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ज़रूरी है मेनोपॉज़ की जानकारी, ताक़ि थोड़ा ईज़ी हो जाए वह दौर!

Kajal Dubey
27 July 2023 4:20 PM GMT
ज़रूरी है मेनोपॉज़ की जानकारी, ताक़ि थोड़ा ईज़ी हो जाए वह दौर!
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सर्वेक्षण के अनुसार 82% लोगों का मानना है कि रजोनिवृत्ति से महिलाओं की सेहत पर असर पड़ता है. इनमें से अनेक लोगों का माना कि इससे उनका यौन जीवन (78%), पारिवारिक जीवन (77%), सामाजिक जीवन (74%) और कामकाजी जीवन (81%) प्रभावित हुआ है. करीब 48% महिलाओं ने रजोनिवृत्ति के तीव्र लक्षण महसूस करने की बात कही, जिनमें थोड़ा-थोड़ा रक्तस्राव (59%), अवसाद (56%), सम्भोग के दौरान पीड़ा (55%), और पीरियड के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव (53%) शामिल है. लगभग 84% लोगों को लगता है कि रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाएं अनेक बदलावों से गुजरती हैं, जिसके लिए परिवार की ओर से अधिक देखभाल की ज़रुरत है. लगभग 37% महिलाओं ने अपनी रजोनिवृत्ति की समस्याओं के लिए गायनकोलॉजिस्ट से परामर्श किया. इनमें से लगभग 93% महिलाओं ने लक्षणों का अनुभव आरम्भ होने के तीन महीने या उससे अधिक समय के बाद गायनोकोलॉजिस्ट से संपर्क किया. गाइनेकोलॉजिस्ट से परामर्श लेने वाली महिलाओं में से 54% महिलाएँ 7 महीने से अधिक समय के बाद डॉक्टर के पास गईं.
वहीं 35% महिलाएं, जो डॉक्टर के पास नहीं गई, उनमें से 21% ने आत्म-चिकित्सा (योग, घरेलू उपाय, ध्यान) आजमाए. 79% महिलाएं मानती हैं कि वो अपने परिवार, दोस्तों या सहकर्मियों के साथ रजोनिवृत्ति की चर्चा करने में सहज नहीं हैं, और उनमें से 62% इसलिए चर्चा नहीं करतीं क्योंकि वे “अपनी स्वास्थ्य की समस्या से अपने परिवार को परेशान नहीं करना’ चाहती हैं. 76% महिलाओं ने बताया कि उनहोंने रजोनिवृत्ति के दौरान अपनी मां और/या बड़ी बहनों को किसी से कोई मदद मांगते हुए कभी नहीं सुना था़ रजोनिवृत्ति से गुजरने वाली लगभग 74% महिलाओं को सामाजिक उत्‍सवों या पार्टियों में जाने की इच्छा नहीं होती, और 63% अपने समकक्ष समूहों में पहले की तरह आत्मविश्वास महसूस नहीं करतीं हैं.
73% कामकाजी महिलाएं काम से बार-बार छुट्टी लेने को बाध्य होती हैं, और 66% को कार्यस्थल में मनोदशा में अस्थिरता और चिड़चिड़ेपन का अनुभव आम रहा है. 80% लोगों का मानना है कि रजोनिवृत्ति की तुलना में गर्भनिरोधकों और बांझपन पर चर्चा करना ज़्यादा आम है. सर्वेक्षण में शामिल पतियों में से 91% का सोचना है कि जागरूकता बढ़ाने के लिए ज़्यादासे ज़्यादा महिलाओं को रजोनिवृत्ति से सम्बंधित अपने अनुभवों के बारे में बात करने की ज़रुरत हैं.
सर्वेक्षण के इन आंकड़ों से साफ़ जाहिर होता है कि मेनोपॉज़ के बारे में जानकारी और उसकी जागरूकता को लेकर लोगों में किस क़दर कमी नज़र आ रही है. इसलिए अगर आप मेनोपॉज़ के प्रॉसेस के बारे में जानकारी रखते हैं तो अपने घर की और आसपास की औरतों से इसके बारे में बात करें और उन्हें जागरूक करें.
क्रॉनिक बीमारियां जैसे मधुमेह, कैंसर, कार्डियोवैस्कुलर एवं रेस्पिरेटरी संबंधी बीमारियां न केवल भारत, बल्कि संपूर्ण विश्व में तेज़ी से बढ़ रही हैं. इनका कोई इलाज न होने के कारण अधिकांश लोगों को मृत्यु इन बीमारियों से असमय हो रही है. आधुनिक चिकित्सा इन बीमारियों के उपचार के लिए निरंतर कार्यरत तो है, लेकिन अभी भी इनमें लंबा समय लगेगा.
