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क्या आप उस शर्मिंदगी से भरी छोटी-सी समस्या से परेशान हैं, जो आपको हॉट-एयर बलून जैसा दिखाती है? तो आप अकेली नहीं हैं. न्यूट्रिशनिस्ट के पास लोगों की जो सबसे आम शिकायतें आती हैं, वो बदहज़मी, गैस की तकलीफ़, हार्ट बर्न, एसिडिटी और ब्लॉटिंग यानी पेट का भारीपन जैसे शब्दों के आस-पास ही मंडराती रहती हैं. हमने एक्सपर्ट्स से बात की और जाना कि क्या हमारी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव इस परेशानी को कम कर सकते हैं, मसलन शुगर-फ्री गम को बार-बार चबाने से बचना. इसलिए अगली बार जब आप अपनी न्यूट्रिशनिस्ट या डॉक्टर के पास जाएं तो इन छोटे-मोटे सुधारों के साथ पहुंचें. लेकिन इससे पहले हम जानते हैं कि हमें पेट का भारीपन क्यों महसूस होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
सही तरीक़े से चबाएं
पेट के भारीपन का सबसे आम कारण बदहज़मी है, एक ऐसी समस्या जिसकी शुरुआत में भोजन को निगलने से होती है. ‘‘बचपन में हमें कहा जाता था कि हम अपने भोजन को कम से कम 32 बार चबाएं. इसका मक़सद था कि हमारा भोजन उन रसों के साथ ठीक तरह से मिल जाए, जो हमारी पाचन क्रिया में सहायक हैं. लेकिन आजकल हम जल्दबाज़ी में भोजन को निगलते हैं,’’ बताती हैं निलांजना सिंह, न्यूट्रिशनिस्ट, पुष्पावती सिंघानिया रिसर्च इंस्टिट्यूट, दिल्ली. खाते समय बात करने या गम चबाने से हम हवा निगल जाते हैं, जिससे स्थिति और ख़राब हो सकती है. धीरे-धीरे खाएं और अपने दिमाग़ को कम से कम 20 मिनट का समय दें, यह महसूस करने के लिए कि आपने पर्याप्त भोजन कर लिया है और अब आपको ज़ाय़केदार मटन करी के तीसरे चम्मच की आवश्यकता नहीं है.
भूख से ज़्यादा न खाएं
यदि आप बार-बार खाते हैं तो एसिड रीफ़्लक्स (उतार-चढ़ाव) की संभावनाएं रहती हैं, यह वह स्थिति है जहां भोजन, पेट के एसिड्स और दूसरे पाचन संबंधी रस इसोफ़ैगस यानी भोजन नलिका में बहने लगते हैं. जब एसिड रीफ़्लक्स मांसपेशियां, जो भोजन के पेट में प्रवेश करते समय खुलती हैं और फिर एसिड को पीछे की तरफ़ आने से रोकने के लिए बंद होती हैं, ठीक तरह से काम नहीं करतीं. ‘‘अपनी ख़ुराक पर नियंत्रण रखने का प्रयास करें और प्रति मील केवल एक प्रोटीन खाएं. आयुर्वेद के अनुसार दो भोजनों के बीच कम से कम पांच घंटे का अंतराल होना चाहिए, जिससे शरीर को पाचन के लिए पर्याप्त समय मिल सके,’’ बताती हैं तरनजीत कौर, सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट और मेटाबॉलिक कोच, ऐक्टिवऑर्थो, दिल्ली.
कृत्रिम मिठास से बचें
कृत्रिम मीठे में जो आम सामग्री होती है, वह है सॉर्बिटॉल, जो बेहद धीमी गति से मेटाबलाइज़ होता है. एक और सामग्री, फ्रक्टोज़ जो नैसर्गिक शक्कर है, को पचाना मुश्क़िल होता है. सख़्ती से इसे सीमित करें. डायट सोडा, कृत्रिम मिठास, एनर्जी बार्स और अन्य सामग्रियां जिनमें सॉर्बिटॉल शामिल हो, उन्हें छोड़ दें. शक्कर के बजाय चाय में एक चम्मच गुड़ मिलाएं.
पैकेट वाले भोजन को कहें ना
‘‘प्रोसेस्ड फ़ूड्स में जो प्रिज़र्वेटिव्स, रंग और जो ऐडिटिव्स शामिल होते हैं, वो पाचन में सहायक आंत के अच्छे बैक्टीरिया को ठीक तरह से काम नहीं करने देते. इससे पेट का भारीपन और बदहज़मी जैसी स्थिति पैदा हो जाती है,’’ बताती हैं तरनजीत. भोजन में जो थोड़ा-बहुत पोषण होता है, उसे भी ऐडिटिव्स नष्ट कर देते हैं. भोजन को उसके नैसर्गिक रूप में ही खाएं और प्लास्टिक में लिपटे, ललचानेवाले भोजन से दूर ही रहें.
