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- जानिए कड़वा करेला का...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आपने एक मुहावरा तो जरूर सुना होगा कि 'एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा.' इसका अर्थ जो है, सो है लेकिन यह मुहावरा स्पष्ट कर रहा है कि करेला बेहद कड़वा होता है. इसका सेवन जुबान को कसैला कर सकता है. बात बिल्कुल सही भी है क्योंकि वाकई इसका स्वाद कुनैन की सैंकड़ों गोलियों के समान कड़वा हे. लेकिन अगर आप इसकी कड़वाहट को बिसार दें तो इसके गुण इतने मधुर हैं कि आप हैरानी में पड़ सकते हैं. मधुमेह के रोगियों के लिए यह रामबाण तो है ही, अन्य बीमारियों में भी लाभकारी है. शायद इन्हीं गुणों को देखते हुए भारत के एक प्रदेश में तो इसका मंदिर है, जहां लक्खी मेला जुटता है.
आपको याद होगा कि जब बचपन में हमारे सामने भरवां करेला परोसा जाता था, हम उसे देखकर मुंह बनाने लगते थे. बचपन में करेले को खाना बड़ा ही मुश्किल काम होता था. हालांकि कुछ घरों में तो करेले में मटन का कीमा भरकर उसे जब पेश किया जाता था, तो खाने में बेहद स्वाद मिलता था, यानी आपने नॉनवेज भी खा लिया और शरीर में करेले के गुण भी पहुंच गए. हमारे बताने का उद्देश्य यह है कि हर वर्ग को किसी न किसी तरह से करेले का स्वाद चखवाया जाए, ताकि उसके 'मधुर गुण' शरीर में पहुंच सकें. अगर आयुर्वेद के इलाज की बात करें तो करेले की जड़, पत्ते, फल और पौधा गुणों से भरा हुआ है. लेकिन हमारा ध्यान तो फिलहाल करेले पर है.
आपको याद होगा कि जब बचपन में हमारे सामने भरवां करेला परोसा जाता था, हम उसे देखकर मुंह बनाने लगते थे. बचपन में करेले को खाना बड़ा ही मुश्किल काम होता था. हालांकि कुछ घरों में तो करेले में मटन का कीमा भरकर उसे जब पेश किया जाता था, तो खाने में बेहद स्वाद मिलता था, यानी आपने नॉनवेज भी खा लिया और शरीर में करेले के गुण भी पहुंच गए. हमारे बताने का उद्देश्य यह है कि हर वर्ग को किसी न किसी तरह से करेले का स्वाद चखवाया जाए, ताकि उसके 'मधुर गुण' शरीर में पहुंच सकें. अगर आयुर्वेद के इलाज की बात करें तो करेले की जड़, पत्ते, फल और पौधा गुणों से भरा हुआ है. लेकिन हमारा ध्यान तो फिलहाल करेले पर है.
अब करेले का इतिहास जान लें जो एक सब्जी है. हजारों साल पहले इसकी उत्पत्ति भारत में मानी जाती है. उसका कारण यह है कि भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथों में करेले का वर्णन है. विशेष बात यह है कि एशिया क्षेत्र में करेले की महत्ता शुरू से ही रही. पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के भोजन में करेले का उपयोग हजारों सालो से हो रहा है. कहा जाता है कि चीन ने करेले को भोजन और औषधि के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किए. बड़ी हैरानी की बात यह है कि एशिया की इस प्राचीन सब्जी ने बाकी दुनिया में 17वीं शताब्दी में जगह बनाई. उसके बाद तो करेले ने वहां भी अपने जलवे दिखाए. करेले का अचार तो पूरी दुनिया में खाया जाता है.
अब करेले का इतिहास जान लें जो एक सब्जी है. हजारों साल पहले इसकी उत्पत्ति भारत में मानी जाती है. उसका कारण यह है कि भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथों में करेले का वर्णन है. विशेष बात यह है कि एशिया क्षेत्र में करेले की महत्ता शुरू से ही रही. पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के भोजन में करेले का उपयोग हजारों सालो से हो रहा है. कहा जाता है कि चीन ने करेले को भोजन और औषधि के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किए. बड़ी हैरानी की बात यह है कि एशिया की इस प्राचीन सब्जी ने बाकी दुनिया में 17वीं शताब्दी में जगह बनाई. उसके बाद तो करेले ने वहां भी अपने जलवे दिखाए. करेले का अचार तो पूरी दुनिया में खाया जाता है.
करेला भारत में धर्म से भी जुड़ा है. छत्तीसगढ़ में तो इसका प्राचीन मंदिर है, जिसे मां करेला भवानी का मंदिर कहा जाता है. यह जिला राजनांदगांव में गांव करेला में स्थित है. किंवदंती है कि गांव का नाम करेला इसलिए पड़ गया क्योंकि यहां की जमीन पर बिना बीज लगाए ही करेले के पौधे खुद ही उग जाते हैं. इसी गांव में है मां करेला भवानी का मंदिर. इसकी दूरी तहसील खैरागढ़ से 26 किलोमीटर है. यहां दोनों नवरात्र पर लक्खी मेला जुटता है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. लोगों का विश्वास है कि मंदिर में जो भी मन्नत मांगो, वह अवश्य पूरी होती है.
