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डायबिटीज और इंसुलिन का सीधा कनेक्शन होता है. टाइप 1 डायबिटीज होने पर मरीज के शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है या कई बार बेहद कम मात्रा में बनता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। डायबिटीज और इंसुलिन का सीधा कनेक्शन होता है. टाइप 1 डायबिटीज होने पर मरीज के शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है या कई बार बेहद कम मात्रा में बनता है. इसकी वजह से ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है. टाइप 2 डायबिटीज में पेशेंट के शरीर में इंसुलिन तो बनता है, लेकिन रेजिस्टेंस की वजह से उसका सही इस्तेमाल नहीं हो पाता. अगर बॉडी में इंसुलिन का प्रोडक्शन और यूज सही तरीके से होता रहे, तो डायबिटीज का कोई खतरा नहीं होता. अब सवाल उठता है कि इंसुलिन रेजिस्टेंस क्या होता है और यह किस वजह से पैदा हो जाता है. इसके क्या लक्षण होते हैं और बचाव के क्या तरीके हो सकते हैं. इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से जान लेते हैं.
क्या है इंसुलिन रेजिस्टेंस?
क्लीवलैंड क्लीनिक की रिपोर्ट के मुताबिक इंसुलिन रेजिस्टेंस एक कॉम्प्लेक्स कंडीशन है, जिसमें मांसपेशियों, फैट और लिवर की सेल्स इंसुलिन को लेकर सही तरीके से रिएक्ट नहीं करती हैं. इसकी वजह से ब्लड शुगर लेवल बिगड़ जाता है और कई परेशानियां हो जाती हैं. इंसुलिन हमारे अग्न्याशय (pancreas) में बनने वाला एक हार्मोन है, जो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल रखता है. जब शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस बनने लगता है, तो यह हार्मोन सही तरीके से काम नहीं कर पाता और लंबे समय तक ऐसा होने पर डायबिटीज हो जाती है. इसकी वजह से हाइपरटेंशन और आर्टरीज के हार्ड होने का खतरा भी बढ़ जाता है. कई लोगों में इंसुलिन रेजिस्टेंस टेंपररी होता है, जबकि कई बार यह क्रॉनिक कंडीशन में बदल जाता है.
नहीं दिखते कोई लक्षण
सबसे बड़ी बात यह है कि इंसुलिन रेजिस्टेंस होने पर इसका पता टेस्ट से भी नहीं चलता. इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते. जब यह कंडीशन प्री-डायबिटीज में तब्दील हो जाती है, तब टेस्ट के जरिए पता लगाया जा सकता है. प्री-डायबिटीज में ब्लड शुगर लेवल नॉर्मल से ज्यादा हो जाता है, लेकिन डायबिटीज से कम रहता है. अगर प्री-डायबिटीज का इलाज न कराया जाए, तो कुछ सालों में टाइप 2 डायबिटीज हो जाती है. इंसुलिन रेजिस्टेंस का पता लगाने के लिए समय-समय पर ब्लड शुगर लेवल का टेस्ट कराना चाहिए. अगर यह नॉर्मल से ज्यादा है तो डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए.
ये हो सकती हैं बड़ी वजह
अभी तक इंसुलिन रेजिस्टेंस के सटीक कारणों का पता नहीं चल सका है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अलग-अलग जीन की वजह से लोगों में इसका खतरा कम या ज्यादा हो सकता है. जानकारों के मुताबिक पेट पर ज्यादा चर्बी, मोटापा, फिजिकल इनएक्टिविटी, हाई प्रोसैस्ड फूड्स, सैचुरेटेड फैट्स और कुछ दवाइयां इंसुलिन रेजिस्टेंस की वजह बन सकती हैं. इसके अलावा बुजुर्गों को इसका खतरा ज्यादा होता है. वैसे यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है.
ऐसे करें इंसुलिन रेजिस्टेंस से बचाव
इस समस्या से बचने के लिए सभी लोगों को हेल्दी डाइट लेनी चाहिए. डाइट में फल, सब्जियां, साबुत अनाज, मछली और लीन पोल्ट्री को शामिल किया जा सकता है. ज्यादा कार्बोहाइड्रेट्स वाले फूड्स, रेड मीट और शुगरी फूड्स को अवॉइड करना चाहिए. इसके अलावा हर दिन कम से कम 30 मिनट तक फिजिकल एक्टिविटी करनी चाहिए. इससे ग्लूकोज एनर्जी बढ़ाने में मदद मिलती है और मसल इन्सुलिन सेंसटिविटी बेहतर होती है. अगर आपका वेट ज्यादा है तो उसे कम करने की कोशिश करें. 7% वजन कम करने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा 58 फीसदी कम हो जाता है.
Tara Tandi
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