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पीरियड्स के चलते स्कूल में झेलनी पड़ी थी शर्मिंदगी, अब बच्चियों को इसी बारे में कर रहे है जागरूक

Shiddhant Shriwas
24 Sep 2021 12:55 PM GMT
पीरियड्स के चलते स्कूल में झेलनी पड़ी थी शर्मिंदगी, अब बच्चियों को इसी बारे में कर रहे है जागरूक
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मासिक धर्म को लेकर अब भी लोगों में रुढ़िवादी सोच चली आ रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में बड़ा सुधार होता नजर आ रहा है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मासिक धर्म को लेकर अब भी लोगों में रुढ़िवादी सोच चली आ रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में बड़ा सुधार होता नजर आ रहा है। मासिक धर्म को लेकर लोगों को शिक्षित करने की दिशा में काम किया जा रहा है। ग्वालियर की रीना शाक्य इन दिनों लोगों के लिए मिसाल बन रही हैं। कभी खुद स्कूल के दिनों में पीरियड्स को लेकर रीना शर्मिंदगी की शिकार हुई थीं लेकिन अब वह खुद बच्चियों को इस बारे में शिक्षित करके उनमें आत्मविश्वास जगाने का काम कर रही हैं। रीना एक संगठन से भी जुड़ी हैं, जिसके माध्यम से वह महिलाओं को शिक्षित करने के प्रयास करती रहती हैं। रीना कहती हैं, 21वीं सदी में भी पीरियड्स को लेकर लोगों के मन में जो सोच है उसे बदलने की आवश्यकता है, मैं अपने संगठन के साथ उसी दिशा में काम कर रही हूं।

स्कूल में झेलनी पड़ी थी शर्मिंदगी

रीना शाक्य कहती हैं, युवावस्था में मुझे मासिक धर्म को लेकर अक्सर शर्मसार होना पड़ता था। पहली बार जब मुझे पीरियड्स आया, उस समय मैं स्कूल में ही थी। उस दिन सब मुझे घूरकर देख रहे थे। मैंने देखा कि मेरी फ्रॉक पर खून के दाग लगे थे, इससे मैं बहुत डर गई। चूंकि इस बारे में कभी सुना ही नहीं था, ऐसे में डर था कि कहीं मुझे कोई गंभीर रोग तो नहीं हो गया है? मां से जब यह बात बताई तो उन्होंने भी चुपचाप रहने को कहा। पूजा-घर, अचार जैसी चीजों को छूने से मना कर दिया गया। मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा था, मैं इन सबसे बिल्कुल अनजान थी।

ताकि बच्चियां हो सकें जागरूक

रीना कहती हैं, पीरियड्स को लेकर हमारे समाज में कई तरह के धार्मिक आडंबर हैं। पीरियड्स के कारण अक्सर लड़कियों को स्कूल तक छोड़ देना पड़ता है। ऊपर से हाइजीन को ध्यान न रखने के कारण तमाम तरह की दिक्कतें जो हों, सो अलग। रीना कहती हैं, अब भी ज्यादातर महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन्स नहीं मिल पाते है, उन्हें अन्य विकल्पों का सहारा लेना पड़ा है,जो सेहत के लिहाजे से नुकसानदायक हो सकता है। इन्हीं आडंबरों को दूर करने के लिए मैंने महिलाओं को इस बारे में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है। सोशल मीडिया पर इस बारे में खुलकर लिखती हूं, जिससे लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा सके। पीरियड्स भी प्राकृतिक है, जैसे अन्य शारीरिक क्रियाएं, फिर इस बारे में लोगों की सोच ऐसी क्यों?


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