करेला भारत में धर्म से भी जुड़ा है. छत्तीसगढ़ में तो इसका प्राचीन मंदिर है, जिसे मां करेला भवानी का मंदिर कहा जाता है. यह जिला राजनांदगांव में गांव करेला में स्थित है. किंवदंती है कि गांव का नाम करेला इसलिए पड़ गया क्योंकि यहां की जमीन पर बिना बीज लगाए ही करेले के पौधे खुद ही उग जाते हैं. इसी गांव में है मां करेला भवानी का मंदिर. इसकी दूरी तहसील खैरागढ़ से 26 किलोमीटर है. यहां दोनों नवरात्र पर लक्खी मेला जुटता है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. लोगों का विश्वास है कि मंदिर में जो भी मन्नत मांगो, वह अवश्य पूरी होती है.
भारतीय आयुर्वेद में करेले को गुणों की खान बताया गया है. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ 'चरकसंहिता' में करेले को कफ व पित्त हरने वाला बताया गया है. यह रस में तिक्त तो होता है लेकिन कई बीमारियों से बचाव करता है. पतंजलि आयुर्वेद के एमडी/सीईओ आचार्य श्री बालकृष्ण का कहना है कि आमतौर पर लोग केवल इतना ही जानते हैं कि करेला डायबिटीज (मधुमेह) में फायदा पहुंचाता है, लेकिन सच यह है कि आप करेले का प्रयोग कर कई रोगों को ठीक कर सकते हैं. उन्होंने जिन बीमारियों के लिए करेले को हितकारी बताया है, वह वाकई में हैरानी पैदा करती है.
भारतीय आयुर्वेद में करेले को गुणों की खान बताया गया है. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ 'चरकसंहिता' में करेले को कफ व पित्त हरने वाला बताया गया है. यह रस में तिक्त तो होता है लेकिन कई बीमारियों से बचाव करता है. पतंजलि आयुर्वेद के एमडी/सीईओ आचार्य श्री बालकृष्ण का कहना है कि आमतौर पर लोग केवल इतना ही जानते हैं कि करेला डायबिटीज (मधुमेह) में फायदा पहुंचाता है, लेकिन सच यह है कि आप करेले का प्रयोग कर कई रोगों को ठीक कर सकते हैं. उन्होंने जिन बीमारियों के लिए करेले को हितकारी बताया है, वह वाकई में हैरानी पैदा करती है.
हरियाणा के सोनीपत स्थित सरकारी भगतफूल सिंह महिला विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग की प्रमुख व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वीना शर्मा के अनुसार करेले के कड़वेपन को बिसार दें तो इसमें गुण ही गुण भरे हें. मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए करेला रामबाण है. यह पाचनतंत्र की खराबी, भूख की कमी, बुखार, और आंखों के रोग में भी लाभ पहुंचाता है. इसको खाने से जलन, कफ, सांसों से संबंधित परेशानियों में राहत मिलती है. तिल्ली का विकार भी कंट्रोल होता है. उन्होंने बताया कि करेले के अधिक सेवन से पेट दर्द हो सकता है और बुखार भी समस्या पैदा करेगा. करेले में जिस तरह के अवयव हैं, उसका अधिक सेवन किडनी में समस्या पैदा कर सकता है.भारत की अन्य भाषाओं में करेले के नाम- कन्नड़ में करंट, तेलुगु में पाकल, तमिल में पावक्कई, बंगाली में जेटुआ या कोरोला, मराठी में कारली, मलयालम में पावक्काचेटी, उड़िया में सलारा, इंग्लिश में
हरियाणा के सोनीपत स्थित सरकारी भगतफूल सिंह महिला विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग की प्रमुख व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वीना शर्मा के अनुसार करेले के कड़वेपन को बिसार दें तो इसमें गुण ही गुण भरे हें. मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए करेला रामबाण है. यह पाचनतंत्र की खराबी, भूख की कमी, बुखार, और आंखों के रोग में भी लाभ पहुंचाता है. इसको खाने से जलन, कफ, सांसों से संबंधित परेशानियों में राहत मिलती है. तिल्ली का विकार भी कंट्रोल होता है. उन्होंने बताया कि करेले के अधिक सेवन से पेट दर्द हो सकता है और बुखार भी समस्या पैदा करेगा. करेले में जिस तरह के अवयव हैं, उसका अधिक सेवन किडनी में समस्या पैदा कर सकता है.भारत की अन्य भाषाओं में करेले के नाम- कन्नड़ में करंट, तेलुगु में पाकल, तमिल में पावक्कई, बंगाली में जेटुआ या कोरोला, मराठी में कारली, मलयालम में पावक्काचेटी, उड़िया में सलारा, इंग्लिश में