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हल्दी में क्या होता है ख़ास?
भारतीय खानपान का अभिन्न अंग हल्दी को अपने ऐंटी-बायोटिक, ऐंटी-सेप्टिक पाचक गुणों के लिए जाना जाता रहा है. घादिल्ली के बीएल कपूर मेमोरियल हॉस्पिटल द्वारा की गई एक स्टडी में पाया गया है कि हल्दी में क़रीब 20 मॉलिक्यूल्स होते हैं, जो ऐंटी-बायोटिक्स की तरह काम करते हैं. वहीं हल्दी के 14 मॉलिक्यूल्स में कैंसररोधी गुण होता है. इसके 12 मॉलिक्यूल्स ऐंटी-ट्यूमर गुणधर्म वाले होते हैं. हल्दी का सबसे प्रमुख कैंसररोधी मॉलिक्यूल है कर्क्यूमिनॉइड.
हल्दी कैंसर कोशिकाओं यानी कैंसर सेल्स की बढ़ोतरी को रोकती है. ऐसा हल्दी की ऐंटी-एंजियोजेनिक प्रॉपर्टी के चलते होता है. हल्दी कैंसर सेल्स को नए ब्लड वेसल्स बनाने से रोकती है. इतना ही नहीं कैंसर सेल्स के माइटोकॉन्ड्रिया पर हमला करके, उन सेल्स की रिप्रोडक्शन साइकिल को बाधित कर देती है. इससे नए कैंसर सेल्स नहीं बन पाते.
कर्क्यूमिन कैंसर के तीनों स्टेजेस (इनीशिएशन, प्रमोशन और प्रोग्रेशन जिन्हें क्रमश: स्टेज 1, 2 और थ्री कहा जाता है) में प्रभावी होता है. कर्क्यूमिन टोपोआइसोमेरैसेस नामक एन्ज़ाइम, जो कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार होता है, को प्रभावशाली ढंग से कम करता है, जिसके चलते कैंसर सेल्स का ग्रोथ काफ़ी हद तक कम हो जाता है.
कैंसर सेल्स कुछ समय बाद कीमोथेरैपी और रेडियोथेरैपी के आदी हो जाते हैं, उनपर इन ट्रीटमेंट्स का उतना असर नहीं होता. जब इन थेरैपीज़ के साथ हल्दी का सेवन किया जाता है, तब कर्क्यूमिन कैंसर सेल्स को छेड़ते रहता है, जिससे वे कीमोथेरैपी के आदी नहीं हो पाते. उनपर कीमोथेरैपी का असर होता है और उन सेल्स के जल्द से जल्द ख़ात्मे में मदद मिलती है. वहीं रेडियोथेरैपी के दौरान भी हल्दी बहुत फ़ायदेमंद होती है. हल्दी का घटक कर्क्यूमिन रेडिएशन के साइड-इफ़ेक्ट्स को कम कर देता है.
पूरा फ़ायदा पाने के लिए ऐसे करें हल्दी का सेवन
हल्दी को आप चाहे तो गुनगुने पानी में डालकर ले सकते हैं या दूध के साथ. हमारी सब्ज़ियों और दाल में तो इसका इस्तेमाल किया ही जाता है. आप रोज़ाना एक चौथाई चम्मच हल्दी का सेवन करके इस जानलेवा बीमारी से लंबे समय तक बचे रह सकते हैं.
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