन सेक्टर वाले राज्यों पर आर्थिक संकट आ सकता है

और कोयले से सम्बन्धित उनकी परिसम्पत्तियों पर फंसने का खतरा मंडराने लगेगा। दरअसल, सम्पत्तियों को बचाने के बजाय इस बात पर चतुराई और समझदारी से काम करने की जरूरत है

कि कामगारों के साथ एक जायज समझौता करने के लिये सरकार अपने संस्थाओं का कैसे इस्तेमाल करेगी।ओडीआई के आपरेशंस एवं पार्टनरशिप प्रबन्धक तथा इस अध्ययन के सह लेखक लियो रॉबट्र्स का कहना है कि

"अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास होने से बड़ी संख्या में रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे।

लेकिन अगर भविष्य में कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों के अव्यावहारिक हो जाने का जोखिम है तो नीति निर्धारकों को उन प्रतिपूरक नीतियों और संवाद के बारे में अब सोचना शुरू करना होगा,

जो प्रभावित कामगारों को बेहतर क्षतिपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिये जरूरी होगा।"

यह अध्ययन सितंबर 2018 में आईआईएसडी और ओडीआई द्वारा कराये गये एक संयुक्त प्रकाशन का अनुसरण करता है।

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कोयले पर सत्ता और आंदोलन -

कोयले की कमी मुद्दा बनी तो कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा है, " 8 साल तक बड़ी-बड़ी बातें करने का नतीजा ये हुआ है कि देश में अब सिर्फ 8 दिन की जरूरत का कोयला बचा है.

मोदी दी, स्टैफ्लेशन का खतरा मंडरा रहा है. बिजली कट गई तो छोटे उद्योग बर्बाद हो जाएंगे, जिससे और ज्यादा नौकरियां छिन जाएंगी.

नफरत के बुलडोज़र के स्विच बंद कीजिए और पावर प्लांट्स के स्विच ऑन कीजिए."

कर्नाटक सरकार के एक आला अधिकारी ने मीडिया से कहा कि राज्य के बिजली घरों में मौजूद कोयला सिर्फ दो दिन ही चल पाएगा.

राज्य के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (एनर्जी) जी कुमार नाइक ने मंगलवार को यह भी बताया था कि राज्य सरकार कोयले की सप्लाई बढ़ाने के लिए लगातार केंद्र सरकार से अनुरोध कर रही है. हालांकि

उनका यह भी कहना है कि कर्नाटक में बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता दूसरे राज्यों के मुकाबले कम है, इसलिए हमारी स्थिति उतनी खराब नहीं है.

आंदोलन -

कोयले की खुदाई को लेकर सिर्फ भारत नहीं बल्कि विदेशों में भी आंदोलन किये गए थे, हालाँकि भारत के पास कोयले की मात्रा अधिक है,

2021 - छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर में इस हाथी अभयारण्य को बनाने की बात कही थी और केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र भी लिखा था. लेकिन अपने लिखे से 'यू टर्न' लेते हुए

राज्य सरकार ने ताज़ा अधिसूचना में हाथी अभयारण्य के दायरे में केवल 1995.48 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को ही शामिल किया है.

राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में प्रस्तावित हाथी अभयारण्य में इस इलाके के जिन वन क्षेत्रों को शामिल किया था, उसके दायरे में 64 कोल ब्लॉक आ रहे थे.

अब इनमें से 54 कोल ब्लॉक के वन क्षेत्र, नए हाथी अभयारण्य के दायरे से बाहर हैं. अब इन क्षेत्रों में कोयला खनन का रास्ता साफ़ हो गया है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नामक सामाजिक संस्था के मुताबिक कोयला खनन के तहत हसदेव अरण्य क्षेत्र का पांच गांव सीधे तौर पर 15 गांव आंशिक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।

अगर ये सभी खदानें संचालित हो गई तो सबसे पहले 17 हजार हेक्टेयर का जंगल समाप्त होगा फिर धीरे-धीरे सभी जंगल समाप्त हो जाएंगें। 4 अक्टूबर से हसदेव बचाओ पदयात्रा की शुरुआत हुई थी,

जहां हजारों की संख्या में ग्रामीण 300 किलोमीटर पैदल चल कर हसदेव बचाओ आंदोलन में शामिल हुए थे

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क्या है कोयला -

सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से से उत्पन्न बिजली को 'थर्मल पावर' कहते हैं।

आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) कहा जाता है।

दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।

भारत के कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड में रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं।

कोयले को भी चार रैंकों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।

अन्य ऊर्जा संसाधनों की तुलना में, कोयला भंडार सबसे प्रचुर मात्रा में प्रतीत होता है। हालांकि, जहरीले पदार्थों और विशेष रूप से सल्फर के अपने उच्च उत्सर्जन के कारण, वे पर्यावरण प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

दूसरी ओर, धुआं रहित कोयला या ईंधन, पर्यावरण के अनुकूल हैं। क्योंकि वे कठोर होते हैं, उनमें कार्बन की मात्रा अधिक होती है और उनमें वाष्पशील पदार्थ नहीं होते हैं, वे कुशल होते हैं और उतना धुआँ नहीं पैदा करते हैं।

धुआं रहित कोयले का एक रूप एन्थ्रेसाइट है, जो प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।

एक अनुभवी अक्षय-ऊर्जा व्यवसायी सुनील जैन ने पॉडकास्ट द इंडिया एनर्जी ऑवर के हालिया एपिसोड में कहा कि "भारतीय गिरावट 2019 में शुरू हो चुकी थी ... अगस्त 2020 तक आपूर्ति श्रृंखला निचुड़ने लगी

" भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग 3.5 गीगावाट सौर क्षमता प्राप्त की है लेकिन यह 2019-20 की तुलना में लगभग चालीस प्रतिशत कम है

भारत में खनन से पहले लोग मुख्य रूप से खेती पर निर्भर थे। खदान शुरू होने के बाद जमीनें बर्बाद हो गईं और उन्हें उसके बदले जो मुआवजा मिला वो काफी कम था.

कोयला को छोड़ ऊर्जा के नए स्रोतों की तरफ बढ़ने की ऐसी रणनीति बनायी जानी चाहिए कि अर्थव्यवस्था भी न बिगड़े और पर्यावरण का हित भी सध जाए।

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