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जानिए कमजोर होती हड्डियों के पीछे छिपे क्या है कारण और कैसे करें इसका बचाव

Nilmani Pal
20 Oct 2020 2:01 PM GMT
जानिए कमजोर होती हड्डियों के पीछे छिपे क्या है कारण और कैसे करें इसका बचाव
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इस लॉकडाउन में हर रोगी की तरह ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त लोगों की परेशानियां भी बढ़ीं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस लॉकडाउन में हर रोगी की तरह ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त लोगों की परेशानियां भी बढ़ीं। बाहर न निकलने से धूप नहीं मिल पाती, जो विटामिन डी का अहम स्रोत है। दूसरी ओर घर में रहने से सक्रियता कम होती है, जिससे हड्डियां भुरभुरी होने लगती हैं। खासतौर पर उम्रदराज लोगों के लिए यह स्थिति बुरी होती है। 20 अक्तूबर को विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस मनाया जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कैसे रखें हड्डियों की सेहत को दुरुस्त।

ऑस्टियोपोरोसिस लैटिन भाषा से निकला शब्द है, जिसका अर्थ है-पोरस बोन्स यानी भुरभुरी हड्डियां। उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों का लचीलापन कम होता है, उनके बीच का गैप बढ़ने लगता है। मेनोपॉज के बाद भी हड्डियों की सेहत कमजोर होने लगती है। इसके अलावा आनुवंशिक कारणों से भी हड्डियों की सेहत प्रभावित होती है। 30 की उम्र के बाद क्षतिग्रस्त हड्डियों की भरपायी मुश्किल होती है। निष्क्रिय जीवनशैली, मोटापा या अत्यधिक दुबलापन, गलत खानपान भी हड्डियों की सेहत को नुकसान पहुंचाता है।

किसे है ज्यादा खतरा-

फोर्टिस अस्पताल, वसंत कुंज, नई दिल्ली के डायरेक्टर एवं एचओडी ऑर्थोपेडिक्स डॉ. गुरिंदर बेदी कहते हैं, 'निष्क्रिय जीवनशैली वाले उम्रदराज लोगों को ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा सर्वाधिक है। मोटापा तो हड्डियों का दुश्मन है ही, इसके अलावा सबसे ज्यादा खतरा है दुबले लोगों को। अगर उनका वजन लंबाई के मुकाबले कम हो और मसल मास बहुत कम हो तो उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

परिवार में पहले से माता-पिता या किसी अन्य को यह समस्या हो तो बहुत संभावना है कि अगली पीढ़ियों में भी यह स्थानांतरित हो जाए। परिवार में किसी को ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर यानी कूल्हे, पीठ, बांह के ऊपरी हिस्से और कलाई का फ्रैक्चर रहा हो, लंबे समय तक स्टेरॉयड का सेवन किया हो, रूमेटाइड अर्थराइटिस और इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस जैसी समस्या हो, पोषक तत्वों के न पचने जैसी समस्याएं हों जैसे-सीलिएक रोग, अल्सरेटिव कोलाइटिस, लंबे समय तक एंटीपाइलेप्टिक व कैंसर की दवाएं ली हों, अर्ली मेनोपॉज हुआ हो, धूम्रपान या शराब के आदी हों या फिर किडनी और लिवर की गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे हों तो ऐसे लोगों की हड्डियां भुरभुरी होने लगती हैं। इनमें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।'

कोरोना दौर में बढ़ी समस्याएं

डब्ल्यू प्रतीक्षा हॉस्पिटल, गुरुग्राम में ऑर्थोपेडिक्स के डायरेक्टर और हेड डॉ. हेमंत शर्मा कहते हैं कि हालांकि अभी ऐसे कोई सर्वे या अध्ययन नहीं हुए हैं, इसलिए सटीक आंकड़े नहीं दिए जा सकते लेकिन पहले से बीमार लोगों की समस्याएं इस दौरान बढ़ी हैं क्योंकि लोग अस्पताल जाकर जांच कराने में डर रहे हैं। ऐसे मरीज भी सामने आ रहे हैं, जिनका वजन लॉकडाउन में बढ़ गया और उन्हें हड्डियों से जुड़ी समस्याएं होने लगीं। कुछ मामलों में यह भी देखने को मिला कि जो युवा दौड़ रहे थे या साइकिल चला रहे थे, उन्होंने पर्याप्त सुरक्षा नहीं ली, जिस कारण वे गिरे, चोट लगी और लिगामेंट इंजरी हो गई। दो तरह के एक्स्ट्रीम हैं।

कुछ लोगों की समस्याएं इसलिए बढ़ीं क्योंकि वे घर में रहकर पूरी तरह निष्क्रिय हो गए और कुछ लोगों ने जरूरत से ज्यादा वर्कआउट कर लिया। व्यायाम करना सबके लिए जरूरी है लेकिन इससे पहले अपनी शारीरिक अवस्था को ध्यान में रखना भी अनिवार्य है। ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें थाइरॉएड है, वे स्टेरॉयड या पेनकिलर्स ले रहे हैं, तो उनका वजन तेजी से बढ़ता है और घर में बैठे रहने से मसल्स कमजोर हो जाती हैं। ऐसे में अपने खानपान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