गैस को कम करें
कोला और अन्य कार्बनेटेड ड्रिंक्स शरीर में गैस भरते हैं. कार्बनेटेड ड्रिंक्स के बजाय ताज़ा निचोड़े गए फलों के रस, नारियल पानी, छाछ या जलजीरा का एक बड़ा ग्लास खाने के साथ पीएं.
धूम्रपान और शराब पर लगाम लगाएं
अध्ययन बताते हैं कि धूम्रपान करनेवाले लोग सांस में ज़्यादा हवा खींचते है, जो उनके शरीर में गैस इकट्ठा होने की संभावनाओं को बढ़ा देता है. यदि आप अल्कोहल के कुछ घटकों के प्रति असहनशील हैं तो आपको बदहज़मी और गैस हो सकती है. यदि आप धूम्रपान और ड्रिकिंग पूरी तरह नहीं छोड़ सकते तो इनपर लगाम लगाएं.
नियमित व्यायाम करें
जब आप कब्ज़ से पीड़ित होते हैं तो निचली आंत में अपशिष्ट इकट्ठा होने लगता है, जिससे आंत में ज़्यादा गैस रिलीज़ होती है. ‘‘एक्सरसाइज़ या किसी भी प्रकार की गतिविधि मांसपेशियों को शिथिल कर समस्या को कम करती है,’’ बताती है तरनजीत. पानी पीते रहें और अपने डॉक्टर की बात मानें, जब वे कहते हैं कि फ़ाइबर्स का सेवन करें.
ढेर सारा पानी पिएं
‘‘शरीर में पानी का जमाव भी ब्लॉटिंग से संबंधित हो सकता है. पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से यह समस्या हो सकती है. पानी की कमी महसूस कर शरीर पानी इकट्ठा करने लगता है. पानी के अणु सोडियम के साथ मिल जाते हैं और शरीर के अंदर रह जाते हैं,’’ बताती हैं तरनजीत. इसलिए नमक का सेवन कम करें और शरीर में नमी का स्तर बनाए रखें, ताकि आपका शरीर पानी के साथ टॉक्सिन्स को भी बाहर निकाल सके.
कैफ़ीन का सेवन कम करें
चाय, कॉफ़ी और कैफ़ीन वाले अन्य ड्रिंक्स मूत्रवर्धक होते हैं और आपके सिस्टम से पानी को निथार कर बहा देते हैं. ये संवेदनशील बाउल सिंड्रोम की समस्या पैदा कर सकते हैं, जो पेट में दर्द, मरोड़, अचानक व तुरंत पेशाब जाने की ज़रूरत से पहचाना जा सकता है. ये सभी पेट के भारीपन का कारण बन सकते हैं.
कोई अंदाज़ा नहीं क्यों?
यदि सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद आप पेट में भारीपन महसूस करती हैं तो इसके पीछे लैक्टोज़ के प्रति असहनशीलता, ग्लूटन के प्रति संवेदनशीलता या अन्य फ़ूड एलर्जी कारण हो सकते है. संक्रमण, आंत का अवरोध और हार्निया इसका कारण हो सकते हैं. ‘‘आपके शरीर ने साइट्रस फलों या हाइ-फ़ाइबर फ़ूड्स के प्रति असहनशीलता विकसित कर ली होगी,’’ बताती हैं नीलांजना. इसे नज़रअंदाज़ करना आंत को लंबे समय तक के लिए प्रभावित कर सकता है इसलिए इसे नज़रअंदाज़ न करें.
ये नहीं हैं आपके मित्र
* रिफ़ाइन्ड फ़्लोर्स: ये ब्लड शुगर, इन्सुलिन स्तर और फ़ैट स्टोरेज को बढ़ाते हैं.
* बीन्स: इसमें ऑलिगोसैकराइड्स नामक शुगर पाया जाता है, जिसे मानव शरीर आसानी से विघटित नहीं कर पाता. जब ये छोटी आंत में प्रवेश करता है तो बैक्टेरिया इन पर काम करना शुरू करता है और गैस बनने लगती है.
* फूलगोभी, ब्रोकलि, गोभी, शिमला मिर्च: ये सब्ज़ियां गैस बनानेवाली सब्ज़ियों की सूची में शीर्ष पर हैं.
* सेब: इनमें घुलनशील फ़ाइबर होता है, जो पानी को अवशोषित करता है. ये आंत में पाचन के दौरान टूट जाते हैं और इनकी वजह से गैस बनना शुरू हो जाता है.
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