ख़राब जीवनशैली, असंतुलित आहार, तंबाकू एवं शराब का अत्यधिक सेवन, धूम्रपान इत्यादि इन बीमारियों के होने के कुछ कारणों में से हैं. हालांकि इन कारकों के कुछ मूल कारणों को प्राय: हम नज़रंदाज़ कर देते हैं. जैसे कि-
संपूर्ण दृष्टिकोण
हर एक व्यक्ति का अपने जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण होता है, एक उद्देश्य होता है. जिसे पूरा करने में वह जी जान लगा देता है. जीवन के किस दौर पर हम क्या निर्णय लेते हैं और किसे महत्व देते हैं इस पर हमारा भविष्य और स्वास्थ्य दोनों निर्भर करता है. उदाहरण के लिए यदि किसी का लक्ष्य ख़ूब धन दौलत कमाना है और उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए यदि वह अपने स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करता तो इसका परिणाम काफ़ी घातक हो सकता है.
जागरूकता
अपने शरीर के प्रति मानसिक और शारीरिक स्तर पर जागरूक रहना हर व्यक्ति के लिए ज़रूरी है. कोई भी बड़ी बीमारी अचानक नहीं होती, हमारे शरीर के भीतर इनका विकास धीरे धीरे और एक व्यवस्थित रूप से होता है. यदि हम इन के कारणों से सचेत हो जाएं और शरीर में होने वाले किसी भी असंतुलन को पहचान लें तो हम अपने आप को इन घातक बीमारियों से दूर रख सकते हैं.
तनाव
तनाव यानि स्ट्रेस, हमारे जीवन का मुख्य हिस्सा बन गया है. आधुनिक समाज में होनेवाले निरंतर विकास से हमारे निजी जीवन पर लगाता दबाव बढ़ता जा रहा है, जिसका असर हमारे शरीर और मन दोनों पर क्रॉनिक स्ट्रेस के रूप में हो रहा है. धीरे धीरे हम इस क्रॉनिक स्ट्रेस को नियंत्रित करने की क्षमता खोते जा रहे हैं और इसलिए तरह-तरह की बीमारियों का शिकार बन रहे है.
yoga
इन सभी मूल कारणों का निवारण यौगिक चिकत्सा के द्वारा संभव है. यौगिक चिकत्सा से तात्पर्य है योग विज्ञान अर्थात् यौगिक क्रियाओं द्वारा रोगों को दूर करना. योग हमारे जीवन में समाधि यानि समत्व लाकर, मानसिक एवं शारीरिक स्तर पर संतुलन का कार्य करता है. योग हमारे शरीर की अंदरूनी प्रतिरक्षा क्रियाविधि (डिफेंस मेकैनिज़्म) को मज़बूत बनाने में सहायक है, जिसके कारण हमारा शरीर बाहरी संक्रमण के आक्रमण से लड़ लेता है.
योगासन, प्राणायाम, ध्यान इत्यादि हमारे शरीर को रोगी से निरोगी बनाने की प्रक्रिया की गति को बढ़ाते हैं. आइए देखें योग के माध्यम से हम कैसे अपनी मदद कर सकते हैं.
1. यम नियम - यह ऐसी आचार संहिता है, जो हमारे सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में संतुलन लाने का कार्य करती है. यम नियम मनुष्य को न केवल समाज के साथ बल्कि स्वयं के साथ पूर्ण सामंजस्य में रहना सिखाते हैं, जो एकीकृत जीवन का आधार है.
2. आसन -आसन मांसपेशियों को मज़बूत करते हैं और शरीर में स्थिरता, शक्ति और लचीलापन लाते हैं.
3. मुद्रा एवं बंध -मुद्राओं और बंध का अभ्यास यदि किसी प्रशिक्षित योग चिकित्सक के साथ किया जाए तो यह हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक है.
4. प्राणायाम- प्राणायाम के अभ्यास से हमारे श्वसन के संचालन में सुधार आता है जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में रक्त परिसंचरण बेहतरीन होता है और शरीर में होनेवाले अज्ञात दर्द एवं पीड़ा का पूर्णतया निवारण होता है.
5. शुद्धि क्रियाएं - ये अतिरिक्त कफ़ एवं विषाक्त पदार्थों को शरीर के भीतर से बाहर निकाल कर हमारे शरीर के अंदर की नलियों को साफ़ करती हैं. शुद्धि क्रियाओं से न केवल शारीरिक मल का शोधन होता है; बल्कि मानसिक स्तर पर भी शुद्धिकरण में मदद मिलती है. प्राणायाम के कुशल अभ्यास में भी ये सहायक हैं.
6. यौगिक आहार - यौगिक आहार एक महत्वपूर्ण विषय है. अगर हम इस बात पर थोड़ा-सा ध्यान दें कि हम अपने भोजन में क्या, कैसे, कितना और कब खाएं तो हम अपने शरीर से बड़ी मात्रा में विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं.
7. ध्यान - शारीरिक और मानसिक स्थिरीकरण होने के बाद ही ध्यान का अभ्यास मुमकिन है. भावनात्मक स्थिरता और एकीकृत व्यक्तित्व लाने में ध्यान बहुत महत्त्वपूर्ण है.
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