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कसरत, व्यायाम यानी एक्सरसाइज हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हैं, ये तो हमारे बड़े बुजुर्ग बहुत पहले से कहते आ रहे हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कसरत, व्यायाम यानी एक्सरसाइज हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हैं, ये तो हमारे बड़े बुजुर्ग बहुत पहले से कहते आ रहे हैं, यहां तक डॉक्टर भी सेहतमंद रहने के लिए एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं. अब ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी (Monash University) के रिसर्चर्स ने एक ऐसे एंजाइम (Enzymes) की खोज की है, जो एक्सरसाइज से हेल्थ में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाता है और एजिंग (बुढ़ापे) के असर से सुरक्षा प्रदान करता है. इस स्टडी की सबसे खास बात ये है कि इससे ऐसी दवाइयां बनाने का नया रास्ता खुलेगा, जो इस एंजाइम की एक्टिविटी बढ़ा सकेंगी. उससे डायबिटीज टाइप 2 समेत एजिंग संबंधी उपापचय (मेटाबोलिक) हेल्थ पर होने वाले असर से इम्यूनिटी में मदद मिलेगी. इस स्टडी का निष्कर्ष साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुए हैं.
एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में अगले तीन दशकों में 60 साल से ज्यादा उम्र वाले बुजुर्गों की जनसंख्या दोगुनी हो जाएगी. क्योंकि टाइप 2 डायबिटीज का रिस्क उम्र के साथ बढ़ता है, इसलिए बुजुर्गों की बढ़ती संख्या के कारण दुनियाभर में बीमारियों का बोझ भी बढ़ेगा.
कैसे हुई स्टडी
बढ़ती उम्र के साथ टाइप 2 डायबिटीज का मुख्य कारण शरीर का इंसुलिन के प्रति प्रतिरोध क्षमता बढ़ना होता है. यह विकृति (distortion) आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ फिजिकल एक्टिविटी कम होने से पैदा होती है. लेकिन अभी तक ये रहस्य ही बना रहा कि फिजिकल एक्टिविटी से आखिर किस प्रकार से इंसुलिन प्रतिरोध प्रभावित होता है. इसी के मद्देनजर आस्ट्रेलिया के मोनाश यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने इस बात की खोज की है कि फिजिकल एक्टिविटी किस तरह से इंसुलिन की संवेदनशीलता बढ़ाती है, जिससे कि मेटाबॉलिक हेल्थ (metabolic health) में सुधार आता है.
रिसर्चर्स ने खासतौर पर ऐसे एंजाइम की खोज की है, जो इस मैकेनिज्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इससे वैसी दवाइयां भी बनाई जा सकती हैं, जिससे मांसपेशियों की कमजोरी और डायबिटीज समेत बुढ़ापे के अन्य असर से बचाव किया जा सकता है.
क्या कहते हैं जानकार
मोनाश यूनिवर्सिटी (Monash University's) के बायोमेडिसिन डिस्कवरी इंस्टीट्यूट (Biomedicine Discovery Institute) के रिसर्चर्स ने बताया है कि बढ़ती उम्र के साथ स्केलटल मसल रिएक्टिव ||ऑक्सीजन स्पेसीज (आरओएस) कम हो जाती है, जिससे इंसुलिन का प्रतिरोध बढ़ जाता है. प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर टोनी टिगानिस (Tony Tiganis ) के अनुसार, स्केलटल मसल (कंकाल की मांसपेशी) लगातार आरओएस बनाते रहते हैं और व्यायाम के समय यह क्रिया बढ़ जाती है. उन्होंने बताया, व्यायाम के कारण आरओएस के उत्पादन में तेजी से अनुकूलन प्रतिक्रियाएं बढ़ती हैं, जो स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालती है. रिसर्च टीम ने यह भी दर्शाया कि एक्सरसाइज से प्रेरित आरओएस तथा अनुकूलन प्रतिक्रियाओं के लिए एनओएक्स-4 नामक एंजाइम आवश्यक है, जिससे उपापचय में सुधार आता है.
स्टडी में क्या निकला
रिसर्चर्स ने चूहों पर किए प्रयोग में पाया कि फिजिकल एक्टिविटी के बाद कंकाल (Skeleton) की मसल्स में एनओएक्स-4 (NOX-4) बढ़ता है, जिससे आरओएस की अनुकूलन प्रतिक्रियाएं भी बढ़ती है. इन सब क्रियाओं से चूहों में इंसुलिन प्रतिरोध से बचाव हुआ.
रिसर्चर्स ने यह भी पाया कि कंकाल की मसल्स में एनओएक्स-4 (NOX-4) के लेवल का एजिंग के साथ बढ़ने वाले इंसुलिन प्रतिरोध से सीधा संबंध है. प्रोफेसर टिगानिस ने बताया कि इस स्टडी में हमने पाया कि एनिमल मॉडल में एजिंग के साथ कंकाल की मसल्स में एनओएक्स-4 घटता है, जिससे इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता में कमी आती है
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