सही खानपान से होगा बचाव-

अगर 30 की उम्र से ही अपने खानपान और सक्रियता पर ध्यान दिया जाए तो समस्या से बचाव संभव है। धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल नई दिल्ली के ऑर्थोपेडिक्स एंड स्पाइन सर्जरी निदेशक डॉ. राजेश कुमार वर्मा कहते हैं, कैल्शियम व विटामिन डी की कमी ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम बढ़ाती है। इसी तरह डायबिटीज, हाइपोथाइरॉएड, गठिया आदि में सेकेंड्री ऑस्टियोपोरोसिस होना आम बात है। महिलाओं में मेनोपॉज के बाद हड्डियों की सेहत बहुत प्रभावित होती है। ऐसे में अपने खानपान का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। आजकल कई लोग प्लांट बेस्ड डाइट लेते हैं और एनिमल प्रोटीन को नजरअंदाज कर देते हैं। दूध और दूध से बनी चीजों का परहेज करना हड्डियों के लिए अच्छा नहीं होता।

जानें हड्डियों की सेहत के लिए कौन-कौन से पोषक तत्व जरूरी हैं-

कैल्शियम की कमी न हो : हर दिन कितनी मात्रा में कैल्शियम लें, यह व्यक्ति की उम्र के हिसाब से तय होता है। आमतौर पर 24 घंटे में लगभग 800 से 1500 मिलीग्राम कैल्शियम लेने की सलाह दी जाती है। दूध के गिलास या दही की कटोरी में करीब 300 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। टोफू, सोयाबीन, हरी पत्तेदार सब्जियों, पनीर, चीज, आंवला से भी कैल्शियम मिल सकता है। यह सही है कि भोजन से मिलने वाला कैल्शियम बेहतर होता है लेकिन कई बार किसी खास बीमारी और पाचन संबंधी समस्या के कारण कैल्शियम टैब्लेट या सप्लीमेंट्स भी लेने पड़ सकते हैं।

फैट्स का सही अनुपात : हड्डियों की मजबूती के लिए पॉलीअनसैचुरेटेड फैट्स (पूफा) का भी सही तालमेल होना चाहिए। इसमें ओमेगा-6 (मीट और ग्रेन्स) और ओमेगा-3 (अलसी के बीज, मछली और अखरोट) का सही अनुपात होना चाहिए।

विटामिन डी : हफ्ते में एक या दो बार सुबह 10 से दोपहर 12 बजे के बीच सीधे सूर्य की रोशनी में करीब 15 मिनट तक रहें। कपड़ों या सनस्क्रीन से त्वचा को ढकने का प्रयास न करें। हर दिन 1000-2000 आईयू (इंटरनेशनल यूनिट) विटामिन डी लेना अच्छा समझा जाता है। हमारे देश में 80 फीसदी आबादी में विटामिन डी की कमी है। डॉ. बेदी के अनुसार, इसके लिए विटामिन डी के सप्लीमेंट्स डॉक्टर की सलाह पर ले सकते हैं। इसकी सबसे सामान्य दवा 60,000 आईयू के टैबलेट, सैशे या लिक्विड हैं, जिसे शुरुआत में 6 से 8 हफ्ते के लिए दिया जाता है। इसके बाद, साल भर तक महीने में इसे दो बार लेने की सलाह दी जाती है। हालांकि सूरज की रोशनी विटामिन डी लेने का सबसे बेहतरीन तरीका है।

मैग्नीशियम और पोटैशियम : हरी पत्तेदार सब्जियों, खासतौर पर पालक, बीज, नट्स और साबुत अनाजों में मैग्नीशियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। इसी तरह आलू, केला, मशरूम, खीरा, अनार, टमाटर आदि में पोटैशियम पाया जाता है। डायबिटीज से ग्रस्त लोग आलू, केला और अनार के अलावा बाकी चीजें खा सकते हैं।

ये भी हैं जरूरी : हड्डियों की सेहत में विटामिन बी-12, के और सी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। डेयरी उत्पादों, अंडा, मछली में विटामिन बी-12 की प्रचुर मात्रा होती है। सप्ताह में 2-3 दिन इनका सेवन अवश्य करें। खट्टे फलों जैसे-नीबू, संतरा, आंवला, टमाटर, कीवी और अमरूद आदि में विटामिन सी भरपूर पाया जाता है। इसी तरह बंद गोभी, फूलगोभी, पालक, सोयाबीन, ग्रीन टी आदि में विटामिन के पाया जाता है, जो हड्डियों की सेहत के लिए लाभदायक है।

स्वस्थ रहना है तो सक्रिय रहें

पौष्टिक और संतुलित खानपान के साथ ही सही व्यायाम भी जरूरी है। डॉ. बेदी कहते हैं, नियमित पैदल चलना-व्यायाम करना और पॉस्चर का ध्यान रखना आवश्यक है। घर से बाहर वर्कआउट कर रहे हैं तो ऐसी गतिविधियां करें, जिनमें पैरों पर वजन पड़े। दक्षिण एशियाई लड़कियों में उम्र बढ़ने पर ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा अधिक होता है, इसलिए लंबी दूरी तक टहलना और दौड़ना अच्छी गतिविधियां हैं।

डॉ. हेमंत शर्मा कहते हैं कि सप्ताह में चार-पांच दिन 45 मिनट ब्रिस्क वॉक करें, साइक्लिंग भी कर सकते हैं। दो दिन वॉक, दो दिन साइक्लिंग, एक दिन बैडमिंटन जैसे खेलों में भी हिस्सा ले सकते हैं। व्यायाम से पहले काफ स्ट्रेचिंग जरूर करें। हार्ट प्रॉब्लम है तो कोई भी व्यायाम करने से पहले डॉक्टर की सलाह लें। चलने में असमर्थ लोग खड़े होकर इलेस्टिक बैंड से स्ट्रेचिंग कर सकते हैं। स्वस्थ लोगों के लिए सीढ़ियां चढ़ना-उतरना बहुत अच्छी एक्सरसाइज है। बस कोई भी व्यायाम अपने शरीर की क्षमता, स्थिति और स्वास्थ्य स्तर को देखकर और अपने डॉक्टर की सलाह लेकर ही करें।

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